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गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई

श्री वैष्णव मंडल हरिद्वार ने श्रीराम चरित मानस सहित अनेक ग्रंथों के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की 522वीं जयंती पर तुलसी चौक पर पूजन किया। श्रीरामानन्द आश्रम आचार्य महापीठ में संगोष्ठी का आयोजन कर उनका...

गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई
हिन्दुस्तान टीम,हरिद्वारWed, 07 Aug 2019 05:59 PM
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श्री वैष्णव मंडल हरिद्वार ने श्रीराम चरित मानस सहित अनेक ग्रंथों के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की 522वीं जयंती पर तुलसी चौक पर पूजन किया। श्रीरामानन्द आश्रम आचार्य महापीठ में संगोष्ठी का आयोजन कर उनका भावपूर्ण स्मरण किया गया। इससे पूर्व सभी संत महापुरुषों ने शोभायात्रा निकाल कर सनातन धर्म एवं संस्कृति में धर्मग्रंथों की ग्राह्यता का संदेश दिया।

श्रीरामानन्द आश्रम में संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्रीवैष्णव मंडल अध्यक्ष महंत विष्णुदास ने कहा कि श्रीरामचरित मानस सनातन धर्म का सार्वभौमिक ग्रंथ है। जिससे व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता समझने का संदेश मिलता है। जिस घर में रामायण रहती है वहां शब्द रूप में परमात्मा विद्यमान रहते हैं। कोटा से आये महंत रामलखन दास ने कहा कि संतों का जीवन सर्वसमाज के लिए होता है और गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना की है। वे किसी जाति सम्प्रदाय या धर्म के लिए न होकर सम्पूर्ण मानवता के हितों की प्रेरणा देते हैं। तुलसी चौक को हरिद्वार का गौरव बताते हुए उन्होंने कहा कि इस चौक की स्थापना से रामानन्द सम्प्रदाय को धर्मनगरी में एक नई पहचान मिली है। जगद्गुरु अयोध्याचार्य ने श्रीरामानन्द आश्रम आचार्य महापीठ की परंपराओं की सराहना करते हुए कहा कि इस स्थान को अनेक सिद्ध महापुरुषों ने सुशोभित किया है।

श्रीरामानन्द आश्रम आचार्य महापीठ के अध्यक्ष महंत प्रेमदास ने सभी संत महापुरुषों एवं भक्तों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि तुलसी जयन्ती सम्पूर्ण समाज को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवानराम के जीवन चरित्र को आत्मसात करने का प्रेरणा देती है। अयोध्या से आये महंत त्रिभुवन दास ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास महर्षि बाल्मीकि के अवतार थे और उन्होंने राम चरिमानस के माध्यम से भगवान राम के साथ हनुमान की जिस भक्ति को जोड़ा है। उससे सम्पूर्ण समाज में भक्ति भावना का नया संचार हुआ। स्वामी चिदविलासानंद ने कहा कि महापुरुषों का अवतार भगवान की प्रेरणा से होता है और सनातन संस्कृति सृष्टि का सारस्वत सत्य है जो कभी समाप्त नहीं होगा।

संगोष्ठी में रामदास, महंत रघुवीरदास, महंत सूरजदास, महंत नारायणदास पटवारी, बिहारीशरण, महंत जगदीशानंद, महंत दिनेश दास, महंत हितेश दास, महंत महेन्द्रानन्द, महामंडलेश्वर भगवत स्वरुप एवं डा. हरिबल्लभदास शास्त्री आदि शामिल थे।

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