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कोरोना से लड़कर दो वक्त की रोटी जुटा रहीं गफूर बस्ती की बेटियां

शहर की मलिन बस्ती में रहने वाली इन बेटियों की मदद को अबतक कोई हाथ नहीं बढ़े हैं। शहर में कूड़ा बिनकर रोजी-रोटी कमाने वाली इन बेटियों का काम अब पूरी तरह से छीन गया...

कोरोना से लड़कर दो वक्त की रोटी जुटा रहीं गफूर बस्ती की बेटियां
हिन्दुस्तान टीम,हल्द्वानीThu, 02 Apr 2020 05:34 PM
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शहर की मलिन बस्ती में रहने वाली इन बेटियों की मदद को अबतक कोई हाथ नहीं बढ़े हैं। शहर में कूड़ा बीनकर रोजी-रोटी कमाने वाली इन बेटियों का काम अब पूरी तरह से छिन गया है। वह अब घर में रखे एक दो दिन का राशन पकाने के लिए मोहल्लों से लकड़ियां बीनने में लगी हैं। घर में रसोई गैस का कोई इंतजाम नहीं है। एक बजे तक लकड़ियों का इंतजाम नहीं हुआ तो उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ेगा।लॉकडाउन में छूट के दौरान दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष के लिए निकली गफूर बस्ती की बेटियों की यही कहानी है। हीरानगर में लकड़ी बीनने पहुंची सायरा बताती है कि उनके घरों में रसोई गैस नहीं है। घर में भी दो दिन का ही राशन बचा है। उनके मोहल्ले में अबतक मदद को कोई नहीं पहुंचा। एक दो दिन में कोई मदद नहीं मिली तो भूखे पेट सोना पड़ेगा। कोरोना के बाद उनकी जिंदगी में रोना ही रोना है। छूट के दौरान वह किसी तरह से दूसरे मोहल्लों में जाकर लकड़ी जमा कर रही हैं, ताकि शाम के वक्त रोटी बन सके। शकीला ने बताया कि गफूर बस्ती की बेटियों की जिंदगी रोज कुआं खोदने-रोज पानी पीने जैसी है। आजकल रोजगार पूरी तरह छिन गया है। कूड़ा बीनने के लिए पुलिस घर से नहीं निकलने दे रही है। घर के दूसरे लोग भी काम पर नहीं जा पा रहे हैं। वह लकड़ी बीनकर घर में चूल्हा जलाएंगी। कुछ लकड़ी बच गई तो उसे बेचकर एक किलो आटा खरीद लेगी, जिससे घर में छोटे बच्चों का पेट भर सके। तब्बसुम बताती हैं कि कूड़ा में ही वह जिंदगी और रोटी तलाशती रहती हैं। इन दिनों कूड़ा बीनने का काम भी बंद है। घर में दो छोटे भाई बहन हैं। आज अगर ज्यादा-ज्यादा लकड़ी बीनकर नहीं ले गई तो शाम को घर में खाना नहीं बन पाएगा। दोनों भाई-बहन भूखे ही रह जाएंगे। कुलसुम ने कहा कि इन दिनों अच्छे मोहल्लों में खूब खाना बंट रहा है, लेकिन उन गरीबों पर किसी नजर नहीं पड़ी। मलिन बस्ती होने से कोई वहां आना नहीं चाहता। उनकी बस्ती के लिए सरकार ने राशन का इंतजाम नहीं किया तो पूरी बस्ती भूखमरी की स्थिति पैदा हो जाएगी।

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