प्रभु प्रभाव नहीं, भाव देखते हैं: राघव ऋषि
Varanasi News - वाराणसी में आचार्य प्रवर राघव ऋषि ने कहा कि भक्ति जब ज्ञान के साथ होती है, तो जीव को पूर्णता मिलती है। उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य जीवन प्रभु संकीर्तन के लिए है, न कि भोग विलास के लिए। महालक्ष्मी...

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। यह संसार सिर्फ प्रभाव देखता है किंतु प्रभु जीव का प्रभाव नहीं, भाव देखते हैं। मनुष्य स्वभाव के आगे हार जाता है। जिसने अपने स्वभाव को प्रकृति के अनुरूप कर लिया, वह जीव सुखी हो जाता है।
ये बातें आचार्य प्रवर राघव ऋषि ने कहीं। वह श्रीऋषि आश्रम सेवा समिति के तत्वावधान में नुआंव स्थित उर्मिला उपवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस, शुक्रवार को प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भक्ति जब ज्ञान के साथ होती है तो वह जीव को पूर्ण बनाती है। ज्ञान प्रेम के बिना निरर्थक है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का समन्वय होने से प्रभु मिलन होता है। थोथा ज्ञान अभिमान लाता है। भक्ति नम्रता लाती है। उद्धवजी ज्ञानी थे परंतु प्रेम के अभाव में उनके जीवन में अहंकार था। जीव ईश्वर का स्मरण करे, यह साधारण भक्ति है परन्तु वह भक्त धन्य है जिसे भगवान याद करें। भक्ति ऐसी करो कि स्वयं भगवान तुम्हारा स्मरण करें। गोकुल, गोपियों को याद करके भगवान रोते थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन भोग विलास के लिए नहीं बल्कि प्रभु संकीर्तन के लिए मिला है।
महालक्ष्मी पूर्णाभिषेक की पूर्णाहुति
कथा के विश्राम दिवस पर महालक्ष्मी पूर्णाभिषेक की भी पूर्णाहुति हुई। पं. राघव ऋषि के आचार्यत्व में भगवती महात्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी के साधकों ने श्रीयंत्र के नौ आवरणों का षोडशोपचार पूजन किया। 21 भूदेवों ने श्रीसूक्त एवं लक्ष्मी सूक्त आदि से हवन वेदी में आहुतियां डालीं। इस मौके पर भण्डारा भी हुआ।
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