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अप्पा जी व उस्ताद अहमद जान थिरकवा को साज से किया याद

ठुमरी साम्राज्ञी पद्मविभूषण गिरिजा देवी अप्पा जी एवं तबला के प्रख्यात उस्ताद पद्मभूषण अहमद जान थिरकवा को शनिवार से शुरू संगीत संध्या बसंतोत्सव समर्पित रही। सनबीम वरुणा के हार्मोनी ऑडिटोरियम में...

अप्पा जी व उस्ताद अहमद जान थिरकवा को साज से किया याद
1/ 2अप्पा जी व उस्ताद अहमद जान थिरकवा को साज से किया याद
राशिद मुस्तफा थिरकवा एवं निशात खां ने सितार से किया प्रभावित
2/ 2राशिद मुस्तफा थिरकवा एवं निशात खां ने सितार से किया प्रभावित
वाराणसी। निज संवाददाता Sun, 14 Jan 2018 01:51 PM
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ठुमरी साम्राज्ञी पद्मविभूषण गिरिजा देवी अप्पा जी एवं तबला के प्रख्यात उस्ताद पद्मभूषण अहमद जान थिरकवा को शनिवार से शुरू संगीत संध्या बसंतोत्सव समर्पित रही। सनबीम वरुणा के हार्मोनी ऑडिटोरियम में उस्ताद अहमद जान के खानदान से जुड़े उस्ताद राशिद मुस्तफा थिकरवा एवं उस्ताद सारिक मुस्तफा थिरकवा ने तबले की थाप से अपने घराने की वादन शैली का परिचय कराया तो उस्ताद निशात खां ने सितार पर तान छेड़ी। 

संगीत परिषद, काशी की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगीत संध्या का शुभारंभ  सनबीम शिक्षण समूह के अध्यक्ष दीपक  मधोक, भारती मधोक, वरिष्ठ तबला वादक पं. जे मैसी,  विनय जैन एवं भोलानाथ बरनवाल आदि ने गिरिजा देवी एवं अहमद जान थिरकवा के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर किया।  इसके बाद सप्तक समूह की उपशास्त्रीय गायिका सुचरिता गुप्ता के निर्देशन में  संगीत साधिकाओ ने गणेश वंदना पेश किया। फिर बसंत ऋतु के स्वागत में गीत सुनाया। 
अगली प्रस्तुति तबला वादन की रही।

फर्रुखाबाद घराने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अहमद जान के भतीजे उस्ताद राशिद मुस्तफा  थिरकवा और इनके बेटे सारिक मुस्तफा थिरकवा ने तबले की जुगलबंदी से सभी को प्रभावित किया। उन्होंने तीनताल में कायदे, रेला, पेशकार, गत आदि बजाया। दिल्ली, हरियाण व लखनऊ आदि घराने की शैली को विस्तार दिया। इनके साथ सारंगी पर पं. संतोष मिश्र ने संगत की। अंत में इटावा घराने के उस्ताद निशात खान ने ढलती निशा को सितार की झंकार से झंकृत किया। उन्होंने सितार पर ध्रुपद एवं ख्याल का समावेश कर आनंदित किया। राग हमीर में आलाप व जोड़ के बाद मध्यलय तीनताल एवं द्रुत तीनताल में निबंद्ध गत बजाया। इनके साथ तबले पर उस्ताद राशिद मुस्तफा थिरकवा ने संगत की।  स्वागत डॉ रवींद्र शाह,  विनोद अग्निहोत्री  एवं गोपाल गुर्जर तथा संचालन डॉ. प्रीतेश आचार्य ने किया। 

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