Padma Shri award to Vagish Shastri आर्यों से जुड़ा गलत इतिहास न पढ़ाया जाए : वागीश शास्त्री, Varanasi Hindi News - Hindustan
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आर्यों से जुड़ा गलत इतिहास न पढ़ाया जाए : वागीश शास्त्री

आर्यों की उत्पत्ति भारत में हुई और यहीं से विश्व के अन्य देशों में फैली थी परन्तु छात्रों को पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से गलत बात पढ़ाई जा रही है। विद्यार्थियों को गलत इतिहास नहीं पढ़ाया जाना...

वाराणसी। प्रमुख संवाददाता Tue, 3 April 2018 05:55 PM
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आर्यों से जुड़ा गलत इतिहास न पढ़ाया जाए : वागीश शास्त्री

आर्यों की उत्पत्ति भारत में हुई और यहीं से विश्व के अन्य देशों में फैली थी परन्तु छात्रों को पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से गलत बात पढ़ाई जा रही है। विद्यार्थियों को गलत इतिहास नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। 

सोमवार को दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री अलंकरण ग्रहण करने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में संस्कृत विद्यान वागीश शास्त्री ने कहा कि काशी को पौराणिक नगरी के रूप में संवारने के जो प्रयास किए जा रहे हैं उनमें संस्कृत भाषा की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। संस्कृत के नीतिवचनों को काशी के प्रत्येक चौराहे पर लिखवाया जाना चाहिए। मार्ग पट्टिका पर हिंदी-अंग्रेजी के अलावा संस्कृत में भी उल्लेख होना चाहिए। 

वाग्योग चेतनापीठम के संस्थापक और  संस्कृत-योग-आयुर्वेद-प्राच्यविद्या आदि के संवर्धन की सार्वभौम संस्था ‘स्वस्तिवाचन’ के ब्रांड अंबेस्डर ‘वागीश शास्त्री’ के उपनाम से विख्यात योग, तंत्र और भाषा शास्त्र के विद्वान प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान दिया है। प्रो. ‘वागीश शास्त्री’ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत साहित्यकार, पाणिनीय वैयाकरण, भाषावैज्ञानिक, योगी और तंत्रवेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। 84 वर्षीय प्रो. त्रिपाठी का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जनपद के बिलइया गांव में हुआ था। 

वागीश शास्त्री ने 1959 में वाराणसी के ‘टीकमणी संस्कृत महाविद्यालय’ में बतौर अध्यापक कार्य आरंभ किया फिर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दशकों तक सेवा दी। प्रो. त्रिपाठी को वर्ष 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संस्कृत भाषा में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु ‘प्रेसिडेंसिअल सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर’, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा यशभारती और विश्वभारती सहित देश-विदेश के अनेक सम्मानों से विभूषित किया जा चुका का है। 

राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से उन्हें ‘बाणभट्ट पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है । प्रो.  त्रिपाठी को 1982 में ‘काशी पंडित परिषद’ की ओर से ‘महामहोपाध्याय’ की उपाधि से अलंकृत किया जा चुका है। उन्होंने संस्कृत सीखने की सरल एवं वैज्ञानिक विधि तैयार की है जिसकी सहायता से बिना रटे संस्कृत 180 घंटे में सीखी जा सकती है।

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