वाराणसी। वरिष्ठ संवाददाता
शासन से मदद न मिलने के बाद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अपने ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय के जीर्णोद्धार के लिए अब आम लोगों और संस्थाओं (क्राउड फंडिग) की मदद लेगा। इसके लिए पहल शुरू हो गई है। कुछ संस्थाओं ने मदद की पेशकश की भी है।
विश्वविद्यालय प्रशासन के पास खुद का बजट नहीं है। इसलिए सरस्वती भवन के जीर्णोद्धार के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था। यह प्रस्ताव इंटैक की मदद से तैयार हुआ था। इंटैक ने ही मुख्य भवन का जीर्णोद्धार किया है। उम्मीद थी कि अगर शासन ने आर्थिक मदद दी तो इंटैक के विशेषज्ञों के परामर्श से जीर्णोद्धार कराया जाएगा। मगर शासन की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। पिछले महीने पांडुलिपियों के संरक्षण से जुड़ी संगोष्ठी में कुलपति प्रो. राजराम शुक्ल ने साफ तौर पर कहा था कि अगर इस विरासत को संरक्षित करने का प्रयास नहीं किया गया तो इसके नष्ट होने का खतरा है।
16 नवम्बर 1907 को पड़ी थी नींव
सरस्वती भवन का शिलान्यास 16 नवम्बर 1907 को वेल्स के राजकुमार एवं राजकुमारी के काशी आगमन के समय हुआ था। सन-1914 में तैयार भवन का नाम ‘प्रिन्स ऑफ वेल्स सरस्वती भवन रखा गया। अब रखरखाव के अभाव में भवन की छत टपक रही है। खिड़कियां टूट गई हैं। पत्थर की दीवालों की लंबे समय से सफाई नहीं हुई है। दूर से ही देखने पर इस भवन की दुर्दशा का अंदाज लग जाता है।
एक लाख से अधिक पांडुलिपियां
इस भवन में वेद, वेदांग, पुराण, तंत्रागम, ज्योतिष एवं व्याकरण आदि विषयों की एक लाख से अधिक पांडुलिपिया हैं। वे देवनागरी, खरोष्ठी, मैथिली, बंग, ओड़िया, नेवाड़ी, शारदा, गुरुमुखी, तेलुगु एवं कन्नड़ लिपियों और संस्कृत में हैं। ये पांडुलिपियां स्वर्ण पत्र, कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र एवं काष्ठपत्र पर लिखी गई हैं। लगभग एक हजार वर्ष पुरानी श्रीमद् भागवत की पांडुलिपि है। स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचध्यायी (सचित्र) भी है। दो दिन पहले यहां आए उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत दुर्लभ पांडुलिपियों को देख अभिभूत हो गए थे।
चालीस वर्षों से नहीं बदला गया खारवा
पांडुलिपियों को सुरक्षित रखने के लए विशेष प्रकार के रसायन से युक्त कपड़ा (खारवा) का प्रयोग किया जाता है। बजट के अभाव में इसे चालीस वर्षों से नहीं बदला गया। पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने इन पांडुलिपियों के डिजिटलाइजेशन का सुझाव दिया था। उनके सुझाव पर डिजिटलाइजेशन का प्रस्ताव शासन को भेजा गया मगर उसका भी कोई जवाब नहीं आया है।
कोट
सरस्वती भवन के स्थिति को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन से चिन्तित है। शासन को जीर्णोद्धार का प्रस्ताव भेजा गया था मगर अभी कोई जवाब नहीं आया है। कुछ निजी संस्थाएं आर्थिक मदद देने को तैयार हैं। उनसे शीघ्र बातचीत होगी। कोशिश है कि इस साल इसका जीर्णोद्धार शुरू हो जाए ताकि पांडुलिपियां सुरक्षित रहें।
-प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति, संस्कृत विवि