बोले काशी - सुविधाएं मिलें तो हम भी किसी से कम नहीं
संक्षेप: Varanasi News - वाराणसी में मूकबधिर विद्यार्थियों ने संकेतों से बताया कि उन्हें सहानुभूति नहीं, बल्कि सहयोग और संसाधनों की आवश्यकता है। उन्होंने स्किल डेवलपमेंट और बेहतर सुविधाओं की मांग की, ताकि वे समाज में अपनी...
वाराणसी। वे न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं। उनके लिए संकेत ही आधार हैं, जो उनके जीवन को गतिमान करते हैं। मूकबधिर संकेतों से कहते हैं कि हमें किसी की सहानुभूति नहीं, सहयोग और संसाधन चाहिए। बनारस डेफ एंड डंब स्कूल एसोसिएशन (छोटी गैबी) के मूकबधिर विद्यार्थियों ने संकेतों से बताया कि वे भी साबित कर सकते हैं कि ‘हम किसी से कम नहीं, हम विवेकवान हैं, बेदम नहीं। मूकबधिर सामान्य व्यक्ति की तरह दिखते हैं। ऐसे में यह जान पाना कठिन हो जाता है कि वे न बोल सकते हैं न सुन सकते हैं। उन्हें सहयोग की जरूरत है।

शिक्षिका ज्योति उपाध्याय ने संकेतों के सहारे सवाल किए जिनका विद्यार्थियों ने संकेतों से ही जवाब दिया। शिक्षिका ने मूकबधिर विद्यार्थियों के जवाबों को शब्दरूप दिया। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में इन विद्यार्थियों ने संकेतों के हवाले से कहा कि उनके सामने पहचान का संकट हैं। दिव्यांगता के अन्य रूप जैसे दृष्टिबाधित, अपंगता आदि तो पता चल जाता है, लेकिन मूकबधिर होने का नहीं पता चल पाता। इस कारण ये समाज के साथ कदमताल करते हुए भी कभी-कभी असहज महसूस करने लगते हैं। सनिका अख्तर, खुशी मौर्या ने कहा कि हम भी इसी समाज के हिस्से हैं, यहीं पल-बढ़ रहे हैं। हम सब समझते हैं, संकेत से समझा भी सकते हैं। हम देख सकते हैं, चल सकते हैं, लिख सकते हैं। हमारी इन योग्यताओं का लाभ समाज और सरकार को उठाना चाहिए। बोलीं, हम समाज में जागरुकता की कमी का दर्द झेलते हैं, झिझकते भी हैं। अगर कोई शब्दों से हमारा उपहास उड़ता है तो यह हमारे लिए मायने नहीं रखता, लेकिन उसकी हरकतें बता देती हैं कि हमारे प्रति उसके विचार कैसे हैं। कृष्ण कुमार, निधि यादव ने कहा कि हमारा उपहास नहीं उड़ाएं। हमें पढ़ने दें, आगे बढ़ने दें। हम भी इस समाज और देश के लिए खुद को उपयोगी साबित कर सकते हैं, बस अवसर मिलना चाहिए। पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में अपनेपन की कमी हमें कभी महसूस न होने पाए, इसका ध्यान रखना चाहिए। आज के समाज में यह तभी संभव है जब सभी के मन में अपनेपन का भाव हो। इसके लिए हर स्तर पर प्रयत्न की जरूरत है। स्किल डेवलपमेंट की जरूरत सोनी यादव, रितेश सिंह ने संकेतों के जरिए अपनी अपेक्षाएं बताईं। कहा कि मूकबधिर को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देने की जरूरत है। इससे उनकी क्रियाशीलता बढ़ेगी और जीने के नए रास्ते मिलेंगे। विद्यालयों से शिक्षा लेकर निकलने के बाद स्किल ट्रेनिंग वास्तविक रूप से फलीभूत हो सकेगी। हम भी समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकेंगे। कहा कि आज तो हमारी पहचान का संकट है। हमारी योग्यता, दक्षता को नया रूप मिलना चाहिए। हमारी बातों और विचारों को लोग समझ सकें, इसके लिए जरूरी है कि वे गंभीरता से नजर रखें। स्किल ट्रेनिंग का लाभ उन प्रौढ़ मूक-बधिरों को भी देना चाहिए जिनके पास कोई शैक्षिक योग्यता नहीं है। जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम गुड़िया चौधरी, मोना ने कहा कि मूकबधिर के लिए हर जगह सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत हैं। स्कूलों, कालेजों में हमारी जरूरतों के हिसाब से सेलेबस बनने चाहिए। यह अधिक लाभप्रद होगा। इसके सार्थक परिणाम हमारे जीवन को नवीन दिशा देंगे। साथ ही हमारी समस्याओं के निदान के बारे में जन जागरूकता और समझ भी बढ़ाने की आवश्यकता है। हमारे प्रति लोगों का नजरिया रहम का नहीं, बल्कि सहयोग का रहे। इसका लाभ समाज और देश को भी मिलेगा। सभी सहयोगी बनें डिंकू कुमार, रिंकी यादव ने कहा कि घर से लेकर बाहर तक जैसे सामान्य व्यक्ति को सहयोग मिलता है, वैसे ही हमें भी सहयोग मिलना चाहिए। हम सिर्फ बोल नहीं सकते, सुन नहीं सकते। बाकी सभी काम सामान्य व्यक्ति की तरह कर सकते हैं, करते भी हैं। सामान्य व्यक्ति की तरह हमारी योग्यता का भी उपयोग हर संस्थान में होना चाहिए। इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाने की जरूरत है। सभी के सहयोग से इसमें सफलता मिल सकती है। हमारी आर्थिक जरूरतें पूरी हो सकें, इसके लिए सभी को प्रयत्नशील रहना चाहिए। हमारी दक्षता के उपयोग में सहयोगी बनें, इससे हमें आर्थिक संकट नहीं होगा। नियुक्त हों प्रशिक्षित लोग खुशी सिंह, मोहम्मद ऐश ने बताया कि यहां से शिक्षा लेने के बाद आगे की शिक्षा कहां लेंगे, अभी यह तय नहीं किया है। बोले, मूकबधिर कहीं जाते हैं तो उन्हें अपनी बात संकेत में कहनी पड़ती हैं और सामनेवाला उन सामान्य संकेतों को भी नहीं समझ पाता। ऐसे में जरूरी है कि अस्पतालों, बैंक आदि महत्वपूर्ण स्थानों पर प्रशिक्षित लोगों को रखा जाए ताकि वे मूकबधिर के संकेतों को समझ सकें, उनकी समस्याओं का निराकरण कर सकें। शिक्षा और रोजगार की आस सिद्धि दुबे, विवेक शुक्ला ने कहा कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद हमें आगे की शिक्षा दिलाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी को आने आना चाहिए। हर स्तर पर सहयोग मिलना चाहिए। उच्च शिक्षा की दिशा में भी मूकबधिर के अनुकूल वातावरण बनाने के साथ प्रशिक्षित शिक्षक भी संस्थाओं में रहें, जो हमारी बात सकें, समाधान दे सकें। हमारे लिए भी रोजगार के अवसर बनाने की जरूरत है, ताकि हमारा जीवन भी बेहतर तरीके से कट सके। वे मूकबधिर जिनके घरों में परंपरागत व्यावसायिक ढांचा हैं, उन्हें तो राहत हो सकती है, लेकिन जिनके पास यह सुविधा नहीं उनके लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए और इसका लाभ भी मिलना चाहिए। संकेतों के शब्दरूप स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग देने की जरूरत है, जिससे कि विद्यालय से निकलने के बाद जीने की राह सुगम हो सके। सोनी यादव मूकबधिर की समस्याओं के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें। मोना हम भी इसी समाज के हिस्से हैं, अत: हम जैसे लोगों के रोजगार के लिए अनुकूल कदम उठाने की जरूरत है। सनिका अख्तर अस्पतालों, बैंकों या कहीं भी प्रशिक्षित लोगों को रखा जाना चाहिए ताकि वे मूकबधिर के संकेतों को समझ सकें। खुशी सिंह घर से बाहर तक कभी-कभी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। समाज को जागरूक होने की जरूरत है। खुशी मौर्या हम पर किसी को रहम करने की आवश्यकता नहीं है, सहयोग तो सभी का मिलना चाहिए, भाव भी सहयोगी हो। डिंकू कुमार यहां से पढ़कर निकलने के बाद हमें आगे की शिक्षा और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी को आने आना चाहिए। विवेक शुक्ला हमारा उपहास नहीं उडा़एं, पढ़ने दें, हम भी इस समाज और देश के लिए खुद को उपयोगी साबित कर सकते हैं। कृष्ण कुमार सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत हैं, सेलेबस को हमारी जरूरतों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। यह अधिक लाभप्रद होगा। गुड़िया चौधरी आर्थिक मदद की जरूरत है। हर स्तर पर आर्थिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में सभी को प्रयत्नशील रहना चाहिए। रिंकी यादव उच्च शिक्षा की दिशा में भी मूकबधिर के अनुकूल वातावरण बनाने के साथ ही प्रशिक्षित शिक्षक भी संस्थाओं में रहें। सिद्धि दुबे हमारी बांतों को लोग समझ सकें, हमारे विचारों को समझ सकें, इसके लिए जरूरी है कि वे गंभीरता से नजर रखें। रितेश सिंह यहां से शिक्षा लेने के बाद कहां जाएंगे, अभी यह तय नहीं किया है। शिक्षा पूरी होने के बाद इस पर मनन करेंगे। मोहम्मद ऐश पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में अपनेपन की कमी हमें कभी महसूस न होने पाए, इसका ध्यान रखना चाहिए। निधि यादव ------------- सुझाव और शिकायतें सुझाव मूकबधिर की समस्याओं के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाने की जरूरत है, ताकि उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें। पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में अपनेपन की कमी उन्हें कभी महसूस न होने पाए, इसका सभी को ध्यान रखना चाहिए। उच्च शिक्षा की दिशा में मूकबधिर के अनुकूल वातावरण बनाने के साथ ही प्रशिक्षित शिक्षक भी संस्थाओं में रहें। आर्थिक मदद की जरूरत है। हर स्तर पर आर्थिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा को सभी प्रयत्नशील रहें। उपहास कभी नहीं उडा़एं, पढ़ने दें, वे भी इसी समाज और देश के लिए खुद को उपयोगी साबित कर सकते हैं। शिकायतें मूकबधिर की समस्याओं के बारे में जागरूकता और समझ कम हैं, बेहतर सुविधाएं मिलने में बाधाएं भी बहुत हैं। पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में अपनेपन की कमी हैं। इसे दूर करने की दिशा में गंभीरता से प्रयास नहीं होते। उच्च शिक्षा की दिशा में भी मूकबधिर के लिए अनुकूल वातावरण नहीं दिखता, प्रशिक्षित शिक्षक भी संस्थाओं कम हैं। आर्थिक संकट दूर करने की दिशा में प्रयासों की कमी है। इसके चलते मूकबधिर प्राय: परेशान होते रहते हैं। कभी कभी लोग उपहास उडा़ने लगते हैं, इससे ऐसे लोगों के मनोबल को गंभीर झटके लगते हैं, जो कष्ट देते हैं। --------------- संकेतों को समझें, मृदु आचरण करें मूकबधिर लोगों की समस्याएं घर से लेकर बाहर तक हैं। घर में तो लोग जानते हैं, अतएव वैसा ही व्यवहार करते हैं, लेकिन बाहर के लोग नहीं जानते। कभी कभी बाहरी लोगों का व्यवहार अनुकूल नहीं होता और मूकबधिर के संकेतों को समझ नहीं पाते, जबकि उनकी बांतों को मूकबधिर समझ जाते हैं और कटु व्यवहार से दुखी भी होते हैं। उनके संकेतों को ठीक से नहीं समझ पाने के कारण लोगों को भी बहुत दिक्कत होती है। समाज के साथ इनका व्यवहार मृदु रहता है, उसके अनुरूप समाज को भी आचरण करना चाहिए। हर जगह, हर संस्थान में इन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए ताकि वे भी समाज में अपना रचनात्मक रूप दिखा सकें, अपनी पहचान बना सकें। -ज्योति उपाध्याय (शिक्षिका) सभी को दें आईएसएल की जानकारी मूकबधिर के सामने पहचान के साथ रोजगार का भी संकट हैं। नौकरी में अवसर कम हैं। ऐसे लोगों की शिक्षा के प्रति सभी को गंभीर बनना होगा। मूकबधिर की समझ, योग्यता और दक्षता का लाभ लेने के उपाय करने होंगे। स्कूलों में स्मार्ट क्लास बनाने के साथ ही स्मार्ट बोर्ड होने चाहिए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी ये काफी आगे निकल सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि इनके सवालों को शिक्षक समझ नहीं पाते। ऐसे में जरूरी है कि भारतीय सांकेतिक भाषा ( इंडियन साइन लैंग्वेज-आईएसएल) की जानकारी हर संस्थान के लोगों को दी जाए। इसके सार्थक परिणाम सामने आएंगे। -अमृत दास गुप्ता (विशेष कार्याधिकारी)

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