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नहीं रहे पद्मश्री अवधेश कौशल,सीएम ने जताया शोक

रुलक के संस्थापक पद्मश्री अवधेश कौशन को मंगलवार को मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। सीएम पुष्कर धामी सहित तमाम राजनेताओं,समाजसेवकों...

नहीं रहे पद्मश्री अवधेश कौशल,सीएम ने जताया शोक
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,देहरादूनTue, 12 Jul 2022 11:31 AM

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रुलक के संस्थापक पद्मश्री अवधेश कौशन को मंगलवार को मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। सीएम पुष्कर धामी सहित तमाम राजनेताओं,समाजसेवकों और पर्यावरण प्रेमियों ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है।

पद्मश्री अवधेश कौशल ने पूर्व मुख्यमंत्रियों की फिजूलखर्ची रोकने, चकराता में बंधुआ मजदूरी खत्म करने,शिक्षा, गुर्जरों के अधिकार और दूनघाटी में चूने की खदानों के खनन पर रोक में अहम भूमिका निभाई थी। जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, अंतिम समय तक तमाम मुकाम हासिल कर जारी रही । आज अगर देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। वर्ष 1972 में तमाम गांवों का भ्रमण करने के बाद जब अवधेश कौशल ने पाया कि बड़े पैमाने पर चकराता क्षेत्र में लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है तो वह इसके खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बंधुआ मजदूरी का सर्वे करवाया। सरकारी आंकड़ों में ही 19 हजार बंधुआ मजदूर पाए गए।

वर्ष 1974 मैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को बंधुआ मजदूरी से ग्रसित गांवों का भ्रमण कराया। जब सरकार को स्थिति का पता चला तो वर्ष 1976 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया। इसके बाद भी जब बंधुआ मजदूरों को समुचित न्याय नहीं मिल पाया तो इस लड़ाई को अवधेश कौशल सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए और दबे-कुचले लोगों के लिए संरक्षण की राह खोलकर ही दम लिया। हालांकि, जनता के हितों के संरक्षण का उनका अभियान यहीं खत्म नहीं हुआ और पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील दूनघाटी में लाइम की लाइमस्टोन माइनिंग के खिलाफ भी अस्सी के दशक में आवाज उठायी। कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और संवेदनशील क्षेत्र में माइनिंग को पूरी तरह बंद कराने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विकास से उपक्षित वन गूजरों के अधिकारों को संरक्षित करने का बीड़ा भी अवधेश कौशल ने उठाया था उसके लिए लंबी लड़ाई के बाद केंद्र सरकार वर्ष 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेल्स एक्ट में वन गूजरों को संरक्षित किया गया। गूजरों के परिवारों के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूल संचालन, महिला अधिकारों और पंचायतीराज में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अवधेश कौशल रूलक संस्था के माध्यम से अंतिम समय तक प्रयासरत रहे।

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