हरिद्वार-ऋषिकेश के गंगा घाटों को संवारने के लिए आगे आए देश के उद्योगपति
भाजपा सरकार के आह्वान पर गंगाघाट के चहुंमुखी विकास के लिए उद्योगपतियों ने हाथ बढ़ा दिया। उन्होंने हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, कानपुर, पटना और गंगा सागर के घाट गोद लेने को सहमति दे दी है। खास बात यह है...
भाजपा सरकार के आह्वान पर गंगाघाट के चहुंमुखी विकास के लिए उद्योगपतियों ने हाथ बढ़ा दिया। उन्होंने हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, कानपुर, पटना और गंगा सागर के घाट गोद लेने को सहमति दे दी है। खास बात यह है कि इनका जीर्णोद्धार, सौंदर्यीकरण, जनसुविधाएं और बुनियादी ढांचा खड़ा करने का काम सालभर में सामाजिक दायित्व के तहत पूरा करने का लक्ष्य है। ऐसे में यहां आने वाले श्रद्धालुओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल दिसंबर में उद्योगपतियों से गंगा घाटों को विकसित करने का प्रस्ताव रखा था। इसमें हिंदुजा बंधुओं ने हरिद्धार और ऋषिकेश, एचसीएल गु्रप के शिव नाडर वाराणसी के सभी घाट, शिपिंग उद्योगपति रवि मल्होत्रा ने कानपुर, वेदांता गु्रप ने पटना के गंगा घाट और मोक्षधाम, पश्चिम बंगाल में गंगा सागर के आसपास इंडोरामा गु्रप ने गोद लेने पर सहमति दी है। सूत्रों ने बताया कि औद्योगिक घराने इन घाटों, बसावट, आसपास के प्राचीन मंदिरों पर सामाजिक कॉरपोरेट दायित्व के तहत मोटी धनराशि खर्च करेंगे।
राज्य से जुड़ाव के चलते उद्योगपति आगे आए
जिन उद्योगपतियों ने गंगा घाट गोद लिए हैं, उनका राज्य से पुराना जुड़ाव रहा है। शिपिंग कारोबारी रवि मल्होत्रा मूलत: कानपुर के रहने वाले हैं। लेकिन, विदेश में उनका कारोबार है। इसी तरह वेदांता गु्रप के अनिल अग्रवाल बिहार के रहने वाले हैं। वह पटना के गंगा घाट और मोक्षधाम के निर्माण के साथ ही सौंदर्यीकरण का काम करवाएंगे। हिंदुजा बंधुओं का भी उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों से पुराना जुड़ाव है। जबकि शिव नाडर की इच्छा वाराणसी के 82 गंगा घाटों को चमकाने की है।
‘अविरल गंगा-निर्मल गंगा’ पर 20 हजार करोड़ का खर्चा
केंद्र सरकार ‘अविरल गंगा-निर्मल गंगा’ परियोजना पर 20 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसके तहत हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी और पटना में गंगा पर गिरने वाले गंदे पानी के लिए मल शोधन संयंत्र लगेंगे। पीपीपी मोड में इस पर पहले ही करार हो चुका है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी गंगा के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों, एनजीओ, प्रवासी भारतीय और उद्यमियों का आह्वान कर पुराने गंगा घाट और मंदिरों के उत्थान के लिए वित्तीय सहायता जुटा रहे हैं।
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