रचनात्मकता पैदा करने वाली है नई शिक्षा नीति
हिंदी माह के कार्यक्रमों की श्रृंखला में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ करते हुए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान संकाय के डीन तथा आंतरिक गुणवत्ता अश्वासन प्रकोष्ठ...
हिंदी माह के कार्यक्रमों की श्रृंखला में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ करते हुए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान संकाय के डीन तथा आंतरिक गुणवत्ता अश्वासन प्रकोष्ठ के निदेशक प्रो. दिनेश चंद्र चमोला ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में शिक्षा की गुणवत्ता का अनुसरण, नालंदा व तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों की समृद्ध व गौरवशाली ज्ञान-परंपरा की ओर अग्रसर होने का अवसर है।
उन्होंने वैश्वीकरण की दौड़ में भाषाओं पर मंडराते संकट पर भी सतर्क रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। कहा कि यह गुणवत्तापूर्ण सृजन अध्यापन से ही संभव है। वैश्विक रूप में आज हिंदी एक समर्थ भाषा ही नहीं, अपितु बड़े बाजार के रूप में सबके सामने है। उन्होंने हिंदी की इस बहु प्रयोजनीयता के समानांतर अनुसंधान व अध्ययन-अध्यापन में मौलिकता, गुणवत्ता की चुनौती को ही श्रेष्ठतम विकल्प बताया।
मुख्य वक्ता पंडित रविशंकर शुक्ल, प्रो. केशरी लाल वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति रचनात्मकता और नई सोच पैदा करने वाली है। साथ ही इसमें इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया गया है कि शिक्षा में गुणवत्ता कैसे बढ़े, इसके लिए नई शिक्षा नीति में कई बड़े प्रावधान किए गए हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए कहा कि इसमें हिंदी तथा संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना यह एक महत्वपूर्ण कदम है। वेबिनार में देश कोने-कोने से जुड़े लोगों का धन्यवाद करते हुए प्रो. त्रिपाठी ने आयोजक विभाग तथा कार्यक्रम की प्रशंसा की। कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस दौरान डॉ. विंदुमति द्विवेदी, सुशील कुमार चमोली, डा.अरविंद नारायण मिश्र, डा. उमेश शुक्ल, डा.रामरतन खंडेलवाल, मनमीत कौर, शोध छात्रों में अनूप बहुखंडी, ललित शर्मा, रीना अग्रवाल, रेखा शर्मा, अनीता, सुनीता, दीपक रतूड़ी, आरती सैनी, रागिनी, धीरज आदि शामिल रहे।