महाकुंभ में अघोर अखाड़ा आधी रात को करता प्रोटेक्शन हवन, 12 बजे से शुरू होकर तीन घंटे चलता
- देश के कोने-कोने से आए पीड़ित दिन में अखाड़े के धूने पर अरदास लगाते हैं और फिर एक से बढ़कर एक सिद्ध अघोरी आधी रात 12 से तीन बजे तक खास हवन करते है जिसका नाम तंत्र काट एवं प्रोटेक्शन हवन रखा गया है।

महाकुम्भ में अघोरियों का रहस्यमय संसार भी बसा हुआ है। काले वख पहने कठिन तपस्या और अद्भुत सिद्धियों के साथ इस अखाड़े के अघोरी लोगों को चमत्कृत कर रहे हैं। सेक्टर 19 स्थित अखिल भारतीय अघोर अखाड़ा के शिविर में पूरे दिन तंत्र, मंत्र, ऊपरी फेर से पीड़ित लोगों की कतार दिख जाएगी। देश के कोने-कोने से आए पीड़ित दिन में अखाड़े के धूने पर अरदास लगाते हैं और फिर एक से बढ़कर एक सिद्ध अघोरी आधी रात 12 से तीन बजे तक खास हवन करते है जिसका नाम तंत्र काट एवं प्रोटेक्शन हवन रखा गया है। अखाड़े के महासचिव अघोरी पृथ्वीनाथ ने बताया कि प्रोटेक्शन हवन के दौरान किसी भी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश की इजाजत नहीं है।
14 वर्ष पहले हुई थी अखाड़े की स्थापना
महासचिव पृथ्वीनाथ अघोरी के अनुसार, अखाड़े की स्थापना तकरीबन 14 वर्ष पूर्व हुई थी और इसमें भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से साधक जुड़े हुए हैं। अघोरी नाथ संप्रदाय से संबंध रखते हैं और गुरु आदेशनाथ अघोरी के सानिध्य में महाकुम्भ में कठिन साधनाएं कर रहे हैं। उनका मानना है कि ब्रह्मांड के परम सत्य को जानने का सबसे सरल मार्ग अघोर है।
शव साधना और सूक्ष्म मंडलों का रिसर्च
अघोरी साधना पद्धति में भौतिक जीवन से अलग कठिन प्रयोग शामिल होते हैं। वे श्मशान, जंगलों और निर्जन स्थलों में रात्रिकालीन साधना करते हैं, जहां कोई सांसारिक मोह नहीं होता। अघोरी सूक्ष्म मंडलों में मौजूद रहस्यमयी शक्तियों पर अनुसंधान करते हैं और साधनाओं से परम सत्य की खोज में रहते हैं।
परमहंस अवस्थाः अंतिम साधना
अखाड़े में कोई पद नहीं होता, बल्कि अवस्थाएं होती हैं। पहली अवस्था अघोर की होती है, फिर साधक अघोरी बनते हैं। इसके बाद, जो उच्चतम साधना प्राप्त कर लेते हैं, वे परमहंस बनकर समाज से एकदम अलग हो जाते हैं और गोपनीय स्थानों पर तपस्या करने लगते हैं।
अघोरियों को प्रिय होता है श्मशान
अघोरी श्मशान को सबसे उपयुक्त साधना स्थल मानते हैं क्योंकि वहां न सुख होता है, न दुख, न कोई अपना होता है, न पराया। वे आत्माओं को मुक्ति देने की प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं और अपनी साधना से नेगेटिव एनर्जी को नियंत्रित कर मोक्ष प्रदान करते हैं।
महाकुम्भ में शहंशाह नाथ अघोरी की कठिन तपस्या
वसंत पंचमी के दिन तपस्वी योगी शहंशाह नाथ अघोरी ने कठिन साधना करते हुए मिट्टी के चबूतरे पर बैठकर चारों ओर उपले जलाकर प्रचंड धूप में दो घंटे तपस्या की। यह दृश्य देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र हो गए। उनका कहना है कि 'जहां सारी दुनिया समाप्त हो जाती है, वहां अघोर की दुनिया शुरू होती है।'
ब्रह्मांड के परम सत्य की ओर अग्रसर अघोर परंपरा
अघोरी किसी भी चीज पर अंधविश्वास नहीं करते, बल्कि प्रयोग और अनुसंधान के आधार पर ही किसी तथ्य को स्वीकारते हैं। उनका मानना है कि जब इंसान सभी सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाता है, तभी वह सूक्ष्म मंडलों की साधनाओं को समझ सकता है। महाकुंभ में इस रहस्यमयी अखाड़े की उपस्थिति एक बार फिर लोगों के बीच जिज्ञासा और आस्था का केंद्र बनी हुई है।