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राष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए सदभावना जरूरी:- सतपाल महाराज

आध्यात्मिक गुरु और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि आज राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सदभावना की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें प्रेम व अहिंसा के रास्ते पर चलकर समाज में एकता की...

राष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए सदभावना जरूरी:सतपाल महाराजराष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए सदभावना जरूरी:सतपाल महाराज
हरिद्वार में तीन दिवसीय सदभावना...
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हरिद्वार में तीन दिवसीय सदभावना...
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हिन्दुस्तान टीम,हरिद्वारFri, 12 Apr 2019 11:50 PM
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आध्यात्मिक गुरु और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि आज राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सदभावना की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें प्रेम व अहिंसा के रास्ते पर चलकर समाज में एकता की भावना को मजबूत करना होगा। यह विचार उन्होंने शुक्रवार को मानव उत्थान सेवा समिति द्वारा ऋषिकुल मैदान में आयोजित सदभावना सम्मेलन को संबोधित करते व्यक्त किए।

आध्यात्मिक गुरु सतपाल महाराज ने कहा कि जब देश सुरक्षित होगा तभी हम एकजुट होकर विकास के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे। प्रत्येक देशवासी को आज देश के सर्वांगीण विकास के लिए अपना बहुमूल्य योगदान देना होगा और हमें बाहरी स्वच्छता के साथ-साथ आंतरिक स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देना होगा।

सतपाल महाराज ने कहा कि सभी महानपुरुषों ने एकता व सदभावना के माध्यम से मानव समाज को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। समाज में अध्यात्म ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया तथा अध्यात्म के संदेश से लोगों का हृदय परिवर्तन कर सदभावना का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने कहा कि समाज में अच्छे कार्य करने पर कुछ बाधाएं तो आती हैं लेकिन निश्चयात्मक बुद्धि वाले मनुष्य विचलित नहीं होते हैं। बल्कि वह अपने लक्ष्य के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहते हैं। महाराज ने कहा कि जिस तरह गुलदस्ते में अनेक प्रकार के फूल गुलदस्ते की शोभा को बढ़ाते हैं उसी तरह यह भारतवर्ष हमारे लिए एक सुंदर गुलदस्ते के समान है। और हम सब मिलकर इस भारतरूपी गुलदस्ते की शोभा को बढ़ाएं।

समारोह में पूर्व कैबिनेट मंत्री अमृता रावत, विभु, सुयश सहित अनेक साधु-संतों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। इस अवसर पर बच्चों द्वारा देशभक्ति से प्रेरित लघु नाटक का मंचन भी किया गया। दूर- दूर से आये हुए अनेक भजन गायकों ने भजनों की प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंच संचालन महात्मा हरिसंतोषानंद ने किया।

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