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‘संतुलित युवा शक्ति से निर्माण, असंतुलित हुई तो सिर्फ ध्वंस’

आदि योगी के योग का मर्म जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से विगत 36 वर्षों से मानव सेवा में संलग्न सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा है कि मनुष्य जीवन में युवा अवस्था ही सर्वाधिक शक्तिशाली और सृजनकारी होती...

‘संतुलित युवा शक्ति से निर्माण, असंतुलित हुई तो सिर्फ ध्वंस’
वाराणसी। प्रमुख संवाददाताMon, 24 Sep 2018 07:34 PM
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आदि योगी के योग का मर्म जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से विगत 36 वर्षों से मानव सेवा में संलग्न सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा है कि मनुष्य जीवन में युवा अवस्था ही सर्वाधिक शक्तिशाली और सृजनकारी होती है। युवा शक्ति संतुलित होकर सकारात्मक दिशा में बढ़े तो निर्माण होता है। यह निर्माण व्यक्ति से शुरू होकर परिवार, समाज, राष्ट्र से होता हुआ विश्व तक पहुंचता है। यदि युवा शक्ति असंतुलित हो गई तो सिवाय ध्वंस के कुछ और नहीं होगा। 

सद्गुरु सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान स्थित शताब्दी प्रेक्षागृह में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से सीधा संवाद कर रहे थे। यूथ एंड ट्रुथ के 11वें सत्र में शिक्षक भी शामिल थे, लेकिन मंच पर विद्यार्थियों के प्रतिनिधि के रूप में मेडिकल की छात्रा अदिति उपाध्याय, शोध छात्र प्रियांशु सिंह और लॉ के छात्र सारांश चतुर्वेदी सद्गुरु के साथ मंचासीन हुए। यही तीनों प्रतिनिधि बारी बारी से प्रश्न करते जा रहे थे और सद्गुरु उन प्रश्नों का उत्तर अपने अंदाज में देते जा रहे। बेशक उनके संवाद की भाषा अंग्रेजी थी, लेकिन इतनी सरल और सहज कि अंग्रेजी के सामान्य जानकार को भी सबकुछ समझ में आ जाए। उन्होंने कहा कि मशीनें मानवीय क्षमताओं का विस्तार मात्र हैं। जितने भी गुण हमारे शरीर में हैं मशीनों में उनसे इतर कुछ भी नहीं। हमारी आंखें देख सकती हैं, लेकिन अंतरिक्ष में देखने के लिए टेलिस्कोस्प बनाया गया। हमारे कान सुन सकते हैं, लेकिन बहुत दूर की आवाज सुनने के लिए टेलीफोन की जरूरत पड़ी। 

विज्ञान और तकनीक से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में आज की भांति तकनीक नहीं थी। यही वजह थी कि समाज में परिवर्तन के लिए गांव-गांव घूमने के बाद भी बुद्ध को परिणाम नहीं मिला तो उन्होंने राजाओं को लक्ष्य किया। जब राजा का मन बदला तो उसने प्रजा का मन भी बदल दिया। कई प्रश्नों के उत्तर तो उन्होंने प्रश्नों के रूप में ही दिए। मसलन कोई मनुष्य भगवान के रूप में क्यों पूजा जाने लगता है? पूछने पर जवाब एक प्रश्न ही था क्या महामना पं. मदन मोहन मालवीय भगवान हैं? नहीं। उन्होंने ऐसे सद्कृत्य किए कि मनुष्य होते हुए भी उनका दर्जा ऊंचा हो गया। हम भगवान को पाने के लिए पूजा नहीं करते हमारा लक्ष्य मुक्ति या मोक्ष पाना होता है। सत्र के अंत में मनोविज्ञान की छात्रा आयुषी दीक्षित और शोध छात्र सुशांत कुमार को भी प्रश्न पूछने का अवसर मिला।

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