गिरै कौतिक में देर शाम खरीददारी करने को उमड़ी भीड़
उत्तरायणी पर्व के तीसरे दिन भिकियासैंण में लगने वाले पौराणिक गिरै कौतिक में देर शाम लोगों की भीड़ उमड़ी। बाजार में लगे मेले में सजे दुकानों से लोगों ने खरीदारी की। दोपहर के बाद मेला स्थल पुराने बाजार...
उत्तरायणी पर्व के तीसरे दिन भिकियासैंण में लगने वाले पौराणिक गिरै कौतिक में देर शाम लोगों की भीड़ उमड़ी। बाजार में लगे मेले में सजे दुकानों से लोगों ने खरीदारी की।
दोपहर के बाद मेला स्थल पुराने बाजार में भीड़ होनी शुरू हुई। इस दौरान स्थानीय दुकानदारों सहित मैदानी क्षेत्रों से पहुचें व्यवसायियों ने अपने स्टालों को सजा के ऱखा था। इनसे महिलाओं व बच्चों ने जमकर खरीददारी की। मेले में जलेबी,चाऊमीन का भी खासा आनंद लोगों ने उठाया। मेले में शांति व्यवस्था के लिये पुलिस मुस्तैद रही। पलायन के कारण हर वर्ष मेले में कम हो रही भीड़ बागेश्वर। पहाड़ में लगातार पुराने समय में मेलजोल व संस्कृति के ध्वजवाहक रहे पौराणिक मेलों के संरक्षण के अभाव में कमी आई है। गिरै कौतिक भी इन में से एक है। अब मेले से झोड़े,भगनोले गायब हैं। किसी भी सामाजिक संस्था की ओर से मेले को आकर्षक बनाने के लिये पहल तक नहीं जा रही है। मेला बाजार में भीड़ भाड़ तक सीमट कर रह गया है। पलायन के कारण हर वर्ष मेले में भीड़ कम हो रही है।
गिर खेल 50 साल से विलुप्त, अब गिरै कौतिक का आयोजन जारी
भिकियासैंण। प्रत्येक वर्ष उत्तरायणी के तीसरे दिन से लगने वाले पौराणिक गिरै कौतिक का अपना अतीत का इतिहास रहा है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि गिर का खेल जिसे आज हाकी के नाम से जाना जाता है। एक जमाने में सबसे लोक प्रिय खेलों में शुमार था। लकड़ी की विशेष किस्म की गेंद, स्थानीय लांठी डंडो से बनाये गये स्टिक से गिर खूब खेला जाता था। उत्तरायणी के तीसरे दिन भिकियासैंण के रौखड़ में इसका भव्य आयोजन होता था। जिसे देखने के लिये नया,चौकोट, सल्ट, ककलासों,सिलोर पट्टीयों के लोग भारी संख्या में पहुंचते थे। इस दिन मेला जैसा नजारा होने की वजह से इसे गिरै कौतिक के नाम दिया गया। समय बदला मेले का स्वरूप भी बदला। बीते 50 वर्षों से गिर खेल तो विलुप्त हो गया। लेकिन गिरै कौतिक आज भी लगता है। दो दिन चलने वाले मेले में बाहरी क्षेत्रों से भी दुकानदार यहां अपने स्टाल लेकर पहुचते हैं मुख्य बाजार में लगने वाले मेले में शांति व्यवस्था में पुलिस टीम तैनात रहती है।