ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश वाराणसीथियेटर ओलंपिक: मंच पर भी भुगता हुआ सच जीते हैं कश्मीरी

थियेटर ओलंपिक: मंच पर भी भुगता हुआ सच जीते हैं कश्मीरी

रंगकर्मी आमतौर पर दूसरों का दर्द रंगमंच पर जीते हैं। कुछ हिमानी शिवपुरी जैसे होते हैं जो अपना दर्द भूल कर(बीते सप्ताह अस्पताल में जीवन-मौत से संघर्ष करती मां और मंच में से रंगमंच को चुनना) रंगधर्म को...

थियेटर ओलंपिक: मंच पर भी भुगता हुआ सच जीते हैं कश्मीरी
वाराणसी। अरविंद मिश्रThu, 22 Mar 2018 02:25 PM
ऐप पर पढ़ें

रंगकर्मी आमतौर पर दूसरों का दर्द रंगमंच पर जीते हैं। कुछ हिमानी शिवपुरी जैसे होते हैं जो अपना दर्द भूल कर(बीते सप्ताह अस्पताल में जीवन-मौत से संघर्ष करती मां और मंच में से रंगमंच को चुनना) रंगधर्म को चुनते हैं। वहीं कुछ ऐसे हैं जो भुगते हुए दर्दनाक सच को रंगमंच पर भी जीते हैं। वे कोई और नहीं, कश्मीरी पंडित परिवारों के पीड़ित सदस्य हैं जिन्हें आतंकियों से हार माननी पड़ी। अपनी पैतृक भूमि छोड़ कर वर्षों रिफ्यूजी कैंप में बिताने पड़े। उन्हीं कश्मीरियों में कुछ बतौर रंगकर्मी इन दिनों काशी में हैं।

दहशतगर्दों का बंदूक की नोंक पर उन्हें उनके घरों से बेदखल कर देना, आतंकवादियों का घर के दरवाजे पर हिटलिस्ट चस्पा करके जाना, रोजाना पांच बार कश्मीर छोड़ कर चले जाने की चेतावनी मिलना, किसी के पिता तो किसी के दादा को अगवा कर लिया जाना, यह सब कुछ वर्षों बाद भी उनकी आंखों के सामने तैरता है। अपना सब कुछ गंवा कर अपने ही वतन में शरणार्थी बनकर जीने की टीस उन्हें हमेशा सालती रहती है। इस टीस को कम करने का बेहतर जरिया उन्होंने रंगमंच को बनाया है। 

थियेटर ओलंपिक के अंतर्गत एएलजी. कल्चरल सोसाइटी जम्मू के 29 कलाकारों के दल के साथ बनारस आए निर्देशक रविशंकर केय्मू ने आप के अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ के खास बातचीत में बताया कि इस नाट्य दल में मुझे लेकर कुल छह कलाकार रिफ्यूजी हैं। वर्ष 1990 में हमने परिवार के साथ श्रीनगर छोड़ा था। जो कुछ साथ ले जा सकते थे, लेकर जम्मू पहुंचे थे। मुझे ज्यादा वक्त रिफ्यूजी कैंप में नहीं रहना पड़ा। जल्दी ही मैं मुंबई चला गया। मेरे पिता पद्मश्री से सम्मानित नाटककार मोती लाल केय्मू के साथ परिवार के लोग जम्मू में ही रहते हैं। रिफ्यूजी कैंप में वर्षों बिताने वाले पांच अन्य रंगकर्मी भी मेरे नाट्यदल के सदस्य हैं। इनमें अनंतनाग के रमेश पंडित, कुलगाम की साक्षी भट्ट, अनंतनाग की नेहा भट्ट, कुकरनाग के विनय पंडिता और श्रीनगर के मोहित रावल शामिल हैं। इन सभी के परिजनों को आतंकवादियों के आगे विवश होकर अपने घर, बाग-बगीचे, खेती, कारोबार, नौकरी छोड़ कर कश्मीर से बाहर जाना पड़ा था।

जो कुछ हुआ है, वह भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन सिर्फ उसे ही याद करते रहा जाए और आगे की न सोची जाए, यह भी नहीं हो सकता। मेरे परिवार में शुरू से साहित्यक माहौल था।  पिता नाटककार हैं। ऐसे में नाटकों का एक बेहतरीन जरिया मुझे मिला। उसकी वजह से मैं अतीत का दर्द भूलता हूं और उसे याद भी रखता हूं।
रवि शंकर केय्मू, नाट्य निर्देशक, श्रीनगर कश्मीर

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें