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हिपोफी पर द.कोरिया का दावा, ठगे रह गए बीएचयू के वैज्ञानिक

हिमालय में पाई जाने वाली संजीवनियों में एक हिपोफी से कोविड-19 के उपचार के दक्षिण कोरिया के दावे ने बीएचयू के वैज्ञानिकों के होश उड़ा दिए हैं। सबसे...

हिपोफी पर द.कोरिया का दावा, ठगे रह गए बीएचयू के वैज्ञानिक
हिन्दुस्तान टीम,वाराणसीSat, 02 Jan 2021 03:06 AM
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वाराणसी। अरविंद मिश्र

हिमालय में पाई जाने वाली संजीवनियों में एक हिपोफी से कोविड-19 के उपचार के दक्षिण कोरिया के दावे ने बीएचयू के वैज्ञानिकों के होश उड़ा दिए हैं। सबसे शक्तिशाली इम्युनिटी बूस्टर के रूप में प्रमाणित हिपोफी पर बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के वैज्ञानिकों की टीम चार दशक से काम कर रही है। हाल ही में दक्षिण कोरियाई सरकार के दावों की खबर सामने आने के बाद वे यह सोच कर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं कि कहीं उनकी चालीस साल की मेहनत पर पानी न फिर जाए।

बायोलॉजिकल प्रॉपर्टी का खजाना

हिपोफी एक ऐसी औषधि है, जिसमें दो दर्जन से अधिक बायोलॉजिकल प्रॉपर्टी हैं। इसका आयुर्वेदिक नाम अम्लवेतस है। इसमें विटामिन और मिनरल की भरमार है। एंटी कैंसरस, एंटी ऑक्सिडेंट, एंटी एजिंग, एंटी मेनोपॉजल सिंड्रोम में भी इसकी सर्वाधिक उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है। अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर ठंड से बचाव में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। यह औषधि माइनस 45 डिग्री से 45 डिग्री तक तापमान में सुरक्षित रहती है। संक्रमण से होने वाले हर रोग में इस औषधि की उपयोगिता को देखते हुए कोरियन वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के संक्रमण के बाद पुन: हिपोफी पर रिसर्च किया और उससे संक्रमितों का उपचार करने का दावा किया है।

प्रो. केएन उडुप्पा ने किया सबसे पहले चिह्नित

नेशनल फैसिलिटी फॉम ट्राइबल एंड हर्बल मेडिसिन के निदेशक प्रो. जेपी दुबे ने बताया कि हिपोफी पर काम की शुरुआत भारत में ही हुई थी। वर्ष 1975 में सबसे पहले प्रो. केएन. उडुप्पा ने हिमाचल प्रदेश में इसे चिह्नित कर शोध शुरू कराया। वर्ष 1980 में जब भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम लेह रिसर्च इंस्टीट्यूट (डीआरडीओ) में थे, तब उन्होंने हिपोफी पर काम के लिए चरक नाम से एक ग्रुप की स्थापना की। उस ग्रुप में डॉ. सिल्वामूर्ति, कर्नल डीपी यात्रे भी शामिल थे। उसके बाद चाइना, साउथ कोरिया, रशिया, साइबेरिया ने हिपोफी पर काम शुरू किया। 80 के दशक में ही प्रो. जीपी. दुबे ने कर्नल डीपी यात्रे के साथ हिमालयी क्षेत्र में हिपोफी पर काम शुरू किया।

चीन के कब्जे वाले भारत में हिपोफी की खान

भारत से युद्ध के बाद चीन द्वारा कब्जे कर ली गई जिस भूमि को बंजर करार दिया गया था दरअसल वह हिस्सा हिपोफी की खान है। चीन के कब्जे वाले भारतीय हिस्से में हिपोफी के पनपने के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण है।

चार दशक तक शोध

डिस्टिंगुइश्ड प्रो. जीपी. दुबे ने बताया कि बीते चार दशकों में आयुर्वेद संकाय के सुयोग्य शिक्षकों ने सतत कार्य करते हुए हिपोफी की मदद से करीब आधा दर्जन दवाएं ईजाद की है। न्यूरो बीडीएच और इम्युनो मॉडरेटर उन्हीं दवाओं में शामिल हैं। यह दवाएं इम्युनिटी कम करने वाले सभी रोगों में कारगर हैं। संसाधनों के अभाव और कुछ अपरिहार्य कारणों से इन शोधों को प्रयोगशाला से बाहर लाकर जनोपयोगी बना पाना संभव नहीं हो पाया है।

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