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हरिद्वार में रोक के बावूजद गंगा में गिर रहे 24 नाले

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा...

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा...
1/ 2गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा...
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा...
2/ 2गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा...
हिन्दुस्तान टीम,हरिद्वारSun, 09 Dec 2018 11:39 PM
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गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम दावे धरातल पर दम तोड़ रहे हैं। एनजीटी के रोक लगाने के आदेश के बाद भी हरिद्वार में बिना शोधन के 24 नालों का गंदा पानी सीधा गंगा में गिर रहा है। रोजाना करीब 50 से 60 एमएलडी गंदा पानी गंगा में जा रहा है। इसमें सीवरेज का पानी भी शामिल है। इतना ही नहीं सिडकुल की औद्योगिक इकाइयां भी केमिकल युक्त कचरे और पानी को गंगा में बहा रही हैं।गंगा की सफाई के लिए हरिद्वार प्रशासन और संबधित विभाग बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन गंगा सफाई के नाम पर तीन हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं हो पा रही है। हरिद्वार में अभी भी 24 नालों और सीवर का पानी गंगा में बह रहा है। हरिद्वार में हर रोज 120 मिलियन लीटर सीवर का पानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में जाता है। जबकि पम्पिंग स्टेशन की क्षमता केवल 63 एमएलडी की है। यानी लगभग 50-60 एमएलडी गंदा पानी गंगा में जा रहा है। उत्तरी हरिद्वार क्षेत्र में पंतद्वीप पार्किंग का गंदा पानी खुलेआम गंगा में जा रहा है। वहीं टेप होने के बाद भी हरकीपैड़ी क्षेत्र के कांगडा मंदिर नाला, नाई सोता नाला, नागों की हवेली का नाला और गऊ घाट नाले से भी गंदा पानी गंगा में जा रहा है। पंतद्वीप से बिड़ला घाट के बीच गंगा किनारे बने आश्रमों और धर्मशालाओं की नालियां भी सीधा गंगा में खुल रही हैं। कनखल की बात की जाए तो मातृसदन के पास सीवर के गंदे पानी का नाला नदी में खुला हुआ है। ज्वालापुर में कस्साबान और पांडेवाला नाले का दूषित और बदबूदार जल गंगा के पवित्र निर्मल जल में जहर घोल रहा है। औद्योगिक क्षेत्र में लिक्विड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट के बाद भी रसायन युक्त काला पानी गंगा की स्वच्छता पर ग्रहण बन रहा है। यहीं दूषित जल देहात क्षेत्र में नहरों के जरिए सिंचाई के लिए खेतों में जा रहा है। ऐसे में दूषित जल का दुष्प्रभाव फसलों पर पड़ना भी लाजिमी।

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