बोले काशीः फ्लोर मिल संचालक चाहें, स्थिर नीति और सब्सिडी
Varanasi News - वाराणसी के आटा मिल संचालक व्यावसायिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। एमएनसी कंपनियों और सरकार की अस्थिर नीतियों के कारण उन्हें स्थिर नीति और सब्सिडी की आवश्यकता है। बनारस में 45 फ्लोर मिल हैं, जो...
वाराणसी। हर भारतीय घर में ताजा आटा केवल स्वाद नहीं बनाता बल्कि यह एक संस्कृति है। वह खुद में जीने का एक तरीका है। सदियों पहले घरों में पत्थर की चक्की से आटे का सफर शुरू हुआ था। वह मोटर चक्की से होता हुआ फ्लोर मिलों तक जा पहुंचा है। फ्लोर मिल संचालक व्यावसायिक चुनौतियों से दो-चार हैं। एमएनसी (मल्टी नेशनल कॉरपोरेशन) कंपनियों से मिल रहीं चुनौतियों को सरकार की अस्थिर नीतियां गंभीर बना रही हैं। संचालक चाहते हैं कि उन्हें स्थिर नीति और सब्सिडी का सपोर्ट मिले। यह यूपी को वन ट्रिलियन इकोनॉमी वाला प्रदेश बनाने के लिए भी जरूरी है।
बनारस और चंदौली में फ्लोर मिलों की 45 यूनिटें हैं। इनसे रोज लगभग 10 हजार टन आटा निकलता है। मिल संचालकों का वाराणसी रोलर फ्लोर मिल एसोसिएशन के नाम से संगठन है। यह यूपी रोलर्स फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन से जुड़ा है। यह एसोसिएशन कोरोना काल में चर्चा में आया जब मुनाफाखोरों के चलते आटा 50 से 55 रुपये किलो पहुंच गया था। तब एसोसिएशन ने पूरे लॉकडाउन के दौरान 27 रुपये किलो की रेट पर आटा उपलब्ध करवाया था। एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक बजाज ने बताया कि वह पूरे प्रदेश के मिल संचालकों का सामूहिक निर्णय था। तब सरकार ने हमें नोटिस में लेना शुरू किया।
नई औद्योगिक नीति में फ्लोर मिल नहीं
बनारस में आटा चक्कियों की संख्या 200 से अधिक है। गलियों से लेकर मोहल्लों-कॉलोनियों तक। बाजार में मल्टीनेशनल कंपनियों के आटे के बढ़ते चलन के कारण पिछले 10 वर्षों में आटा चक्कियों की संख्या घटी है। लोगबाग गेहूं साफ करने-धोने और सुखाने के बाद उसे चक्की में पिसवाने के झंझट से बचते हैं। 10-20 किलो के पैकेट या झोले में बिक रहा आटा खरीदना सुविधाजनक लग रहा है। यह प्रवृत्ति ही बड़ी कंपनियों को मजबूती दे रही है जो आटा चक्कियों से होती हुई अब फ्लोर मिलों तक पहुंच चुकी है।
एसोसिएशन यह मानता है कि यूपी की नई औद्योगिक नीति-2022 प्रदेश को ‘उद्योग प्रदेश बनाने में सक्षम है लेकिन कसक भी है कि उस नीति में फ्लोर मिल कहीं नहीं हैं। दूसरे उद्योगों की तरह मिलों को उद्योग का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए सब्सिडी की मांग भी नजरंदाज कर दी जाती है। एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय कपूर, श्यामसुंदर बजाज ने कहा कि यूपी गेहूं उत्पादन में लगातार सबसे अव्वल प्रदेश बना हुआ है लेकिन गेहूं की प्रॉसेसिंग में यह तीसरे नंबर पर है। ऐसा इसलिए क्योंकि दूरगामी ठोस नीति के अभाव में फ्लोर मिलें अपेक्षित आउटपुट नहीं दे पा रही हैं।
आटा ‘इनोवेटिव प्रोडक्ट नहीं
कौस्तुभ अग्रवाल के मुताबिक हाल ही में शासन ने कैपिटल सब्सिडी और ऋण के ब्याज में छूट की मांग यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नई औद्योगिक नीति के तहत आटा इनोवेटिव प्रोडक्ट नहीं है। यानी, ऐसा अभिनव उत्पाद नहीं है जो लोगों की दिनचर्या को सुगम या आसान बना सके। इस वजह पर भौंचक प्रदेश भर के मिल संचालकों ने सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। कौस्तुभ अग्रवाल ने बताया कि दो माह पहले सरकार की ओर से अनुकूल आश्वासन मिला है लेकिन उसका क्रियान्वयन होना बाकी है। दीपक बजाज ने कहा कि सरकार का यह निर्णय फ्लोर मिलों के लिए संजीवनी साबित होगा।
मंडी शुल्क की मार, रकबा की झाम
पीयूष अग्रवाल, निखिल अग्रवाल, मनोज अग्रवाल आदि ने बताया कि पूर्वांचल की फ्लोर मिलों का आटा मुख्य रूप से झारखंड, बिहार और पं. बंगाल जाता रहा है। हाल के वर्षों में उन राज्यों ने मंडी शुल्क हटा लिया है जबकि यूपी में लागू है। इसकी दोहरी मार पड़ रही है। एक-बिहार, झारखंड एवं बंगाल के मार्केट में स्थानीय प्रोडक्ट का रेट सस्ता होने के कारण हमारे आटा की खपत कम हुई है। इसका असर ओवर ऑल प्रोडक्शन पर पड़ा है। दूसरा-बनारस समेत यूपी की फ्लोर मिलें किसानों को बैंक के जरिए सीधा भुगतान नहीं कर सकतीं। उन्हें किसानों से उस खेत के रकबे से जुड़ा प्रमाण लेना पड़ता है जिसमें गेहूं पैदा हुआ है। पीयूष अग्रवाल ने बताया कि किसान भी इस प्रावधान से परेशान होकर सीधे खुले मार्केट में गेहूं बेचने में अधिक सहूलियत महसूस करते हैं। देश के किसी अन्य प्रदेश में यह प्रावधान नहीं है। संचालकों का कहना है कि बैंक खातों के जरिए सीधे भुगतान का प्रावधान यहां भी लागू होना चाहिए। इसके अलावा बिहार और झारखंड में मिलें चालू होने से वहां के श्रमिक अब बनारस या यूपी के किसी जिले में काम करने से कतरा रहे हैं।
स्टॉक लिमिट में दोहरापन
मनोज बजाज, संजय अग्रवाल, अश्विनी सिंह ने स्टॉक लिमिट में दोहरी नीति की ओर ध्यान दिलाया। उनके मुताबिक मल्टीनेशनल कंपनियों को पूरे सीजन और उसके बाद भी गेहूं का स्टॉक रखने की छूट है जबकि फ्लोर मिलों का स्टॉक हर माह चेक होता है। कंपनियां किसानों के घरों से गेहूं उठा लेती हैं, हमें न तो सुविधा है न छूट। इसके साथ सबसे बड़ी विसंगति यह है कि हर दो-तीन माह बाद केन्द्र या प्रदेश सरकार ओपेन मार्केट से खरीद की नीति घोषित कर दे रही है। फिर, मार्केट का मूल्य स्थिर नहीं होता। वह घटता-बढ़ता रहता है। एक तो ज्यादातर मिल संचालक लंबी अवधि के लिए स्टॉक नहीं रख पाते, दूसरे सरकार मिलों की क्षमता के अनुसार उन्हें एफसीआई के माध्यम से गेहूं उपलब्ध नहीं करा रही है। संचालकों के मुताबिक, हम गेहूं भंडारण में सरकार के भी मददगार हो सकते हैं बशर्ते पॉलिसी एकरूप हो।
बिजली भी महंगी, मिलें चलीं बिहार
मनोज माहेश्वरी आदि ने ध्यान दिलाया कि सन-2004 के बाद लगी यूनिटों को विद्युत सुरक्षा शुल्क में छूट दी जा रही है जबकि पुरानी यूनिटों को वह नहीं मिलती। इससे पुरानी मिलों का रेनोवेशन खर्च बढ़ जाता है। फिर, पड़ोसी राज्यों की तुलना में यूपी में बिजली महंगी है। उनकी मांग है कि सौर ऊर्जा संयंत्रों के साथ उन्हें नेट मीटरिंग की सुविधा मिलनी चाहिए। संचालकों के मुताबिक, गेहूं की महंगे दाम पर उपलब्धता, श्रमिकों का संकट, स्टॉक लिमिट आदि कारणों के चलते बनारस के लगभग एक दर्जन उद्यमियों ने बिहार-यूपी सीमा पर अपनी यूनिटें स्थापित कर ली हैं। यह उद्योगों के पलायन का संकट है।
वन डिस्ट्रिक्ट-वन फूड प्रोडक्ट
दीपक बजाज, विजय कपूर आदि ने प्रदेश सरकार को सुझाव दिया कि वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) की तरह जिले में ‘वन डिस्ट्रिक्ट-वन फूड प्रोडक्ट पॉलिसी लागू होनी चाहिए। इससे फ्लोर मिलों को बहुत शक्ति मिलेगी क्योंकि गेहूं बनारस समेत पूर्वांचल का प्रमुख खाद्य उत्पाद है। ये मिल संचालक कानून व्यवस्था में सुधार से बहुत खुश हैं। हां, उद्योग बंधु के बाबत एक सुझाव देते हैं कि उसमें मुख्यमंत्री कार्यालय या मंत्री का सीधा इन्वाल्वमेंट होना चाहिए। वे हर दो या तीन माह में बैठक में रहें तो इससे उद्योग बंधु अधिक प्रभावी होगा।
फ्लोर मिलर्स ने कहा
दूसरे उद्योगों की तरह फ्लोर मिलों को सब्सडी उनके लिए संजीवनी साबित होगी।
-दीपक बजाज
सरकार की स्टॉक लिमिट की पॉलिसी स्पष्ट न होने से बहुत दिक्कतें हैं। हम कहां टिक पाएंगे?
-विजय कपूर
बड़ी कंपनियां सीधे किसानों से गेहूं खरीद रही हैं जबकि मिलों को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
-मनोज अग्रवाल
सोलर पैनल लगाने वाले संचालकों को नेट मीटरिंग की सुविधा और विद्युत सुरक्षा शुल्क में छूट मिले।
- पवन गुप्ता
मंडी शुल्क से बनारस की फ्लोर मिलों की लागत बढ़ रही है जबकि पड़ोसी राज्यों में पूरी छूट है।
-अश्विनी सिंह
बिजली महंगी होने से मिलें अब 12 घंटे ही चल रही हैं। प्रोडक्शन में कमी आई है।
-निखिल अग्रवाल
अनुकूल नीतियां न होने से संचालक तो परेशान हैं ही, रोजगार भी घट रहा है।
-कौस्तुभ अग्रवाल
सस्ती बिजली और मंडी शुल्क नहीं होने से बिहार में कई इंडस्ट्री लग गईं। इसका असर यूपी पड़ रहा है।
-पीयूष अग्रवाल
दूसरे उद्योग की तरह आटा मिलों के लिए समान नीति होनी चाहिए। तभी मिलें सर्वाइव कर पाएंगी।
- संजय अग्रवाल
यूपी को गेहूं प्रॉसेसिंग में भी नंबर वन बनाने के लिए मिलों को सुविधाएं मिलनी चाहिए।
-मनोज बजाज
चीनी मिलों की तरह आटा मिलों को संरक्षण मिलना चाहिए। तभी यूपी की इकोनॉमी भी मजबूत होगी।
-श्यामसुंदर बजाज
उद्योग बंधुओं की बैठक में हर तीन माह में मुख्यमंत्री का प्रतिनिधि या कोई मंत्री भी होना चाहिए।
- अरुण माहेश्वरी
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शिकायतें
1.बिजली मंहगी होने का मिलों पर असर पड़ रहा है। जो मिलें 24 घंटे चलती थीं, अब 12 घंटे ही चल रही हैं।
2.मंडी शुल्क लगने से फ्लोर मिलें प्रभावित हैं। यूपी से सस्ते दर पर बिहार में आटा मिल रहा है।
3.मिल संचालकों को तीन माह ही गेहूं स्टोर करने की अनुमति है। वहीं बड़ी कंपनियां कई महीनों तक स्टोर कर लेती हैं। सीधा किसानों से गंहू खरीद लेती हैं।
4-पुरानी इंडस्ट्री को विद्युत सुरक्षा शुल्क में छूट नहीं मिलती है। जबकि कोई भी इंडस्ट्री एक समय के बाद रेनोवेशन जरूर कराती है। इसमें भी उद्यमियों को अधिक खर्च पड़ता है।
5-हर दो-तीन माह पर नई पॉलिसी लागू कर दी जाती है। इससे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सुझाव
1.बुनकरों और अन्य उद्योग की तरह मिल संचालकों को भी बिजली दरों में छूट मिलनी चाहिए। इससे सहूलियत होगी।
2.बिहार जैसी सस्ती बिजली और मंडी शुल्क में छूट मिले तो यूपी पूरे देश में गेहूं प्रॉसेसिंग में भी नंबर वन बने।
3.जैसे मिल संचालकों के लिए स्टॉक लिमिट के नियम हैं, वही नियम ब्रांडेड कंपनियों पर भी लागू होने चाहिए।
4.पुरानी इंडस्ट्री को भी विद्युत सुरक्षा शुल्क में छूट। इससे मिलें पूरी क्षमता के साथ काम करेंगी और प्रॉसेसिंग बढ़ेगी।
5.हर दो-तीन माह पर नई पॉलिसी बनाने का चलन बंद होना चाहिए। किसी भी नियम में स्थिरता होनी चाहिए। अनिश्चितता से कारोबार प्रभावित होता है।
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