लोक संस्कृति और सौहार्द का प्रतीक है फूलदेई पर्व
चैत्र माह की संक्रांति को मनाया जाने वाला पर्व फूलदेई शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसे कुमाऊं में फूलिया संक्रांत के रूप में भी मनाया जाता है। बच्चे सुबह उठकर लोगों के घरों में जाकर दहलीज में फूल और चावल...
चैत्र माह की संक्रांति को मनाया जाने वाला पर्व फूलदेई शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसे कुमाऊं में फूलिया संक्रांत के रूप में भी मनाया जाता है। बच्चे सुबह उठकर लोगों के घरों में जाकर दहलीज में फूल और चावल डालते हैं। साथ ही उन्हें शुभकामनाएं भी देते हैं।
सूर्य के मीन राषि में प्रविष्ट होते ही पूर्ण बसंत का आगमन होता है। जिस प्रकार बसंत ऋतु में प्रकृति नव पल्लवों से युक्त होकर आनंदमयी लगती है, उसी प्रकार लोग भी आनंद मनाते हैं। इस त्योहार में बच्चे थाली और टोकरी में बसंत ऋतु के प्रतिनिधि के तौर पर विभिन्न प्रकार के फूल और चावल रखकर घरों की दहलीज की पूजा करते हैं। इसके बाद पास पड़ोस के लोगों के घरों में जाकर ‘फूलदेई छम्मादेई दैणी द्वार, भरि भकार मंगलगान कर उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। बदले में घर का मुखिया उन्हें गुड़, चावल और पैसे भेंट किए जाते हैं। भेंट में प्राप्त चावल का सायंकाल पकवान (सायी) बनाया जाता है।
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मंगलगान का यह होता है अर्थ
बागेश्वर। दहलीज पूजन के दौरान बच्चों द्वारा ‘फूलदेई छम्मादेई दैणी द्वार, भरि भकार मंगलगान किया जाता है। जिसका अर्थ यह होता है कि अपनी दहलीज फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो, यह सबकी रक्षा करे। दहलीज, घर और समय सबके लिए सफल हो तथा सबके घरों में अन्न का पूर्ण भंडार हो।
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इनसेट कोट
फूलदेई पर्व सामाजिक समरसता, सौहार्द और नव बसंत का प्रतीक है। हिंदी वर्ष का आनंद चैत्र से और घर का आरंभ दहलीज से होता है। इसलिए प्रकृति, पूजन और द्वार पूजन से यह फूलदेई पर्व हमारे लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ करता है। वर्तमान में इसकी महत्ता समझनी होगी। जब हमारे फूल, दहलीज व भकार अक्षुण्ण रहेंगे तभी हमारे जीवन में खुशहाली होगी।
- पं. गोपालकृष्ण जोशी, प्रवक्ता, इंटर कॉलेज, क्वैराली।