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डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय: भाजपा की राजनीति में बढ़ा बनारस का मान

केन्द्र की मोदी सरकार में फेरबदल की संभावनाओं के बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पर डॉ.महेन्द्रनाथ पाण्डेय की नियुक्ति का फैसला राजनीतिक दृष्टि से कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस...

डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय: भाजपा की राजनीति में बढ़ा बनारस का मान
मुख्य संवाददाता वाराणसीFri, 01 Sep 2017 02:36 PM
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केन्द्र की मोदी सरकार में फेरबदल की संभावनाओं के बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पर डॉ.महेन्द्रनाथ पाण्डेय की नियुक्ति का फैसला राजनीतिक दृष्टि से कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस ताजपोशी का स्पष्ट संकेत है कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा का पूरा ध्यान सवर्णो, खासकर ब्राह्मण मतदाताओं पर है। वहीं, भाजपा नेतृत्व के इस निर्णय से बनारस का भी मान बढ़ा है। बनारस ने देश को प्रधानमंत्री दिया, अब प्रदेश भाजपा के नये अध्यक्ष भी यहीं से जुड़े हैं। 

बीते विधानसभा चुनाव में पिछड़े वोट बैंक को लुभाने के लिए केशव मौर्य का चेहरा सामने लाया गया था। इसका फायदा भाजपा को हुआ भी और पार्टी डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी। मगर उसके बाद से पार्टी में अगड़े-पिछड़े की राजनीति ने संगठन की धार न केवल कुंद की बल्कि सवर्णो के वोट खिसकने की चिंता ने पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया। 

पार्टी सूत्रों के अनुसार काफी दिनों से इस बात की रिपोर्ट भेजी जा रही थी कि पूर्वांचल में खासतौर पर ब्राम्हण व भूमिहार पार्टी की रणनीति से खफा हैं। सत्ता में वापसी के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पद पर मनोज सिन्हा का नाम तेजी से उभरा और अचानक हुए राजनीतिक बदलाव में योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी करायी गई, उससे पूर्वांचल का एक बड़ा तबका खुद को उपेक्षित मान रहा था। यह अलग बात है कि मनोज सिन्हा व डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय दोनों छात्र राजनीति से लगभग एक साथ ही निकले। दोनों नेताओं के बीच गहरा रिश्ता है। पूर्वांचल की राजनीति में कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह, मनोज सिन्हा एवं डा. महेन्द्रनाथ पाण्डेय की सवर्णों के बीच गहरी पैठ मानी जाती रही है। 

डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय को संगठन का भी बड़ा अनुभव रहा है। कल्याण सिंह की सरकार रही हो या फिर राजनाथ की, डॉ. पाण्डेय हमेशा संगठन की महत्वपूर्ण धुरी रहे। 2007 में वह भाजपा काशी प्रांत के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी खासियत रही है कि वह कभी भी अगड़े-पिछड़े के खांचे में नहीं आए। हमेशा संगठन में जमीनी एवं संघर्षशील नेताओं को साथ लेकर चले। छोटे से छोटे कार्यकर्ताओ के साथ सहज भाव में मिलना उनकी विशिष्टता है। 

सूत्रों की माने तो पूर्वांचल में कई नेताओं के बारे में संगठन के अलावा खुफिया विभाग से फीड बैक लिया गया था। लोकसभा चुनाव के बाद तीन सालों में डा. महेन्द्र पाण्डेय के बारे में शीर्ष नेताओं को किसी तरह की कोई शिकायत न तो संगठन स्तर पर मिली और न ही प्रशासनिक स्तर पर। डा. पाण्डेय की सादगी, ईमानदारी एवं संगठन को एकजुट रखने की कुशलता को देखते हुए पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। 

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