वाराणसी। प्रमुख संवाददाता
शस्त्र के सामने कभी न झुकना और शास्त्र के सामने सदैव झुकना ही हमारी संस्कृति की पहचान है। गुरु विश्वामित्र ने यही शिक्षा प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को दी थी। इसका प्रमाण लक्ष्मण-परशुराम संवाद के मध्य मिला। लक्ष्मण परशुराम के जनेऊ को देखकर झुके लेकिन उनके फरसे को देख कर तनिक विचलित नहीं हुए।
ये बातें बरेली के मानस वक्ता डॉ. उमाशंकर व्यास ने संकट मोचन मंदिर में रामविवाह पंचमी के उपलक्ष्य में आयोजित मानस सम्मेलन के अंतिम दिन सोमवार को बतौर मुख्य वक्ता कहीं। जबलपुर से पधारे डॉ. बृजेश दीक्षित ने कहा कि प्रभु श्रीराम के प्राकट्य से संत और देवता तो प्रसन्न थे ही, देवाधिदेव महादेव भी अत्यंत प्रसन्न हुए। पं. श्यामनारायण त्रिपाठी, पं. राममिलन पाठक, पं. पारसनाथ पाण्डेय, पं. रामकृष्ण त्रिपाठी, पं. विपिन पाठक आदि ने भी मानस पर चर्चा की। संचालन नंदलाल उपाध्याय ने किया।
नवाह्न परायण का हुआ समापन
मंदिर में चल रहे रामचरित मानस नवाह्न परायण का भी समापन हुआ। पं. राघवेंद्र पाण्डेय के आचार्यत्व में 51 भूदेवों ने मानस के उत्तर कांड का सस्वर गान किया। महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने व्यासपीठ का पूजन किया। समस्त भूदेवों को दक्षिणा प्रदान कर विदाई दी गईं। इस अवसर पर मंदिर में भंडारा भी हुआ।