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उत्तरकाशी आपदा: मुखबा से धराली तक लोगों के चेहरे से नहीं उतर रहा खीरगंगा का खौफ

खीर गंगा की तबाही के बाद मुखवा से धराली तक सन्नाटा छा गया है। मेलों की रौनक गायब हो गई है और लोग अपने खोए हुए प्रियजनों की तलाश कर रहे हैं। रातभर लोग अपनी चिंताओं में डूबे रहे। बिजली और संचार सेवाएं...

Newswrap हिन्दुस्तान, देहरादूनWed, 6 Aug 2025 04:18 PM
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उत्तरकाशी आपदा: मुखबा से धराली तक लोगों के चेहरे से नहीं उतर रहा खीरगंगा का खौफ

मुखवा से धराली तक पसरे सन्नाटे के बीच लोगों के चेहरे पर खीर गंगा से मची तबाही का खौफ नजर आ रहा है। इन दिनों मेलों से गुलजारी पूरी घाटी में मातम छाया हुआ है। आपदा के बाद की पहली रात को घरों में चूल्हे तक नहीं जले। घरों और गांव के चौक में पूरी रात सिर्फ खीर गंगा की प्रलय में लापता लोगों की बात होती रही। मंगलवार दोपहर तक मुखवा, हर्षिल से लेकर धराली तक में रौनक थी। इन दिनों यहां गांव-गांव में मेले हो रहे हैं, तो उस उल्लास में दूर से नाते-रिश्तेदार भी धराली और मुखवा पहुंचे थे।

लेकिन दोपहर बाद खीर गंगा के कहर ने इस सुंदर घाटी का न सिर्फ भूगोल बदल दिया, बल्कि पूरे इलाके की रौनक भी छीन ली। अजीब से सन्नाटे के बीच आसपास के गांवों के लोग उम्मीदों के बीच धराली भी पहुंचे, लेकिन यहां मौत की निशानियां के सिवा उन्हें कुछ नजर नहीं आ रहा है। पूर्व कनिष्ठ प्रमुख संजय पंवार कहते हैं कि हमारे पास अब बचाने के लिए कुछ नहीं है। यहां मकान, दुकान, होटल 20 फिट तक मलबे में दबे हैं। मुखवा निवासी गंगोत्री के तीर्थ पुरोहित राधारमण सेमवाल कहते हैं कि हम पूरी रात सो नहीं पाए। अभी भी खीर गंगा की वह खौफनाक आवाज कानों में गूंज रही है। यात्रा सीजन में गुलजार दिखने वाला धराली पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। चेहरों पर झलक रही नाउम्मीदी अमित सेमवाल बताते हैं कि धराली में तमाम होटल और होम स्टे थे, जिनका संचालन अधिकांश युवा ही कर रहे थे, साथ ही इनमें काम करने वाले भी अधिकांश युवा थे। ऐसे में हर कोई अपने जानने वाले के बारे में ही एक-दूसरे से बात कर पा रहे हैं। यहां मलबा इतना पटा है कि तलाशें भी तो कहां और किसको। हालात देखकर लगाता नहीं अब इस मलबे से कुछ उम्मीद बचकर आएगी। अंधेरा डरा रहा, संपर्क भी नहीं हो रहा स्थानीय लोगों का कहना है कि पूरे इलाके की बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। अंधेरी रात को काटना मुश्किल हो रहा है। मोबाइल नेटवर्क भी मंगलवार शाम से ही ठप पड़ा है, किसी से कोई संपर्क नहीं हो रहा है। जिन लोगों के परिजन बाहर रहते हैं, वह अपनों की सलामती के लिए सबसे ज्यादा परेशान हैं।