बोले काशी: ट्रेन परिचालन की ‘रीढ़ को चाहिए मजबूत सहारा
वाराणसी में रेलवे के रनिंग स्टाफ, जैसे लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर, लंबे समय तक ड्यूटी और परिवार से दूर रहने के कारण मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं। उनकी बुनियादी जरूरतें अनदेखी हो रही हैं, जिससे उनकी...
वाराणसी। इलेक्ट्रिक इंजन किसी स्टेशन से चली ट्रेन की स्पीड बढ़ाता है पर हजारों यात्रियों की यात्रा को सुरक्षित बनाती हैं इंजन में बैठीं चार जोड़ी चौकन्नी निगाहें। उन निगाहों के पीछे एकाग्र दिमाग होता है जिसे सजगता और सतर्कता के ‘कॉशन से सक्रिय किए रहते हैं। बात हो रही है लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और ट्रेन मैनजर (गार्ड) की। ये रनिंग स्टाफ होते हैं, रेल परिचालन की ‘रीढ़। वह रीढ़ तनाव और दर्द से घिरी दिख रही है। तय समय से अधिक ड्यूटी, परिवार-रिश्तेदारों से दूरी, बुनियादी जरूरतों के लिए लंबे समय से जद्दोजहद, पेंशन स्कीम पर ऊहापोह तनावग्रस्त बनाए हुए है। ट्रेनों के रनिंग स्टाफ को लगता है कि उनकी जिंदगी सामाजिक परिवेश से कट चुकी है। या कहें, सिवाय कठिन ड्यूटी-थकान और आराम की रूटीन के अलावा अब वे कुछ नहीं जानते। ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में उनका दर्द सहज छलक आया।
36 घंटों की एक दुनिया
ट्रेन मैनेजर रामअजोर यादव, लोको पायलट यूके सिंह पटेल ने कहा कि रेलवे बोर्ड ने रनिंग स्टाफ के 36 घंटे में मुख्यालय वापसी का आदेश कर रखा है। मंडलस्तर पर उस आदेश की ‘गहन निगरानी का निर्देश भी है लेकिन उसका अनुपालन नहीं होता है। मुख्यालय वापसी में 36 घंटे से ज्यादा समय लगता है। उन्होंने कहा कि ‘ये औसत 36 घंटे ही हमारी असल दुनिया हैं। उस दुनिया में हम मुस्करा लें या तनाव में सिर खुजाते रहें।
यह स्थिति तकलीफदेह
ट्रेन मैनेजर एसके गुप्ता ने बताया कि रनिंग स्टाफ को ड्यूटी पर जाते समय क्रू लॉबी (रनिंग रूम) में साइनिंग ऑन करना होता है। इस बीच गाड़ी लेट होने की स्थिति में आराम के लिए रेस्ट रूम नहीं मिलता। जबकि कुछ देर आराम से सुरक्षित रेल परिचालन में काफी मदद मिलेगी। कई स्टेशनों के रनिंग रूम में बुनियादी सुविधा, खाने की गुणवत्ता और सफाई के मुद्दे उठ चुके हैं जिनके बाबत अधिकारियों से अब तक तवज्जो नहीं मिली है।
बिगड़ रहा पारिवारिक तानाबाना
पायलट यूके सिंह ने बताया रनिंग स्टाफ को ट्रेन परिचालन के दौरान घंटों घर से दूर रहने और परिवारीजनों को समय न दे पाने का मलाल रहता है। इससे तनाव बढ़ता है। कोई नहीं समझता कि हमारी ड्यूटी ही ऐसी है कि हम चाहकर भी अपने परिवारीजनों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं। लगातार ड्यूटी से शरीर थक जाता है। आराम करने में काफी समय निकल जाता है।
रिश्तेदारों की नाराजगी
लोको पायलट आदर्श कहते हैं कि काम के घंटे बढ़ने का असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है। कई बार रिश्तेदार-नातेदारों की नाराजगी झेलनी पड़ती है। आदर्श इसका एक कारण रनिंग स्टाफ की कमी को ही मानते हैं। इन पदों पर भर्तियां न होने से पर्याप्त आराम व अवकाश नहीं मिल पा रहा है। कई घंटे की लगातार ड्यूटी के चलते लोको पायलट, सहायक पायलट और ट्रेन मैनेजर कई बार बीमार पड़ जाते हैं।
इनसेट (फोटो: हरिशंकर यादव)
इमरजेंसी ब्रेक लगाकर टाला था हादसा
यह तकरीबन तीन वर्ष पहले की बात है। पूर्वोत्तर रेलवे (वाराणसी मंडल) के लोको पायलट हरिशंकर यादव रात के समय बनारस-नई दिल्ली सुपरफास्ट एक्सप्रेस लेकर जा रहे थे। वाराणसी-प्रयागराज रेल खंड पर निगतपुर स्टेशन के पास से गुजरते समय उन्होंने पटरी पर लोहे का गर्डर रखा हुआ देखा। सतर्क और सजग हरिशंकर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर उस स्थान से कुछ पहले ट्रेन को रोक दिया। उस घटना में न तो ट्रेन का कोई नुकसान हुआ और न ही किसी यात्री को खरोंच तक आई। हरिशंकर की कर्मठता और कर्तव्य के प्रति समर्पण पर एनई रेलवे के तत्कालीन मुख्य परिचालन प्रबंधक ने उन्हें पुरस्कृत किया था।
कई सवाल अब तक अनुत्तरित
एसएस हाडा कहते हैं कि लोको पायलटों को आवधिक विश्राम (पीरियाडिक रेस्ट), ड्यूटी के न्यूनतम घंटे, रेलवे के नियमों के हिसाब से काम, रिटायरिंग रूमों में सफाई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव, साइनिंग ऑन का समय बढ़ाने आदि मांगों के लिए कई आंदोलन भी हुए लेकिन ज्यादातर मांगें लंबित हैं। ड्यूटी और सुविधाओं से जुड़े कई सवाल अनुत्तरित हैं।
ओवरशूट पर कड़ा ‘दंड क्यों?
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के अध्यक्ष एसके रावत ने कहा कि ओवरशूट (किन्हीं कारणों से रेड सिग्नल पार करना) मानवीय चूक है। यह हादसा की श्रेणी में नहीं आता है लेकिन लोको पायलट को हादसे की श्रेणी का दंड दिया जाता है। यह न्यायोचित नहीं है।
फैसले के बाद भी बात नहीं बनी
लोको पायलटों को आवधिक विश्राम देने के सम्बंध में ‘कैट और आरएलएसी का फैसला आया है। रेलवे की हाईपॉवर कमेटी ने इसकी सिफारिश भी की है लेकिन अभी फैसले का क्रियान्वयन नहीं हो सका है। यह मांग अभी विचाराधीन ही है।
परिचालन विभाग की मनमानी
लोको पायलटों के अनुसार ड्यूटी पर जाते समय साइनिंग ऑन का समय कई बार एक से दो घंटे बढ़ा दिया जाता है। इसमें परिचालन विभाग की अनियमितता, मनमानी सामने आई है। इस पर कर्मचारी संगठनों ने कई बार उच्चाधिकारियों से आपत्ति दर्ज कराई है।
...तो होती है शारीरिक पीड़ा
काफी प्रयास के बाद भी लोको पायलटों और ट्रेन मैनेजरों के काम के न्यूनतम घंटे तय नहीं हो पाए हैं। कहने के लिए ड्यूटी आठ घंटे होती है लेकिन ऑपरेशनल और अन्य कारणों से ट्रेनों की लेटलतीफी से अक्सर ज्यादा काम करना पड़ता है। यह स्थिति शारीरिक पीड़ा देती है।
ओपीएस के लिए भी ‘संघर्ष
रेलकर्मियों की पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन लगातार जारी है। रनिंग स्टाफ का कहना है कि केंद्र सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) में कई विसंगतियां हैं। पेंशन से जुड़े कई बिंदु इसमें स्पष्ट नहीं हैं। यह नई पेंशन योजना (एनपीएस) सरीखी है।
‘शॉर्टकट से ट्रेन परिचालन खतरनाक
कई स्थानों पर ब्लॉक नियमों का उल्लंघन करते हुए ट्रेनों को कॉलिंग ऑन सिग्नल पर शॉर्टकट से चलाने की बात भी सामने आई है। इसे रेलवे नियमावली में सांकेतिक दुर्घटना के रूप में परिभाषित किया गया है। यह संरक्षित रेल परिचालन के लिए खतरनाक स्थिति है। यह सतर्कता आदेश, इंजीनियरिंग बोर्ड और अन्य परिचालन से जुड़े नियमों का उल्लंघन भी है।
लीव सैलरी का एरियर
7 सीपीसी लागू होने के बाद रनिंग स्टाफ की लीव सैलरी के एरियर का भुगतान नहीं किया गया है। जबकि इस सम्बंध में उत्तर रेलवे का आदेश भी आ चुका है। वहीं 43,600 बेसिक पे वाले स्टाफ का एक वर्ष से अधिक समय के एनडीए (संशोधित महंगाई भत्ता) का भी भुगतान नहीं हुआ है।
आंकड़ों की नजर में
उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल में लगभग 2200 लोको पायलट और सहायक पायलट हैं। करीब 800 ट्रेन मैनेजर हैं।
पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल में तकरीबन 1700 लोको पायलट और सहायक पायलट तैनात हैं। 700 से ज्यादा ट्रेन मैनेजर हैं।
सुझाव
1. मंडल में बिना स्वीकृत पद के मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर गाड़ियों के लोको पायलटों को पदोन्नति के बाद लगातार हो रहे तबादले रोके जाएं। वहीं, क्रू लिंक में कार्य और विश्राम के घंटे और साप्ताहिक विश्राम के नियमों का भी ध्यान रखें।
2. मालगाड़ियों के लोको पायलटों को ट्रांसफर अलाउंस का समय से भुगतान किया जाए। कई जगहों पर यह भुगतान एक वर्ष से अधिक समय से लम्बित है।
3. रनिंग स्टाफ के पारिवारिक और सामाजिक जीवन का ध्यान रखते हुए ही उनसे काम लिया जाए। 36 घंटे में मुख्यालय वापसी के नियम को कड़ाई से लागू किया जाए।
4. टूल बॉक्स डिजाइन में हथौड़े और पटाखे रखने की व्यवस्था भी हो, जिससे ट्रेन परिचालन में इन उपकरणों की मदद ली जा सके। इससे गाड़ियों का संचालन काफी सुगमतापूर्ण होगा।
5. साइनिंग ऑन का समय बढ़ाने की व्यवस्था खत्म की जाए। यह श्रम नियमों का उल्लंघन भी है। कार्य के न्यूनतम घंटे तय किए जाएं ताकि रनिंग स्टाफ को पर्याप्त आराम मिल सके।
शिकायतें
1. कैट, आरएलसी और हाईपॉवर कमेटी के फैसले के बावजूद लोको पायलटों और सहायक पायलटों को पीरियाडिक रेस्ट नहीं दिया जा रहा है। यह न्यायोचित नहीं है।
2. परिचालन से जुड़े नियमों के हिसाब से ट्रेनें चलाई जाएं। लघु विधियों से ट्रेनों को न संचालित किया जाए। इससे दुर्घटना होने की पूरी आशंका रहेगी।
3. लम्बी दूरी मेमू, डेमू और ईएमयू ट्रेनों को बिना असिस्टेंट लोको पायलटों के न चलाया जाए। सिंगल मैन (सिर्फ लोको पायलट) के सहारे ये ट्रेनें चलने से उनके भीतर थकान, तनाव, अकेलापन, भ्रम, मानसिक रिक्तता की स्थिति पैदा करती है।
4. ट्रेन मैनेजरों को बक्सा (गार्ड बक्सा) देने के सम्बंध में कोर्ट और रेलवे बोर्ड का आदेश है तो उसे क्यों नहीं दिया जा रहा है। अधिकारियों को आखिर इसमें क्या परेशानी है?
5. कई स्टेशनों पर रनिंग रूमों में बुनियादी सुविधाएं और सफाई व्यवस्था में कमी की बात सामने आई है। रेल संरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसे अतिशीघ्र ठीक किया जाए।
हमारी भी सुनें
पदोन्नति होने के बाद स्वीकृत पदों के हिसाब से ही तबादले किए जाएं। रनिंग स्टाफ की कमी से उनके ऊपर काम का दबाव ज्यादा है। इसको देखते हुए नई भर्तियां की जाएं।
- यूके सिंह पटेल, लोको पायलट
यूनिफाइड पेंशन स्कीम में जो त्रुटियां हैं। उन्हें सुधारें। एनपीएस के तहत हुई कटौती को रिटायरमेंट के बाद वापस किया जाए। रनिंग रूमों की व्यवस्था सुधारने की जरूरत है ताकि कर्मचारियों को पर्याप्त आराम मिल सके।
एनबी सिंह, मंडल मंत्री एनईआरएमयू
क्रू लॉबी में रेस्ट रूम की सुविधा हो ताकि साइनिंग ऑन के बाद अगर गाड़ी विलम्बित हो तो रनिंग स्टाफ आराम कर सके। मालगाड़ी के लोको पायलट को 72 घंटे की जगह 40 घंटे में हेडक्वार्टर में वापसी सुनिश्चित की जाए।
- रामअजोर यादव, अध्यक्ष ऑल इंडिया गार्ड्स काउंसिल (वाराणसी)
मालगाड़ी, मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर के ट्रेन मैनेजरों को महीने में चार रेस्ट मिलना सुनिश्चित किया जाए, जो 16 प्लस 30 घंटे से कम ना हो।
एसके गुप्ता, ट्रेन मैनेजर व उपाध्यक्ष यूआरएमयू
रनिंग कर्मचारियों की 36 घंटे में मुख्यालय वापसी सुनिश्चित की जाए। रेलवे में दोहरीकरण के कारण बढ़ी गाड़ियों की संख्या के हिसाब से नए पदों का सृजन कर भर्ती की जाए।
विंध्यवासिनी यादव, शाखा सचिव यूआरएमयू
रेलवे में रनिंग स्टाफ की काफी कमी है। इससे हमारे ऊपर काम का दबाव काफी ज्यादा है। खाली पड़े पदों पर सरकार को भर्ती कर इसका समाधान निकालना चाहिए।
- राणा राकेश रंजन कुमार, ट्रेन मैनेजर और संगठन मंत्री, नरमू
आठवें वेतन आयोग का गठन समय की जरूरत है। रनिंग स्टाफ को 30 प्लस 16 घंटे आवधिक विश्राम दिया जाए। पुरानी पेंशन व्यवस्था को तुरंत शुरू की जाए।
राकेश पाल, मंडल मंत्री एनई रेलवे मेंस कांग्रेस
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को विभागीय परीक्षा (एलडीसीई ओपेन टू ऑल) से आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए। रेलवे बोर्ड के निर्देशानुसार रनिंग स्टाफ को टूल बॉक्स दिया जाए।
अखिलेश पांडेय, केंद्रीय अध्यक्ष, एनई रेलवे मेंस कांग्रेस
रनिंग स्टाफ का डीए 50 फीसदी होने के बाद भी रनिंग अलाउंस 25 प्रतिशत बढ़ाया जाए। क्योंकि नॉन रनिंग स्टाफ का ट्रांसपोर्ट अलाउंस बढ़ा दिया गया है।
डॉ. कमल उसरी, राष्ट्रीय प्रचार सचिव नेशनल मूवमेंट टू सेफ रेलवे
सरकार को आठवें वेतन आयोग का गठन करना चाहिए। साथ ही रनिंग स्टाफ और अन्य रेलकर्मियों की बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए कारगर प्रयास करना चाहिए।
- डीके सिंह, शाखा मंत्री एनआरएमयू
हॉस्पिटल मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) की खामियां दूर होनी चाहिए ताकि रेलकर्मियों और उनके परिवार को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल सके। महिला कर्मियों की सुरक्षा के साथ ओपीएस लागू किया जाए। साथ ही आठवें वेतन आयोग का गठन हाना चाहिए।
नवीन सिन्हा, कर्मचारी परिषद सदस्य (बरेका)
अन्य रेल मंडलों के साथ हमारी किलोमीटर बैलेंसिंग ठीक की जाए। दूसरे रेल मंडल के लोको पायलट वाराणसी सीमा में जितनी दूरी तक गाड़ी चलाते हैं, उतनी दूरी हमें भी अन्य मंडलों में तय करने दी जाए। रनिंग रूम की बुनियादी समस्याएं दूर हो।
आनंद तिवारी, सहायक पायलट व सहायक शाखा मंत्री एनईआरएमयू
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