महंगाई छोटा किया रावण परिवार
- पिछले साल बने थे 22 पुतले, इस बार घटकर 15 हुई संख्या रावण परिवार के पुतलों पर पड़ी महंगाई की मार रावण परिवार के पुतलों पर पड़ी महंगाई की...

अल्मोड़ा, संवाददाता। नगर का दशहरा आयोजन सुप्रसिद्ध है। इसका प्रमुख आकर्षण में एक रावण परिवार के पुतलों का दहन भी है। यहां पिछले कई वर्षों से रावण परिवार के दो दर्जन से अधिक सदस्यों के पुतलों का यहां निर्माण होता है। लेकिन लगातार बढ़ रही मंहगाई के कारण पुतलों की संख्या भी घटने लगी है। पिछले साल जहां महोत्सव में 22 पुतले जलाए गए थे वहीं, इस बार महंगाई की मार से यह संख्या घटाकर 15 कर दी गई है।
अल्मोड़ा में दशहरा हिमाचल के कुल्लू दशहरा महोत्सव जैसा लोकप्रिय है। दशहरा महोत्सव देखने देश-विदेश से यहां पर्यटक पहुंचते हैं। शहर के इतिहास के जानकारों के अनुसार अल्मोड़ा में वर्ष 1925 से रावण के पुतले बनाए जाने लगे। शुरुआत में सिर्फ रावण का ही पुतला बनाया जाता था। धीरे-धीरे महोत्सव की भव्यता बढ़ती गई। अब दशहरा महोत्सव भव्य तरीके से मनाया जाने लगा है। लेकिन बढ़ती महंगाई का असर अब भव्यता पर पड़ने लगा है। लेकिन दिनों-दिन बढ़ रही मंहगाई के चलते इन पुतलों के संख्या में अब कमी आने लगी है। पांच वर्ष पहले जहां रावण परिवार के 22 पुतले जलाए जाते थे वहीं अब ये संख्या घटकर 15 पहुंच गई है। इसकी वजह लगातार बढ़ती महंगाई है। पुतला निर्माण कार्य से जुड़े कारीगरों के मुताबिक चार से पांच वर्ष पहले जहां एक पुतला निर्माण में 15 से 20 हजार रुपये खर्च आता था, वहीं अब इनकी निर्माण लागत लगातार 20 फीसदी से अधिक बढ़ गई है। बताया कि दशहरा महोत्सव समिति की ओर से पुतला निर्माण करने वाली समितियों को धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।
इन पुतलों का हो रहा निर्माण
रावण, अहिरावण, मेघनाद, ताड़का, अक्षय कुमार, देवांतक, खर, दूषण, अतिकाय, कलकासुर, कुंड, त्रिशरा, मायासुर, मारीच, मकरासुर, आदि।
समितियां करती हैं पुतलों का निर्माण
अल्मोड़ा में पुतले बाजार से चंदे और आपसी सहयोग से ही बनाये जाते हैं। महंगाई के चलते इनके निर्माण में दोगुनी लागत लग रही है। रावण का पुतला बनाने वाले नंदादेवी निवासी अर्जुन बिष्ट का कहना कि इस बार एक पुतले की लागत 25 हजार से अधिक आ रही है। जो पिछली बार से करीब 20 फीसदी अधिक है।
समिति से जुड़े सदस्य स्वयं बनाते हैं पुतला
अल्मोड़ा में पुतला बनाने के लिए बाहर से लोगों को नहीं बुलाया जाता है। यहां पुतला समिति के सदस्य आपस में मिलकर इसका निर्माण करते हैं। कलाकारी के तजुर्बेकार लोगों के निर्देशन में छोटे बच्चे भी पुतला बनाने में सहयोग कर परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
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