महाकुंभ 2025: त्रिवेणी में डुबकी से अलौकिक अनुभूति कैसे, इसका रहस्य खोजेंगे वैज्ञानिक
अगले महीने संगम की रेती पर लगने वाले महाकुम्भ मेला के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञनिकों की छह सदस्यीय टीम इन प्रश्नों का जवाब खोजेगी कि डुबकी लगाने से शरीर में नई उर्जा का संचार कैसे होता है?

पतित पावनी गंगा में पुण्य की डुबकी लगाने के बाद मन चंगा हो जाता है। मौसम कैसा भी हो श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने आते हैं और पांच डुबकी के बाद शरीर में नई ऊर्जा को महसूस करते हैं। इस नई ऊर्जा का संचार आखिर कैसे होता है? क्यों लोग दो से तीन डिग्री की कड़ाके की ठंड में डुबकी लगाने के लिए आते हैं ? अगले महीने संगम की रेती पर लगने वाले महाकुम्भ मेला के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञनिकों की छह सदस्यीय टीम इन प्रश्नों का जवाब खोजेगी। इस अध्ययन में टीम महाकुम्भ के दौरान मेला क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों की मदद लेगी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं राष्ट्रीय मनोविज्ञान अकादमी के महासचिव डॉ. संजय कुमार ने बताया कि शोध में श्रद्धालुओं के कुम्भ आगमन के पीछे 'उम्मीद का मनोविज्ञान है। ह्न प्रत्येक श्रद्धालु किसी न किसी उम्मीद को लेकर महाकुम्भ में आता है। श्रद्धालुओं की उम्मीदों का दायरा अत्यंत ही व्यापक होता है। किसी को मन की शांति चाहिए होती है तो किसी को ऐश्वर्य की कामना, किसी को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा चाहिए होती है तो कोई मोक्ष पाने के मनोभाव से यहां आता है।
सैलानियों, श्रद्धालुओं और कल्पवासियों की मनोदशा को इस अध्ययन के माध्यम से जानने की कोशिश की जाएगी। डॉ. संजय कुमार ने बताया कि 'महाकुम्भ मेला और मानसिक स्वास्थ्य का रहस्य' शीर्षक पर शोध परियोजना भी तैयार की गई है, जिसकी शुरुआत महाकुम्भ में होगी। इस शोध परियोजना को विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं को भेजकर अनुमोदन तथा सहभागिता का आग्रह भी किया गया है। इस शोध परियोजना में सहभागिता के लिए देश-विदेश के दर्जनभर से अधिक शोधर्थियों को आमंत्रण भेजा गया है।
शोध परियोजना के परिणामों से कुम्भ मेले के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को समझने में मदद मिलेगी। इस शोध परियोजना में डॉ संजय, डॉ. रजनेश मीणा, शोधार्थी अनमोल, अमित, मोनी बरनवाल तथा निक्की सिंह शामिल हैं। महाकुम्भ पर अध्ययन के लिए प्रोजेक्ट बनाकर उत्तर प्रदेश भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद लखनऊ (आईसीएसएसआर) को भेजा गया है।