बाबा के अड़भंगी भक्तों ने खेली चिता भस्म की होली
औघड़दानी शिव के अड़भंगी भक्तों ने महाश्मशान पर चिता-भस्म से होली खेली। विरक्ति के स्थान, श्मशान भूमि पर जलती चिताओं से निकाली गई गरम भस्म मस्ती में उड़ाई गई। कभी ‘बम बम बोल रहा है काशी तो कभी ‘खेलें...
औघड़दानी शिव के अड़भंगी भक्तों ने महाश्मशान पर चिता-भस्म से होली खेली। विरक्ति के स्थान, श्मशान भूमि पर जलती चिताओं से निकाली गई गरम भस्म मस्ती में उड़ाई गई। कभी ‘बम बम बोल रहा है काशी तो कभी ‘खेलें मसाने में होली दिगंबर जैसे लोकप्रिय होली गीतों पर चिता भस्म उड़ाते हु़ए अड़भंगी भक्त मस्ती में नाचते रहे। दाहकर्म के दौरान शोक मेें डूबे लोगों पर संगीत के बादल भी छाए।
यह सब कुछ काशी के मणिकर्णिका घाट पर सोमवार को खड़ी दोपहर में हुआ। हालांकि यह परंपरा पूर्व में संन्यासियों और औघड़ों द्वारा ही निभाई जाती थी लेकिन वर्तमान में उस परंपरा का निर्वाह करने के लिए काफी संख्या में गृहस्त मणिकर्णिका घाट पर जुटे। खुद को शिव का गण मान कर चिता भस्म से होली खेलने के दौरान भक्तों की आस्था देखते ही बनती थी। आराम से एक दूसरे पर भस्म छिड़क रहे भक्त धीरे-धीरे उतावले होने लगे। विभिन्न वाद्ययंत्रों की अनुगूंज उनमें और भी जोश भर रही थी। जैसे जैसे संगीत मध्य से द्रुत लय की ओर बढ़ता रहा वैसे वैसे भक्तों का भाव भी उफान मारने लगा। देखते ही देखते दर्जनों हाथ एक साथ हवा में चिता भस्म उड़ाने लगे। समूचा श्मशान स्थल चिता भस्म की धुंध में घिर गया।
भूल गए अपनों को खोने का गम
दाहकर्म के लिए घाट पर जुटे लोग आश्चर्य भरी नजरों से पूरे माजरे को देखते रहे। होली के पहले किसी अपने को खोने का दुख भूल कर वह भी कुछ देर के लिए चिताभस्म की होली का हिस्सा बन गए। इससे पूर्व श्मशानेश्वर महादेव की विधान पूर्वक अर्चना की गई। उन्हें भांग, गांजा और मदिरा का विशेष भोग भी अर्पित किया गया।
ऐसी है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन देवी पार्वती का गौना कराने के बाद अगले दिन भगवान शंकर ने महाश्मशान पर जाकर भूतों-प्रेतों और गणों सहित वहां निवास करने वाली कई अदृश्य शक्तियों के साथ चिता भस्म की होली खेली थी। काशी के संन्यासी और औघड़ संत उसी स्मृति को ध्यान में रख कर मसान पर चिता भस्म से होली खेलते थे। अब इस परंपरा का निर्वाह गृहस्तों द्वारा किया जा रहा है।
ढाई दशक पूर्व पुन: हुई शुरुआत
कार्यक्रम संयोजक गुलशन कपूर के अनुसार अब से करीब 26 वर्ष पूर्व मणिकर्णिका मोहल्ले के कुछ निवासियों और मंदिर प्रबंधन परिवार के सदस्यों ने इसकी पुन: शुरुआत की। कहते हैं कि रंगभरी एकादशी के दिन गौरा की विदाई कराने के बाद द्वादशी तिथि पर बाबा बाबा भूत, प्रेत, गण सहित कई अदृश्य शक्तियों के साथ मसान पर होली खेलने महाश्मशान पर जाते हैं।