भविष्य में इस स्थान पर होंगे भगवान बदरीनाथ के दर्शन
लोक मान्यताओं के अनुसार भविष्य बदरी ऐसा स्थान है, जहां भविष्य में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। दावा है कि इसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं। पत्थर पर भगवान के स्वरूप की आकृति उभरने लगी है।
मान्यताओं के अनुसार बड़ा प्राकृतिक और आध्यात्मिक बदलाव होगा
मान्यताओं के अनुसार एक बड़ा प्राकृतिक और आध्यामिक बदलाव होगा। जब वर्तमान बदरीनाथ मार्ग पर जय-विजय पहाड़ आपस में जुड़ जाएंगे और जोशीमठ नृसिंह मंदिर में विराजमान भगवान नृसिंह की मूर्ति खंडित हो जाएगी तब भगवान बदरीनाथ के दर्शन भविष्य बदरी में होंगे, जो तपोवन मार्ग पर है। यहां अभी पैदल छह किमी चलना होता है। बताया जा रहा है कि जंगल के बीच एक पत्थर पर धीरे-धीरे भगवान के स्वरूप की आकृति उभर रही है। इस भविष्य बदरी में भी पूजा-अर्चना विधिवत रूप से हो रही है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
पत्थर पर उभर रही भगवान की आकृति और बदरीश पंचायत
भविष्य बदरी में जहां भविष्य में भगवान बदरीनाथ में दर्शन देंगे यह स्थान जंगल में देवदार के वृक्षों के बीच है। भविष्य बदरी के पुजारी सुशील डिमरी बताते हैं कि धीरे-धीरे इस पत्थर पर भगवान की दिव्य आकृति और बदरीश पंचायत के सभाओं के देवताओं की आकृति आ रही है। धार्मिक विषयों पर लिखने वाले सामाजिक युवा कार्यकर्ता संजय कुंवर बताते हैं कि दिव्य और आकर्षक रूप से भगवान बदरीनाथ की मूर्ति यहां पर दृष्टिगत हो रही है। कहते हैं कि मान्यताओं में जो बात कही जाती है, वह स्पष्ट हो रही है।
पांच से छह किमी पैदल चलकर पहुंचना पड़ता है भविष्य बदरी
जोशीमठ से 15 किमी तपोवन तक सड़क मार्ग है। यहां से रिंगी होते हुए भी भविष्य बदरी जा सकते हैं। वर्तमान में तपोवन मार्ग पर सलधार से भी भविष्य बदरी के लिए मार्ग जाता है। सलधार से छह किमी पैदल भविष्य बदरी जाना पड़ेगा। रिंगी तक सड़क जा रही है। वहां से भी पांच किमी पैदल भविष्य बदरी जाना होगा। वर्तमान में सुभाई गांव में भविष्य बदरी के संकेत का मंदिर है। यहां पर वर्तमान में पूजा होती है।
भगवान विष्णु के स्वरूप बदरीनाथ को समर्पित है बदरीनाथ मंदिर
उत्तराखंड के चमोली जिले में बदरीनाथ मंदिर स्थित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे है। मंदिर भगवान विष्णु के स्वरूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह चारधाम में से एक धाम है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना।