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रामनगर की रामलीला: शिव का धनुष टूटा, उधर परशुराम का क्रोध जागा

सारा जनकपुर राम-लक्ष्मण के रंग-रूप पर मोहित था लेकिन उनके असल पुरुषार्थ की अभी परीक्षा होनी थी। जब एक से बढ़कर राजा, यहां तक रावण भी धनुष को हिला नहीं सका। तब राजा जनक भी घबड़ा गये। लेकिन श्रीराम के...

शिव का धनुष टूटा, उधर परशुराम का क्रोध जागा
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रामनगर की रामलीला
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रामनगर (वाराणसी)। हिन्दुस्तान प्रतिनिधिSun, 10 Sep 2017 12:54 PM
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सारा जनकपुर राम-लक्ष्मण के रंग-रूप पर मोहित था लेकिन उनके असल पुरुषार्थ की अभी परीक्षा होनी थी। जब एक से बढ़कर राजा, यहां तक रावण भी धनुष को हिला नहीं सका। तब राजा जनक भी घबड़ा गये। लेकिन श्रीराम के रूप में तो वहां स्वयं नारायण मौजूद थे। उनके छूते ही धनुष टूट गया। फिर चहुंओर श्रीराम की जयकार के अलावा कुछ न सुनने को बचा और न देखने को। 

रामनगर में शनिवार को धनुष यज्ञ और परशुराम संवाद से रामलीला की शुरुआत हुई। बालकाण्ड के 238.9 से 289 तक के दोहों का सस्वर पाठ हुआ। रामलीला के प्रसंग में राजा जनक शतानन्द को विश्वामित्र को श्रीराम लक्ष्मण सहित रंगभूमि में पधारने का आमंत्रण देने को कहते हैं। विश्वामित्र श्रीराम लक्ष्मण के साथ धनुषयज्ञ स्थल पधारते हैं। सभी राजा अपने पौरुष का प्रदर्शन करते हैं। कुछ हंसी का पात्र बनने के डर से धनुष के नजदीक भी नहीं गए। तब राजा जनक क्रोध में आकर कहते हैं कि अगर मैं जानता कि यह धरती वीरों से खाली है तो मैं ऐसी प्रतिज्ञा कर अपना उपहास नहीं कराता। 

यह सुन लक्ष्मण आवेश में आ जाते हैं। कहते हैं-अगर प्रभु की आज्ञा मिले तो इस ब्रह्मांड को गेंद सा उछाल दूं। तब विश्वामित्र श्रीराम से जनक की चिंता कम करने के लिए कहते हैं। श्रीराम धनुष तोड़ने के लिए चल देते हैं। लक्ष्मण पैर से पृथ्वी दबा लेते हैं। तोप की गर्जना के साथ प्रभु धनुष तोड़ देते हैं। तब सीता रंगभूमि पहुंचती हैं और श्रीराम के गले मे जयमाल डाल देती हैं। तभी पहुंचे परशुराम शिव का धनुष टूटा देख क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध देख सारे राजा भाग खड़े होते हैं।  परशुराम कहते हैं कि जिसने धनुष तोड़ा है वह सामने आए वर्ना धोखे में सब मारे जाएंगे। लक्ष्मण और परशुराम के बीच देर तक विवाद होता है। तब श्रीराम परशुराम से कहते हैं कि सब तरह से हम आपसे हारे हैं, अत: आप अपराध को क्षमा कीजिये। वह धनुष पुराना था, छूते ही टूट गया। 

परशुराम रमापति का धनुष श्रीराम को देकर खींचने के लिए कहते हैं। उसकी प्रत्यंचा श्रीराम के हाथ में आते ही चढ़ जाती है। परशुराम का सन्देह दूर हो जाता है। राजा जनक नगर और मंडप आदि सजाने का आदेश देते हैं। आरती के उपरांत यहीं लीला को विराम दिया गया। 

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