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यादों के झरोखों से: कभी बुलानाला पर जमती थी अटलजी की अड़ी

भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी का काशी से भी गहरा लगाव रहा है। आरएसएस के प्रचारक, वीर अर्जुन और राष्ट्रधर्म के संपादक, तत्कालीन जनसंघ के सचिव व अध्यक्ष, सांसद व...

यादों के झरोखों से: कभी बुलानाला पर जमती थी अटलजी की अड़ी
वाराणसी। आशुतोष पाण्डेयThu, 16 Aug 2018 07:44 PM
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भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी का काशी से भी गहरा लगाव रहा है। आरएसएस के प्रचारक, वीर अर्जुन और राष्ट्रधर्म के संपादक, तत्कालीन जनसंघ के सचिव व अध्यक्ष, सांसद व विपक्ष के नेता और फिर प्रधानमंत्री के रूप में उनका काशी आगमन होता रहा। लगभग सात दशक की अवधि में उनके कई स्थानीय संपर्क और ठिकाने बनते गए जहां वह रूकते थे। अपनों के बीच संगठन, समाज और देश की चर्चाएं करते थे। 

काशी से अटल जी का पुराना लगाव रहा है। सन-50 से 60 के दशक के बीच के दौर में उनका ठिकाना कभी गोदौलिया स्थित घटाटे राम मंदिर (आरएसएस कार्यालय) हुआ करता था तो कभी रथयात्रा स्थित मदनलाल धवन (भाजपा एमएलसी अशोक धवन के पिता), सिद्धगिरी बाग स्थित सत्यपाल कपूर (भाजपा नेता हर्षपाल कपूर के पिता), जगतगंज स्थित विश्वनाथ वशिष्ठ के अलावा राजा दरवाजा स्थित किशोरी लाल के आवास पर रूकते थे। काशी में आरएसएस के दधीचि कहे जाने वाले किशोरी लाल, पूर्व मंत्री हरिश्चंद्र श्रीवास्तव हरीश जी, पं. राजबलि तिवारी, पूर्व सांसद शंकरप्रसाद जायसवाल, पूर्व विधायक चंपालाल जायसवाल जैसे लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं। 

जनसंघ के जमाने के इन दिग्गजों ने समय-समय पर ‘हिन्दुस्तान’ के साथ यादें साझा की थीं। किशोरी लाल जी ने कभी इस संवाददाता को बताया था कि सन-50 के दशक में अटल जी ने बुलानाला गांधी आश्रम के पीछे एक मकान को अपना ठिकाना बनाया था। (पूर्व मंत्री राजबलि तिवारी ने इसकी पुष्टि की थी।) अब वहां मिठाई की दुकान खुल चुकी है। उस वक्त अटल जी वीर अर्जुन का भी काम देखते थे। सामान्य वेशभूषा वाले अटल जी यहां आते। एक-दो दिन रूकते, फिर किसी जिले के दौरे पर निकल जाते थे। यहां रहने पर बुलानाला से नीचीबाग के बीच किसी चाय की दुकान पर शाम के वक्त अड़ी जमती थी। यहीं उनकी मुलाकात हरीश जी, गोपाल साबू, विश्वनाथ वशिष्ठ, गोपालाचार्य टोणपे, मानिक लाल मुखर्जी, छगनलाल आदि से होती थी। लक्सा स्थित रामकृष्ण सेवाश्रम संघ के सामने डा. बनर्जी का मकान भी अटल जी का एक केन्द्र था पर यहां बैठकी नहीं, सिर्फ मुलाकात होती थी। हरीश जी उस वक्त जनसंघ के संगठन मंत्री हुआ करते थे। उनके साथ अटल जी कभी मोटर साइकिल तो कभी साइकिल पर बैठ कर शहर में घूमने, कार्यकर्ताओं से मिलने निकल लेते थे। उनके सहज व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण था। 

पूर्व मंत्री पं. राजबली तिवारी ने एक संस्मरण सुनाया था। सन-50 में उन्हें महानगर का संघ चालक बनाया गया। उसी समय अटल जी आए थे। बहुत प्रसन्न हुए यह सुनकर। चुटकी ली, अब तो तुम उम्रदराज हो गए पंडित जी। आरएसएस में संघचालक का दायित्व बुजुर्ग हो चले स्वयंसेवक को ही सौंपने की परंपरा रही है।  

बनारसी ठंडई व खीर के दीवाने
लगभग एक दर्जन बार अपने आवास पर अटल जी की आवभगत कर चुके भाजपा के एमएलसी अशोक धवन ने बताया कि उन्हें बनारसी ठंडई और खीर बहुत पसंद थी। जब भी आए, इन दोनों की फरमाईश जरूर करते। बाद में डॉक्टरों ने मना कर दिया तब भी सन-90 में सारनाथ में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान वह खीर खाने का लोभ नहीं रोक सके थे। इसी तरह एक बार होली के आसपास डीएवी डिग्री कॉलेज में संस्कार भारती की ओर से एक सभा रखी गई। उसमें मेगा सीरियल ‘रामायण’ में रावण की भूमिका निभा चुके अरविंद त्रिवेदी भी अपनी पुत्री के साथ आये थे। अटल जी मुख्य वक्ता थे। भाषण के लिए उठे अटल जी ने पहले ठंडई की मांग रख दी कि मिलेगी तभी भाषण देंगे। मंच पर ही उन्हें ठंडई उपलब्ध कराई गई। 

बड़ों के सम्मान की सीख
सन-90 में सारनाथ में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन का ही एक अविस्मरणीय प्रसंग है। पहला सत्र समाप्त होने के बाद सभी प्रमुख नेता भोजन पंडाल की ओर बढ़े। अटल जी सबसे आगे, पीछे-पीछे आडवाणी और डा. जोशी। पंडाल में प्रवेश करते ही अटल जी की नजर सामने बैठे एक वयोवृद्ध भद्रपुरुष पर पड़ी। क्षण भर ठिठके। अपनी चप्पल उतारी। आगे बढ़कर उन भद्रपुरुष का चरण स्पर्श किया। उनकी देखादेखी आडवाणी और डा. जोशी, जसवंत सिंह आदि ने भी जूता-चप्पल उतार कर पैर छुए। पता चला, वह भद्रपुरुष काशी के पूर्व महापौर पं. सरयू प्रसाद द्विवेदी थे। अटल जी से मिलने आए थे। अटल जी ने सबके सामने कहा-यह मेरे बड़े भाई हैं। 

ऐसा सहज व्यक्तित्व दुर्लभ
पूर्व विधायक श्यामदेव रायचौधरी ने 60 के दशक में पार्षद हुआ करते थे। अटल जी के संस्मरण याद करते हुए भावुक हो उठे दादा ने कहा-‘भारतीय राजनीति में ऐसा सहज और सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ आत्मीय व्यवहार करने वाला राजनेता मैंने पं. दीनदयाल जी के बाद अटल जी को ही पाया।’ दीनदयाल जी गंभीर रहा करते थे मगर अटल जी के हर व्यवहार व बात में गंभीरता के साथ हास्य का भी पुट मिला रहता था। इसलिए कार्यकर्ता उनके साथ जल्द घुलमिल जाते थे।

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