IIT Roorkee Develops Eco-Friendly Tableware from Wheat Straw to Combat Plastic Pollution आईआईटी रुड़की ने गेहूं के भूसे से बनाया पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर, Dehradun Hindi News - Hindustan
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आईआईटी रुड़की ने गेहूं के भूसे से बनाया पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर

आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने गेहूं के भूसे से पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर बनाया है। यह प्लास्टिक प्रदूषण और पराली जलाने की समस्याओं का समाधान है। इस नवाचार से किसानों की आय बढ़ेगी और पर्यावरण को भी...

Newswrap हिन्दुस्तान, देहरादूनSat, 4 Oct 2025 10:26 AM
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आईआईटी रुड़की ने गेहूं के भूसे से बनाया पर्यावरण-अनुकूल  टेबलवेयर

रुड़की। आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने गेहूं के भूसे से पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर बनाया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि प्लास्टिक प्रदूषण एवं पराली जलाने की दोहरी चुनौतियों का यह एक स्थाई समाधान है। इसके साथ ही किसानों के आय में भी वृद्धि होगी। इनोपैप लैब (कागज़ एवं पैकेजिंग में नवाचार) के शोधकर्ताओं ने पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड औरंगाबाद के सहयोग से गेहूँ के भूसे से बने पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर का सफलतापूर्वक विकास किया है। यह नवीन प्रौद्योगिकी एक साथ दो गंभीर चुनौतियों का समाधान करती है। फसल अपशिष्ट को जलाने की व्यापक प्रथा, जो भारत में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है तथा एकल-उपयोग प्लास्टिक अपशिष्ट की बढ़ती समस्या, जो सदियों से लैंडफिल और महासागरों में मौजूद है।

गेहूँ के भूसे को ढाले हुए बायोडिग्रेडेबल टेबलवेयर में बदलकर टीम ने प्लास्टिक का एक सुरक्षित, कम्पोस्टेबल एवं टिकाऊ विकल्प तैयार किया है। टिकाऊ, ऊष्मा-प्रतिरोधी व खाद्य-सुरक्षित ये उत्पाद "मिट्टी से मिट्टी तक" के दर्शन को साकार करते हैं। जो धरती से उत्पन्न होते हैं, लोगों के काम आते हैं और बिना किसी नुकसान के मिट्टी में वापस मिल जाते हैं। इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले कागज़ प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफ़ेसर विभोर के. रस्तोगी ने कहा की भारत में हर साल 35 करोड़ टन से ज़्यादा कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसका एक बड़ा हिस्सा या तो जला दिया जाता है, जिससे वायु गुणवत्ता बिगड़ती है और जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। गेहूँ के भूसे का उन्नत उपयोग करके, यह शोध न केवल पर्यावरणीय नुकसान को कम करता है, बल्कि किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी प्रदान करता है, जिससे एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल का निर्माण होता है जो अपशिष्ट को धन में बदल देता है। आईआईटी रुड़की के निदेशक, प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा की यह नवाचार समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने की आईआईटी रुड़की की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करके, साथ ही किसानों की आजीविका को बेहतर बनाकर, यह पहल दर्शाती है कि कैसे शोध स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया जैसे राष्ट्रीय अभियानों और स्थिरता लक्ष्यों की प्राप्ति में सीधे तौर पर सहायक हो सकता है।

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