अक्षय तृतीया: कल मनाया जाएगा अक्षय पुण्य की कामना का पर्व
अक्षय पुण्यफल की कामना से अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन 18 अप्रैल को मनाया जाएगा। भगवान परशुराम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाएगी। इस वर्ष तृ़तीया तिथि 17 अप्रैल मंगलवार को मध्यरात्रि...
अक्षय पुण्यफल की कामना से अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन 18 अप्रैल को मनाया जाएगा। भगवान परशुराम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाएगी। इस वर्ष तृ़तीया तिथि 17 अप्रैल मंगलवार को मध्यरात्रि के उपरांत 03 बजकर45 मिनट पर लगेगी, जो 18 अप्रैल को मध्यरात्रि के बाद एक बजकर 30 मिनट तक रहेगी।
अक्षय तृतीया का व्रत एवं पूजन कृतिका नक्षत्र में करने का विधान है। कृतिका नक्षत्र 18 अप्रैल को रात्रि 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लग जाएगा। ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रसन्नता के लिए उपवास रहकर यह पर्व मनाना चाहिए। श्रीहरि विष्णु के अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण की भी पंचोपचार, दशोपचार और षोडशोपचार पूजा की जाती है। इस दिन जवा, चंपा, एवं कमल के पुष्प विशेष रूप से भगवान को अर्पित करना चाहिए। उपवास रखने वाले व्यक्ति के लिए दान का भी विधान है।
शास्त्रों के अनुसार व्रती को जल से भरा हुआ कलश, नवीन वस्त्र, पंखा, खड़ाऊं, छाता, चावल, दही, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, जौ, गेहूं, चना, दूध, गुड़ आदि वस्तुएं दान करना चाहिए। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त की संज्ञा भी दी गई है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन बिना मुहूर्त का विचार किए किसी भी नए काम की शुरुआत उन्नतिकारक होती है। विवाह, यज्ञोपवीत, नामकरण, मुंडन, गृह प्रवेश आदि कोई भी मांगलिक कार्य इस दिन किए जा सकते हैं। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के अंश के रूप में परशुराम का अवतार हुआ था। लोक परंपरा में इस दिन सोने के क्रय का चलन भी बहुतायत में हो गया है। हालांकि शास्त्रों में अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण क्रय करने का कोई विधान वर्णित नहीं है।