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पितृपक्ष: पितरों को याद करने का पखवाड़ा कल से

पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्धकर्म का पखवाड़ा 25 सितंबर से शुरू होगा। इस वर्ष पितृपक्ष 25 सितंबर से आरंभ होकर आठ अक्तूबर तक चलेगा। पूर्णिमा का श्राद्ध 24 सितंबर को होगा। श्राद्ध कर्म की शुरुआत एक...

पितृपक्ष: पितरों को याद करने का पखवाड़ा कल से
वाराणसी। प्रमुख संवाददाताMon, 24 Sep 2018 04:59 PM
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पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्धकर्म का पखवाड़ा 25 सितंबर से शुरू होगा। इस वर्ष पितृपक्ष 25 सितंबर से आरंभ होकर आठ अक्तूबर तक चलेगा। पूर्णिमा का श्राद्ध 24 सितंबर को होगा। श्राद्ध कर्म की शुरुआत एक दिन पूर्व पूर्णिमा तिथि से ही हो जाएगी। पूर्णिमा पर दिवंगत लोगों का श्राद्ध प्रतिपदा से पूर्व ही करने का विधान है। 

ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार इस दौरान 12 प्रकार के श्राद्ध होते हैं। इनमें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, शुद्धर्य्थ, कामांग, दैविक, औपचारिक एवं सांवत्सरिक प्रमुख हैं। पूरे पक्ष भर तिल, जौ, अक्षत, कुशा एवं गंगाजल लेकर संकल्प के साथ पिंडदान का विधान है। श्राद्ध संबंधी समस्त कृत्य मध्याह्न से अपराह्न के मध्य किए जाने चाहिए। 

पितरों के प्रसन्न होने से भौतिक सुख, समृद्धि, वैभव, यश और सफलता आदि प्राप्त होती है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता की दिवंगत तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। जिन लोगों को अपने परिजनों के दिवंगत होने की तिथि ज्ञात न हो, उन्हें अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। अमावस्या में सभी तिथियों का समावेश होता है। इसलिए अमावस्या के दिन किसी भी तिथि के निमित्त श्राद्ध हो सकता है। 

जैन के अनुसार श्राद्ध के निमित्त भोजन तैयार करने के लिए लोहे के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही अरहर, मसूर, कद्दू, बैगन, गाजर, शलजम, सिंघाड़ा, जामुन, अलसी, चना आदि का उपयोग भी वर्जित है। श्राद्ध वाले दिन श्राद्ध करने वाले को ब्रह्मचर्य का पालन एवं सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। पितृपक्ष में कोई नवीन कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्व गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी और देवता के निमित्त पत्ते पर भोजन निकालना चाहिए। इस दौरान अपने ही परिवार में भोजन ग्रहण करना चाहिए। उन्होंने बताया कि विधि विधान से श्राद्ध कृत्य करने पर समस्त दोषों व बाधाओं का निवारण होता है। 

गंगा घाटों पर श्राद्ध में परेशानी 
उधर गंगा का जलस्तर अधिक होने के कारण घाटों पर स्थान का अभाव है। इसके चलते तीर्थ पुरोहितों की चिंता  बढ़ी हुई है। वहीं पिशाचमोचन तीर्थ पर श्राद्ध के लिए आने वालों का क्रम रविवार रात से ही शुरू हो गया। पूर्णिमा तिथि पर श्राद्ध करने के बाद तीर्थयात्री 24 सितंबर की रात ही गया के लिए रवाना होंगे।

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