तीर्थ पुरोहितों ने ऑनलाइन कर्मकांड का विरोध किया
तीर्थ पुरोहितों ने किया ऑनलाइन कर्मकांड कराने का विरोधन कर्मकांड कराने का विरोध कहा बाजार, पुरोहितों समेत तीर्थ को पहुंचेगा नुकसान हरिद्वार। मुख्य संवाददाता कोरोनाकाल में ऑनलाइन...
कोरोनाकाल में ऑनलाइन श्राद्ध कराने को लेकर हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित खासे नाराज हैं और ऑनलाइन की नई परंपरा का खुलकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऑनलाइन पूजा से तीर्थ की मर्यादा के साथ ही व्यापार और पुरोहितों समेत यजमान को भी नुकसान होगा। पुरोहित सामने बैठकर जो संकल्प यजमान को कराते हैं वह ऑनलाइन से संभव नहीं है। ऑनलाइन शास्त्र विपरीत पूजा है। जिसे मान्यता नहीं दी जी सकती है।
पुरोहित पुनीत झा का कहना है कि पिंड दान का काम कुशावृत घाट या नारायणी शिला में ही होता आया है। ऑनलाइन करा सकते हैं लेकिन उससे भाव नहीं जुड़ते। ऑनलाइन ही सारे कर्म करा दिए जाएं तो तीर्थ यात्री हरिद्वार क्यों आएगा। यह तो ऑनलाइन कराने वाले को भी सोचना चाहिए। पंडित रमन वशिष्ठ का कहना है कि कुछ दिनों से ऑनलाइन कर्मकांड सुनने में आ रहा है जो शास्त्र के विपरीत है। शास्त्र में ऑनलाइन का कोई विधान नहीं है। वे इसका विरोध करते हैं। यह धार्मिक परपंराओं के खिलाफ है। यजमान को संकल्प का उच्चारण सामने बिठाकर कराया जाता है। ऑनलाइन केवल एक साजिश है। इससे यजमान की श्रद्धा का भी ह्रास होगा। ऑनलाइन पूजा से तीर्थ यात्रियों की संख्या भी घटेगी।
पंडित दीपक झा का कहना है कि ऑनलाइन कर्मकांड कराए जा रहे हैं। जो शास्त्र के विपरीत है। यह अमान्य है। जो पुरोहित सामने बैठकर पूजा कराता है। उसका प्रभाव पड़ता है। तीर्थ की मान मर्यादा का ध्यान सभी को रखना चाहिए। तीर्थ स्थल पर आकर ही पूजा सामने बैठकर संपन्न करानी चाहिए। ऑनलाइन से पर्यटन व पुरोहितों समेत बाजार पर इसका असर पड़ेगा। पुरोहित जितेंद्र शुक्ला का कहना है कि यजनाम व पुरोहित दोनों को कर्मकांड नहीं कराना चाहिए। जब सामने कोई नहीं बैठेगा तब तक संकल्प कैसे करा सकते हैं।
परोहित देवेंद्र शुक्ला का कहना है कि ऑनलाइन पूजा और अन्य कर्म नहीं कराए जाने चाहिए। यजमान के सामने बैठने से ही कर्म संफल होते हैं। इससे तीर्थ की मर्यादा और व्यापार समेत पुरोहितों को भी नुकसान होगा। तीर्थ की मर्यादा तीर्थ पुरोहित से है। आपत्ति काल है तो अगले साल कर लें। इस समय घर पर पूर्वजों का ध्यान कर दान कर दें। पुरोहित गोपाल कृष्ण पटवर का कहना है कि हमारा शास्त्र ही हमारी मर्यादा है। हमें शास्त्रों के अनुरूप ही काम करना चाहिए। शास्त्र ऑनलाइन श्राद्ध को नहीं मानते। पित्रृ में पुरोहित व यजमान बैठकर ही कर्म कर सकते हैं। नई परंपराओं का जन्म जो दिया जा रहा है वह अनुचित है। इसे व्यापार बनाने का जो काम कर रहे हैं उसका विरोध होना चाहिए। पुरोहित योगेश वशिष्ठ का कहना है कि ऑनलाइन पूजा कराने वाले पंडित नहीं हैं, क्योंकि ऑनलाइन पूजा से फल किसी को नहीं मिलेगा।
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ऑनलाइन कर्म कराने वाले का भी विरोध
ऑनलाइन कर्म कराने वाले सिद्ध पीठ नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज कुमार त्रिपाठी तीर्थ पुरोहितों के मुखर विरोध के बाद स्वयं भी इसका विरोध करते दिख रहे हैं। हालांकि दो दिन पहले उन्होंने स्वयं महाराष्ट्र के एक यजमान का ऑनलाइन कर्म कराया था। अब उनका कहना है कि ऑनलाइन पित्रृ कार्य शास्त्र सम्मत नहीं है। शास्त्र सम्मत यही है कि यजमान अपने हाथ से स्वयं कर्म करे। ऑनलाइन पित्रृ कार्य कराना श्रेष्ठ नहीं है।
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अमवस्या को बंद रहेंगे नारायणी शिला के द्वार
सिद्ध पीठ नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज कुमार त्रिपाठी का कहना है कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए अमावस्या के दिन 17 सितंबर को नारायणी शिला के द्वार बंद रखे जाएंगे। क्योंकि हर साल अमावस्या के दिन हजारों लोग कर्म कराने को नायारणी शिला पहुंचते हैं। उनका कहना है कि जरूरत पढ़ी को 16 सितंबर को भी मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाएंगे।