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International Women's Day: एक कविता ने किया प्रेरित और अमित बन गए 'पैडमैन'

हम अक्सर सुनते हैं कि महिला सशक्तिकरण के लिए पुरुषों का जागरूक होना जरूरी है लेकिन असल में ऐसा होता कम है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बात एक ऐसे पुरुष की जिसने महिलाओं की समस्या को न सिर्फ...

International Women's Day: एक कविता ने किया प्रेरित और अमित बन गए 'पैडमैन'
आंचल अवस्थी,लखनऊFri, 08 Mar 2019 01:30 AM
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हम अक्सर सुनते हैं कि महिला सशक्तिकरण के लिए पुरुषों का जागरूक होना जरूरी है लेकिन असल में ऐसा होता कम है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बात एक ऐसे पुरुष की जिसने महिलाओं की समस्या को न सिर्फ समझा है, बल्कि उसके समाधान के लिए कोशिशें भी कर रहा है। 

माहवारी...यह शब्द सुनते ही आज भी लोग बगलें झांकते हैं...बात करने से कतराते हैं...पुरुष तो दूर, खुद महिलाएं अपनी इस समस्या पर बात नहीं कर पातीं। दुनिया भर के मिथक इसके साथ जोड़े गए हैं, तमाम भ्रांतियां फैली हुई हैं। इन सबके बीच इस विषय पर महिलाओं व लड़कियों के बीच जाकर बात करने और जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया है लखनऊ के 'पैडमैन' डॉ. अमित सारिकवाल ने। अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' पिछले वर्ष आई थी लेकिन उसके बहुत पहले डॉ. अमित को इस काम के लिए एक कविता ने प्रेरित किया था। दिल्ली की रहने वाली कवयित्री दामिनी यादव की कविता 'माहवारी' कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर खूब चर्चित रही। इस कविता को डॉ. अमित ने पढ़ा और उन्हें लगा कि बेहद सामान्य सी लगने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया दरअसल महिलाओं के लिए बड़ी समस्या बन चुकी है और इसकी वजह केवल जागरूकता का न होना है। 

मई 2015 में हुई शुरुआत: डॉ. अमित ने मई 2015 में 20 लड़कियों के साथ 'हिम्मत' अभियान की शुरुआत की। उन्होंने मानस एन्क्लेव स्थित मलिन बस्ती में रहने वाली 20 लड़कियों को पैड वितरित किए और माहवारी से जुड़ी ढेरों जानकारियां दीं। अमित बताते हैं कि अपने इस काम को फेसबुक पर डालने में उन्हें 20 दिन लगे और इसकी वजह भी वही डर था कि लोग क्या कहेंगे। मगर फिर सोचा कि जब अभियान का नाम 'हिम्मत' रखा है तो डर कैसा। 

एक लड़की के लिए साल भर के पैड का इंतजाम: डॉ. अमित ने उन्होंने अपने साथ और लोगों को जोड़ा और यह अभियान शुरू किया कि एक लड़की के लिए 500रु. देकर साल भर के सैनिटरी पैड की व्यवस्था की जाए। पहली बार 80 लड़कियां एक साथ एडॉप्ट की गईं। इनके लिए साल भर के पैड का इंतजाम करने के साथ-साथ इन्हें जागरूक भी किया गया ताकि ये अपने ध्यान खुद रख सकें और अगले साल दूसरी लड़कियां एडॉप्ट की जा सकें। इस तरह सिलसिला चल निकला। मार्च 2016 में माहवारी विषय पर वर्कशॉप भी शुरू की गई ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा जा सके। अमित बताते हैं कि जब 'पैडमैन' फिल्म आई तो लोगों ने उनकी बात को ज्यादा समझा। अब तक वह लगभग साढ़े चार हजार लड़कियों तक यह जागरूकता पहुंचा चुके हैं और अब उनका फोकस ग्रामीण इलाकों पर है। 

दामिनी यादव की जिस कविता 'माहवारी', जिसने डॉ. अमित को प्रेरित किया, उसका एक अंश...
आज मेरी माहवारी का
दूसरा दिन है।
पैरों में चलने की ताकत नहीं है,
जांघों में जैसे पत्थर की सिल भरी है।
पेट की अंतड़ियां
दर्द से खिंची हुई हैं।
इस दर्द से उठती रुलाई
जबड़ों की सख्ती में भिंची हुई है।
कल जब मैं उस दुकान में
'व्हिस्पर' पैड का नाम ले फुसफुसाई थी,
सारे लोगों की जमी हुई नजरों के बीच,
दुकानदार ने काली थैली में लपेट
मुझे 'वो' चीज लगभग छिपाते हुए पकड़ाई थी...। 

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