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गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है फुलवरिया की रामलीला

एक तरफ 25 वर्षों से अयोध्या मामला चल रह है तो दूसरी ओर कबीर और नजीर के शहर बनारस के फुलवरिया इलाके की रामलीला बीते 25 वर्षों से गंगा-जुमनी तहजीब की मिसाल बनी हुई है। फुलवरिया में नवचेतना कला एवं...

गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है फुलवरिया की रामलीला
वाराणसी। अरविंद मिश्रThu, 07 Dec 2017 12:31 PM
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एक तरफ 25 वर्षों से अयोध्या मामला चल रह है तो दूसरी ओर कबीर और नजीर के शहर बनारस के फुलवरिया इलाके की रामलीला बीते 25 वर्षों से गंगा-जुमनी तहजीब की मिसाल बनी हुई है।

फुलवरिया में नवचेतना कला एवं विकास समिति के बैनर तले वर्ष 1992 में रामलीला की शुरुआत की गई। इस लीला का आयोजन हिन्दू-मुस्लिम दोनों मिल कर करते हैं और यही इसकी खासियत है। देव स्वरूपों के शृंगार का जिम्मा शुरुआती दौर से ही आशिक अली उठाते आए हैं। रावण के पुतले का निर्माण वारिस अली और नसीम भाई का पूरा कुनबा मिलकर करता है। 

समिति के संस्थापक डॉ. एसके. गुप्ता के अनुसार फुलवरिया की रामलीला की सबसे खास बात यह कि चाहे वानरी सेना हो या रावण की सेना, दोनों ही सेनाएं बिना मुस्लिम किशोरों के पूरी नहीं होतीं। दोनों सेनाओं में तीन दर्जन से अधिक मुस्लिम किशोर बेझिझक शामिल होते हैं। विगत कुछ वर्षों से वानरी सेना में नल की भूमिका अजहर भाई निभाते आ रहे हैं। रामदरबार की आरती भी दोनों समुदाय के लोग मिलकर उतारते हैं। समिति के संरक्षक मंडल के सदस्य मोहम्मद गुलामुद्दीन आरती उतारने में सबसे आगे रहते हैं। 

डॉ. गुप्ता ने बताया कि जिस वर्ष रामलीला की शुरुआत की थी तब अयोध्या की घटना हुई नहीं थी। पहले ही साल की रामलीला समाप्त होने के कुछ दिनों बाद जब यह घटना हुई तो हम लोगों को थोड़ी चिंता हुई लेकिन जब अगले वर्ष पुन: दोनों समुदाय के लोगों ने मिल कर इसका आयोजन किया और यह क्रम बिना किसी बाधा के अब भी जारी है।

चौदह साल निर्विरोध अध्यक्ष रहे निजामुद्दीन
नवचेतना कला एवं विकास समिति का गठन 1992 में किया गया तो इसके पहले अध्यक्ष निजामुद्दीन चुने गए। यही नहीं वह जब तक जीवित रहे समिति के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाते रहे। वह पूरी रामलीला में प्रतिदिन उपस्थित रहते थे। उन्होंने 14 वर्षो तक लगातार अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। उनके निधन के बाद गुलामुद्दीन सहित कई मुस्लिम संरक्षक मंडल के सदस्य हैं। 

ताजिया के जुलूस में शामिल होते हैं हिंदू 
मुस्लिम बंधु रामलीला में शामिल होकर कौमी एकता का संदेश देते हैं तो ताजिया के जुलूस में हिंदू शामिल होकर इस संदेश को और पुख्ता करते हैं। समिति के गठन के बाद से यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है। ताजिया बनाने से लेकर उसे ठंडा करने के लिए निकाले जाने वाले जुलूस तक में उनकी सहभागिता होती है। कुछ हिंदू तो लाठी खेलने और मातम करने में भी शामिल होते हैं।

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