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डेढ़ लाख यात्रियों वाले कैट स्टेशन पर चिकित्सा सेवाएं बेहाल

रेलवे को यह बताने की जरूरत नहीं कि बनारस का स्टेशन कितना महत्वपूर्ण है। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह पीएम संसदीय क्षेत्र के यात्रियों की सेवा करता है बल्कि यहां देशभर से रोज हजारों की संख्या में...

डेढ़ लाख यात्रियों वाले कैट स्टेशन पर चिकित्सा सेवाएं बेहाल
वाराणसी। अमित वर्माFri, 17 Nov 2017 01:37 PM
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रेलवे को यह बताने की जरूरत नहीं कि बनारस का स्टेशन कितना महत्वपूर्ण है। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह पीएम संसदीय क्षेत्र के यात्रियों की सेवा करता है बल्कि यहां देशभर से रोज हजारों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। विदेशी र्पयटकों की संख्या भी अच्छी खासी होती है लेकिन जरूरत पड़ने पर कैंट स्टेशन पर किसी यात्री को जरूरी दवाएं या उपचार नहीं मिल सकता। डॉक्टर या कंपाउंडर तो दूर की बात है।

दो दिन पहले साबरमती एक्सप्रेस से यात्रा कर रही एक गर्भवती महिला की हालत बिगड़ी थी और सूचना देने के बाद भी कैंट स्टेशन पर दो घंटे तक उसे चिकित्सकीय मदद नहीं मिल सकी। गुरुवार को सुबह 9.00 बजे प्लेटफार्म नंबर -2 पर जहरखुरानी के शिकार मऊ निवासी दंपती अचेत पड़े रहे। अधिकारी सुविधाएं उपलब्ध कराने का लाख दावा करें लेकिन रोज सवा-डेढ़ लाख यात्रियों को ढोने वाले कैंट स्टेशन पर स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल हैं। हाल यह कि यहां नशे की चीजें तो आसानी से हासिल हो जाती हैं लेकिन यात्रियों को सिरदर्द या बुखार की टिकिया मिल सके, इसकी व्यवस्था नहीं। यह हाल तब है जबकि मंत्री से लगायत बड़े अधिकारी तक यहां लगातार दौरे व निरीक्षण करते हैं। 

दो साल पहले रेलवे ने देशभर के बड़े व महत्वपूर्ण स्टेशनों पर जरूरी दवाएं उपलब्ध कराने तथा राजधानी-शताब्दी जैसी ट्रेनों में फर्स्ट एड की सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। यह भी कहा गया था कि बड़े स्टेशनों पर जन औषधि केंद्र खोले जाएंगे लेकिन कैंट स्टेशन पर चिकित्सा सेवाएं क्यों उपलब्ध नहीं हैं? पूछने पर सीएमएस उषा किरन कहती हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही डॉक्टर है उसी के सहारे रेलवे का अस्पताल है जिसपर पांच हजार कर्मचारियों की जिम्मेदारी है। अगर पूर्वोत्तर रेलवे का लहरतारा स्थित अस्पताल न हो तो रेल कर्मचारियों व उनके बीमार परिजनों को निजी अस्पताल ले जाना पड़ेगा। इसी डाक्टर के भरोसे पांच कॉलोनियों में रहने वाले परिवार, लोको पायलटों का स्वास्थ्य परीक्षण, सेवानिवृत्त कर्मचारियों के इलाज का जिम्मा भी है। इतना ही नहीं मुगलसराय आउटर से लेकर जौनपुर, जंघई व जफराबाद तक स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों और उपचार की जिम्मेदारी भी इसी चिकित्सक के भरोसे है। सीएमएस कहती हैं कि चिकित्सकों के दो पद स्वीकृत हैं पर दो साल से एक पद खाली है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि रेल यात्रियों को डाक्टरी सुविधा कहां से उपलब्ध करायी जाए?

कर्मचारी बढ़े लेकिन डॉक्टर नहीं
जब से उत्तर रेलवे का अस्पताल बना है रेल कर्मचारियों की संख्या तकरीबन दोगुनी हो गई। इसके साथ ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या और कॉलोनियों की आबादी भी बढ़ी लेकिन चिकित्सक के पद दो ही रहे। कैंट स्टेशन पर ट्रेनों व यात्रियों की संख्या भी रोज बढ़ रही, ऐसे में कैंट स्टेशन पर यात्रियों के इलाज के लिए डाक्टर कहां से आए।

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