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होली के रंग: महाश्मशान पर वाद्ययंत्रों के बीच खेलेंगे चिता भस्म की होली

शिव संहार के साथ संगीत के भी देवता हैं। उनका नटराज नामकरण उसी का प्रतीक है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवती गौरा को विदा कराने और उनके साथ होली खेलने के अगले दिन नटेश्वर 51 वाद्ययंत्रों की अनुगूंज के बीच...

होली के रंग: महाश्मशान पर वाद्ययंत्रों के बीच खेलेंगे चिता भस्म की होली
वाराणसी। प्रमुख संवाददाताSat, 24 Feb 2018 05:28 PM
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शिव संहार के साथ संगीत के भी देवता हैं। उनका नटराज नामकरण उसी का प्रतीक है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवती गौरा को विदा कराने और उनके साथ होली खेलने के अगले दिन नटेश्वर 51 वाद्ययंत्रों की अनुगूंज के बीच चिता भस्म की होली खेलेंगे।

मणिकर्णिका स्थित महाश्मशान पर चिता भस्म की होली इस बार पूरी तरह संगीतमय होगी। दोपहर 12 बजे श्मशानेश्वर महादेव मंदिर में आरती के बाद तपती चिताओं के बीच काशी के 51 संगीतकार अपने अपने वाद्ययंत्रों की झनकार आरंभ करेंगे और बाबा के भक्त चिताओं की भस्म से होली खेल कर पौराणिक परंपरा का निर्वाह करेंगे।

विजय जायसवाल के नेतृत्व में 10 सितारवादक, 10 तबला वादकों के अतिरिक्त पखावज, मृदंग, ढोलक, बांसुरी आदि वाद्ययंत्रों कलाकार उपस्थित होंगे। मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर के अनुसार पौराणिक काल से चली आ रही परंपरा का निर्वाह पूर्व में संन्यासी और गृहस्थ मिलकर करते थे। 

ढाई दशक पूर्व पुन: हुई शुरुआत
अब से करीब 25 वर्ष पूर्व मणिकर्णिका मोहल्ले के कुछ निवासियों और मंदिर प्रबंधन परिवार के सदस्यों ने इस परंपरा की पुन: शुरुआत की। कहते हैं, रंगभरी एकादशी को गौरा की विदाई कराने के बाद द्वादशी तिथि पर बाबा भूत, प्रेत, गण सहित कई अदृश्य शक्तियों के साथ होली खेलने महाश्मशान पहुंचते हैं। 

होली के मौके पर दिगंबर हुए शिव
महाराज दक्ष की प्रथम पुत्री पार्वती के साथ भगवान शंकर का विवाह हुआ। उनकी शेष 27 कन्याओं के साथ चंद्रमा की शादी हुई है। होली के दिन सालियों ने भगवान शिव पर रंग का छींटा मारा, रंग चांद की आंख में पड़ गया। चांद की आंख से जल की बूंद निकलकर शिव के कमर में बंधे व्याघ्रचर्म पर पड़ी। चूंकि चांद का जल अमृत है, इसलिए बूंद पड़ते ही व्याघ्र जीवित हो शिव के कमर से निकल कर चलने लगा। भगवान शंकर दिगंबर हो गए। लोकलाज के चलते तब वह महाश्मशान चले गए क्योंकि वहां नारियों का जाना वर्जित है।

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