संभल में बावड़ी में खुदाई के बीच 365 साल पुराने फिरोजशाह किले का सर्वे, अतिक्रमण मुक्त कराने का निर्देश
उत्तर प्रदेश के संभल में रानी बावड़ी में खुदाई के बीच 365 साल पुराने फिरोजशाह किले का सर्वे किया गया है। निरीक्षण के बाद इनके संरक्षण और अतिक्रमण मुक्त कराने के निर्देश दिए गए हैं।

संभल जनपद की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए प्रशासन ने कमर कस ली है। रानी की बावड़ी में खुदाई के बीच बुधवार को जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पैंसिया व एसपी केके विश्नोई ने 365 साल फिरोजशाह किले, क्षेमनाथ तीर्थ (नीमसार), तोता-मैना की कब्र और राजपूत कालीन बावड़ी (चोर कुआं) का सर्वे किया। निरीक्षण के बाद इनके संरक्षण और अतिक्रमण मुक्त कराने के निर्देश दिए। निरीक्षण के दौरान डीएम ने स्पष्ट शब्दों में कहा संभल के लिए कहा जाता है कल की नगरी यानी कल्कि नगरी है। अगर हमने अपने इतिहास को नहीं संजोया, तो यह हमें छोड़ देगा।
दोनों अधिकारियों के निरीक्षण की शुरुआत एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा संरक्षित फिरोजशाह किले से हुई। वर्ष 1656 से 1659 के बीच 1.2 हेक्टेयर में बने इस ऐतिहासिक फिरोजशाह किले पर अतिक्रमण की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। किले के प्रवेश द्वार पर अवैध निर्माण कर मुख्य साइन बोर्ड को चहारदीवारी में बंद कर दिया गया है। डीएम ने नाराजगी जाहिर करते हुए तुरंत कच्ची दीवार को गिराने के आदेश दिए और पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही पर सवाल उठाए। साथ ही लेखपालों को किले की संरक्षित भूमि की पैमाइश के निर्देश दिए गए। वहीं पास में बने कुएं की सफाई के लिए भी प्रधान को निर्देशित किया। किले में बनी सुरंग व चांद सूरज के कमरे को भी उन्होंने देखा। इसके बाद उन्होंने क्षेमनाथ तीर्थ (नीमसार) का निरीक्षण किया, जहां लगभग 40 साल बाद जागृत कुएं का जीर्णोद्धार कार्य शुरू हुआ है। उन्होंने कुएं में मौजूद 10-12 फीट गहरे पानी को देखते हुए कहा कि यह जागृत कुआं है। जो धार्मिक और जल संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके बादउन्होंने तोता-मैना की कब्र और राजपूतकालीन बावड़ी (चोर कुआं) का जायजा लिया।
उन्होंने इस बावड़ी की अनूठी वास्तुकला और गुप्त कमरों को देखते हुए इसे ऐतिहासिक धरोहर बताया। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि राजपूत बावड़ी का नाम ह्यचोर कुआंह्ण क्यों पड़ गया। उन्होंने कहा कि इस बावड़ी का नाम और गौरवशाली इतिहास वापस लाया जाएगा। बावड़ी की खुदाई राज्य पुरातत्व विभाग और एएसआई की निगरानी में कराई जाएगी और इसे अतिक्रमण मुक्त कर संरक्षित धरोहर का दर्जा दिया जाएगा। यह राजपूत कालीन समय में पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में बनाया गया है। संभल देवनगरी है। यह शहर अपने भीतर इतिहास, संस्कृति और आस्था की अमूल्य संपदा समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि धरोहरों का संरक्षण केवल संरचनाओं को बचाना नहीं है, बल्कि यह इतिहास और संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है।
उन्होंने इस बावड़ी की अनूठी वास्तुकला और गुप्त कमरों को देखते हुए इसे ऐतिहासिक धरोहर बताया। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि राजपूत बावड़ी का नाम ह्यचोर कुआंह्ण क्यों पड़ गया। उन्होंने कहा कि इस बावड़ी का नाम और गौरवशाली इतिहास वापस लाया जाएगा। बावड़ी की खुदाई राज्य पुरातत्व विभाग और एएसआई की निगरानी में कराई जाएगी और इसे अतिक्रमण मुक्त कर संरक्षित धरोहर का दर्जा दिया जाएगा। यह राजपूत कालीन समय में पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में बनाया गया है। संभल देवनगरी है। यह शहर अपने भीतर इतिहास, संस्कृति और आस्था की अमूल्य संपदा समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि धरोहरों का संरक्षण केवल संरचनाओं को बचाना नहीं है, बल्कि यह इतिहास और संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है।
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365 साल पुराना संभल का फिरोजपुर किला
मुगलकालीन युग का गौरवशाली प्रतीक, संभल का फिरोजपुर किला, अपनी ऐतिहासिकता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। यह किला संभल शहर से पांच किलोमीटर दूर, कभी जल से लबालब रहने वाली सोत नदी के किनारे स्थित है। 1656 से 1659 के बीच इस किले का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां के आदेश पर उनके प्रमुख दरबारी सैय्यद फिरोज के लिए किया गया था। शाहजहां ने अपनी गद्दी मजबूत करने के बाद संभल की जागीर सैय्यद फिरोज को सौंप दी थी। इस किले में ह्यचांद महलह्ण और ह्यसूरज महलह्ण जैसे खूबसूरत महल बनाए गए थे, जो मुगलकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह किला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसकी मजबूत दीवारें और बुर्ज आज भी इतिहास की गवाही देती हैं। वर्तमान में यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसके संरक्षण को करीब आठ वर्ष पूर्व पुरातत्व विभाग ने एक करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि से चाहरदिवारी बनाई गई है। फिरोजपुर किला न केवल संभल की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह भारत की समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर का भी अहम हिस्सा है