
CBI अधिकारी बन भेजा फर्जी वारंट, मर्चेंट नेवी अफसर और 100 साल के पिता को डिजिटल अरेस्ट कर ठगे 1.29 करोड़
संक्षेप: यूपी के लखनऊ में मर्चेंट नेवी के एक पूर्व अफसर व पिता को डिजिटल अरेस्ट कर सवा करोड़ ठग लिए गए। मनी लांड्रिंग के केस में जेल भेजने की धमकी देकर उनको व्हाट्सऐप पर फर्जी वारंट भेजा। मामले में सरोजनीनगर थाने में मुकदमा दर्ज हुआ है।
यूपी के लखनऊ में खुद को सीबीआई अफसर बताकर साइबर जालसाजों ने मर्चेंट नेवी के सेवानिवृत्त अफसर सुरेंद्र पाल सिंह और उनके 100 वर्षीय पिता को सात दिन तक उन्हीं के घर में डिजिटल अरेस्ट रखा। दोनों को मनी लांड्रिंग के केस में जेल भेजने की धमकी देकर 1.29 करोड़ रुपये ठग लिए। डराने के लिए व्हाट्सऐप पर एक फर्जी अरेस्ट वारंट भी भेजा था।

सुरेंद्र पाल सैनिक हाउसिंग सोसाइटी सरोजनीनगर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि घर पर उनके वृद्ध पिता हरदेव सिंह हैं। 20 अगस्त को पिता के पास एक फोन कॉल आई। फोन करने वाले ने बताया कि वह सीबीआई अधिकारी आलोक सिंह मुंबई से बोल रहे हैं। पिता को धमकाते हुए मनी लांड्रिंग के केस में जेल भेजने की धमकी दी। कहा कि तुम्हारे खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज है। तत्काल प्रभाव से तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है। पिता से बैंक खातों की जानकारी ली। इसके बाद उन्हें व्हाट्सऐप पर एक अरेस्ट वारंट भेजा।
सुरेंद्र ने बताया कि देर शाम वह पहुंचे तो पिता ने जानकारी दी। वारंट देखकर वह भी डर गए। इसके बाद जालसाजों का फोन कट गया। अगले दिन फिर फोन आया। जालसाजों ने खाते में रुपये आरटीजीएस करने को कहा। इसके बाद बैंक पहुंचकर पहले 32 लाख रुपये उनके बताए गए खाते में ट्रांसफर किए। फिर जालसाजों ने फोन कर रुपये की मांग की। असमर्थता जताने पर बोले कि जांच पूरी होने के बाद रुपये वापस कर दिए जाएंगे। इसके बाद 22 अगस्त को 45 लाख रुपये, 25 अगस्त को फिर 45 लाख रुपये और 26 अगस्त को सात लाख रुपये ट्रांसफर किए। इसके बाद जालसाजों ने और रुपये की मांग की।
मना करने पर फोन काट दिया। दोबारा उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद था। अपने परिचितों को जानकारी दी तो पता चला कि साइबर जालसाजों ने ठगा है। इसके बाद सरोजनीनगर थाने में तहरीर दी। एसीपी कृष्णानगर विकास कुमार पांडेय ने बताया कि मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। साइबर थाने की टीम को भी तफ्तीश में लगाया गया है।
जांच में सहयोग किया तो देंगे क्लीनचिट
सुरेंद्र पाल ने बताया कि वह वारंट देखकर बेहद डर गए थे। उन्हें लगा कि इस अवस्था में उन्हें पिता के साथ जेल में रहना पड़ेगा क्या होगा? कैसे जेल जाएंगे? इसलिए जैसा जालसाज कहते गए, वैसा किया। दरअसल जालसाजों ने कहा था कि किसी से कुछ बताने की जरूरत नहीं है। 24 घंटे हमारे लोग सर्विलांस की मदद से तुम पर नजर रखे हैं। कोई होशियारी की तो जेल भेज दिए जाओगे। उन्होंने कहा था कि जांच में सहयोग करोगे तो रकम की जांच करने के बाद क्लीनचिट दे देंगे। सारे रुपये भी खातों में वापस कर देंगे। इसलिए विश्वास हो गया था।
कोई भी एजेंसी डिजिटल अरेस्ट नहीं कर सकती
पुलिस उपायुक्त अपराध कमलेश कुमार दीक्षित के मुताबिक कोई भी एजेंसी अथवा पुलिस किसी को डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है न ही ऐसा कर सकती है। इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे मामलों में सजगता ही बचाव है। इसलिए हम लगातार बृहद स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। अगर आप जागरूक हैं तो कोई भी साइबर अपराधी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। डिजिटल अरेस्ट का कहीं कोई प्रावधान ही नहीं है। बैंक खाते से जुड़ा कोई भी ओटीपी और एटीएम से जुड़ी जानकारी किसी अजनबी से साझा न करें।
सतर्कता से ही होगा बचाव
- ऐसी कॉल आती है तो घबराएं नहीं सीबीआई, ईडी, कस्टम या पुलिस आपको वीडियो काल पर गिरफ्तार नहीं करती हैं
- स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय लें और अपने परिजनों से जानकारी जरूर साझा करें
- व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें जैसे पता, सामाजिक सुरक्षा संख्या या वित्तीय विवरण न दें
- कॉल करने वाले का नाम, बैज नंबर, और जिस थाने से वे हैं, वह पूछें। असली पुलिस अधिकारी यह जानकारी देंगे
- फोन काटकर अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन पर सीधे कॉल करें (कॉलर द्वारा दिए गए नंबर का उपयोग न करें)
- अगर संभव हो, तो जिस नंबर से कॉल आई है उसको ब्लॉक करें ताकि भविष्य में और कॉल न आ सकें।
साइबर ठगी पर तुरन्त 1930 पर कॉल करें
डीसीपी अपराध ने बताया कि साइबर ठगी का शिकार होने के तुरन्त बाद हेल्पलाइन नम्बर 1930 पर फोन करना चाहिए। हेल्पलाइन से जो भी सवाल पूछे जाएं, उनके सही-सही जवाब देने चाहिए। इस नम्बर के अलावा cybercrime.gov.in पर भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। डीसीपी क्राइम ने बताया कि लोगों को यह भी हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि बैंक मैनेजर भी आपसे आपके एटीएम या बैंक के ऐप का पिन या कोई पासवर्ड नहीं पूछ सकता है।





