घर को ही बनाए बैकुंठ, करें भजन कीर्तन
कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि घर को ही बैकुंठ बनाएं। मनुष्य के जीवन में चार पड़ाव आते हैं। उसका पूर्ण सदुपयोग करना चाहिये। अंतिम समय में वानप्रस्थ आश्रम की जो बात पुराणों मे कही गयी है, उसका...
कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि घर को ही बैकुंठ बनाएं। मनुष्य के जीवन में चार पड़ाव आते हैं। उसका पूर्ण सदुपयोग करना चाहिये। अंतिम समय में वानप्रस्थ आश्रम की जो बात पुराणों मे कही गयी है, उसका भी पालन करना चाहिये। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि घर-परिवार को छोड़कर चले जाएं, बल्कि घर को ही बैकुंठ बनायें। भगवान के नाम का सुमिरन-कीर्तन करें।
बीएचयू के मालवीय भवन में महामना शताब्दी वर्ष के तहत आयोजित नौ दिवसीय श्रीरामचरित मानस कथा में बुधवार को उन्होंने कहा कि भगवान से मन जोड़ना है तो मन को निर्मल बनाना होगा। वैसे तो भगवान तो कण-कण में विद्यमान है पर वह निर्मल मनवालों को ही भक्ति प्रदान करते हैं। इस अवसर पर प्रो. उपेन्द्र पाण्डेय, प्रो. कृपा शंकर ओझा, प्रो. लल्लन मिश्र, प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय के साथ ही विश्वविद्यालय परिवार के शिक्षक, कर्मचारी व विद्यार्थी उपस्थित थे।