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काशी में कश्मीरी: हम भी हिंदुस्तानी हैं, शक की नजर से मत देखो

राजघाट रेलवे क्रासिंग के पास अजगेब शहीद की परिसर में बनाई गई अस्थाई झोपड़ियां डाल कर रहने वाले कश्मीरी अपने ताजा हालात को लेकर आाहत हैं। बीते बुधवार को हरहुआ पुलिस द्वारा कुछ कश्मीरियों को घंटों...

काशी में कश्मीरी: हम भी हिंदुस्तानी हैं, शक की नजर से मत देखो
वाराणसी। अरविंद मिश्रFri, 16 Feb 2018 02:34 PM
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राजघाट रेलवे क्रासिंग के पास अजगेब शहीद की परिसर में बनाई गई अस्थाई झोपड़ियां डाल कर रहने वाले कश्मीरी अपने ताजा हालात को लेकर आाहत हैं। बीते बुधवार को हरहुआ पुलिस द्वारा कुछ कश्मीरियों को घंटों थाने पर बैठाए रखने का इन्हें सख्त मलाल है। गुरुवार को जब आप के अपने अखबार हिन्दुस्तान की टीम इनके बीच पहुंची तो इस झोपड़पट्टी में रहने वाला हर शख्स अपनी झोपड़ी से बाहर निकल आया। उनका कहना था ‘एक तो हम पहले ही हालात के मारे हैं ऊपर से हमें शक की नजर से देखा जा रहा है यह हमारे लिए और भी दुखदायी है। अल्लाह की कसम हम भी सच्चे हिंदुस्तानी हैं, हमें शक की नजर से मत देखो।’

इन सभी के चेहरों पर गुस्से और दुख के मिलेजुले भाव रह-रह कर उभर रहे थे। कोई महिला इन नागरिकों के सामने अपने गुस्से का इजहार कर रही है तो कोई पुरुष अपनी मजबूरी और कश्मीर के मौसमी हालात की हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा था। कुछ हिंदी में बोल रहे हैं तो कुछ कश्मीरी बोली में। इसी भीड़ के बीच से बुजुर्ग महिला अपने लोगों को किनारे करते हुए इस संवाददाता के करीब पहुंची। उसका हाथ पकड़ा और कहा ‘गौर से देख मेरी आंखों में, मेरे झुर्री वाले चेहरे को देख, क्या मैं तुझे बेगैरत दिखाई देती हूं।’ 

इससे पहले कि वह महिला अपनी बात पूरी कर पाती एक अन्य अधेड़ महिला ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी ‘देख बेटा हम भी बेटियों वाले हैं,हमारी भी इज्जत है। हम कोई गलत काम करने यहां नहीं आए हैं। हम बस गरीबी के मारे हैं और कुछ नहीं। मैं हाथ जोड़ती हूं, अल्लाह का वास्ता देती हूं हमें हमारे हाल पर छोड़ दे बेटा।’ इसी बीच एक और बुजुर्ग महिला ने दोनों हाथ जोड़ कर विनती के लहजे में कहा ‘हमारी बेटियों पर रहम करो, हमें कुछ ही दिनों में यहां से वापस जाना है। हम नहीं चाहते कि हमारी इज्जत को यूं उछाला जाए...।’ वह अधेड़ महिला अपनी बातें कह ही रही थी कि अधपकी दाढ़ियों वाला एक अधेड़ पुरुष आगे बढ़ा। पहले उसने कश्मीरी बोली में उन किशोरियों को झोपड़ी में जाने के लिए कहा जो स्थानीय नागरिकों को सवालिया नजरों से देख रही थीं। उस अधेड़ के एक आदेश पर सभी किशोरियां झोपड़ी के अंदर चली गईं। उस अधेड़ ने, बाद में जिसका नाम दिलदार खान पता चला, दोनों हाथ जोड़ कर कहा ‘हमें कोई तकलीफ नहीं है। न यहां न वहां (कश्मीर), कहीं भी हमें कोई तकलीफ नहीं है। बस हम हालात के मारे हैं। अल्लाह आप सब को बरक्कत दे, बस इतनी सी दरख्वास्त हैं हमें हिकारत भरी नजरों से मत देखो। भारत मां हमारी भी मां है। हम भी भारत मां के बेटा-बेटी हैं।’

पुलिस के हस्तक्षेप के बाद शांत हुआ गुस्सा
संदिग्ध होने के शक पर वाराणसी पुलिस द्वारा छानबीन किए जाने से आहत कश्मीरी नागरिकों का गुस्सा भी पुलिस के हस्तक्षेप से शांत हुआ। स्थानीय नागरिकों के उनकी अस्थाई बस्ती में पहुंचने के बाद अचानक शुरू हुए शोर शराबे को देखते हुए मोहल्ले के एक व्यक्ति ने आदमपुर थाने को सूचना थी। सूचना मिलने के कुछ देर बाद एक एसआई फैंटम दस्ते के साथ मौके पर पहुंचा। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद उनका गुस्सा शांत हुआ और वे अपने बारे में बातचीत करने के लिए तैयार हुए। 

सैलाब में उजड़ गए थे गांव के गांव
सन 2014 में आए सैलाब के बाद से इन गरीबों की हालत और भी खराब हो गई। राजघाट के पास अस्थाई झोपड़पट्टी में इन दिनों रह रहे कई परिवार ऐसे हैं जिनके घर उस सैलाब में बह गए थे। वह कयामत बरपा हुए धीरे-धीरे चार साल होने को आए लेकिन वे अब तक दोबारा अपना घर नहीं बना सके हैं। (क्रमश:) 

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