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दावा! ज्ञानवापी ही था शिवतीर्थ, नौ मंडपों का आदिविश्वेश्वर मंदिर, इन ग्रंथों से निकला रहस्य

वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर कोई खाली स्थान या मस्जिद का हिस्सा नहीं बल्कि शिवतीर्थ था। यह निष्कर्ष शास्त्रत्तें में वर्णित मंदिरों की निर्माण शैली ‘प्रासाद वास्तु’ संग अन्य पौराणिक ग्रंथों से निकला।

दावा! ज्ञानवापी ही था शिवतीर्थ, नौ मंडपों का आदिविश्वेश्वर मंदिर, इन ग्रंथों से निकला रहस्य
Srishti Kunjअभिषेक त्रिपाठी,वाराणसीSun, 27 Nov 2022 10:45 AM

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वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर कोई खाली स्थान या मस्जिद का हिस्सा नहीं बल्कि शिवतीर्थ था। यह निष्कर्ष शास्त्रत्तें में वर्णित मंदिरों की निर्माण शैली ‘प्रासाद वास्तु’ के साथ अन्य पौराणिक ग्रंथों और जेम्स प्रिंसेप के उद्धरणों से निकला है। ज्योतिष और वास्तुशास्त्रत्त् के सिद्धांतों के अनुसार प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर नौ मंडपों वाला तीर्थ था। उसके पश्चिमी हिस्से के रूप में ज्ञानवापी विद्यमान था।

बीएचयू स्थित संस्कृत विद्या धर्म संकाय के ज्योतिष विभाग के प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने बताया कि प्रासाद वास्तु का कई ग्रंथों में उल्लेख है। आमतौर पर किसी देवालय में पांच मंडपों का निर्माण होता है। प्रधान देवालय यानी गर्भगृह और इसके चारों तरफ चार देवताओं की स्थापना की जाती है। आदि विश्वेश्वर मंदिर की विशिष्टता यह है कि वहां नौ मंडपों की स्थापना की गई। स्कंदपुराण के काशीखंड के अलावा त्रिस्थलीसेतु नामक ग्रंथ में नौ मंडपों वाले विशिष्ट मंदिर को ‘कैलाश’ की उपमा दी गई है। उन्होंने बताया कि आदि विश्वेश्वर या विश्वनाथ मंदिर की स्थापना भी कैलाश के रूप में हुई थी।

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मंदिर के नौ मंडपों की चर्चा करते हुए प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि आदि विश्वेश्वर मंदिर में मुख्य गर्भगृह के दोनों तरफ ब्रह्मा और विष्णु स्थापित थे क्योंकि प्रासाद वास्तु में भगवान शिव के दाएं विष्णु और बाएं ब्रह्मा का स्थान बताया गया है। भगवान शिव आगे और पीछे के स्थान पर उन्हीं के गण व सेवक होते हैं। इस तरह गर्भगृह के पूर्व में तारकेश्वर विद्यमान हैं। शास्त्रत्तेक्त सूत्रों के हवाले से प्रो. त्रिपाठी ने दावा किया कि पश्चिम दिशा में मौजूद ज्ञानवापी भी भगवान शिव का ही स्थान था। यहां शृंगार गौरी का शृंगार मंडप भी था। भारतीय ग्रंथों में तीसरी से लेकर 15वीं सदी तक के मंदिर वास्तु का उल्लेख मिलता है। उनके अलावा जेम्स प्रिंसेप ने भी बहुत कुछ वैसा ही वर्णन और रेखांकन किया है।

इन ग्रंथों से निकला रहस्य
प्रासादमंडनम्, देवालयचंद्रिका, बृहत्संहिता, अपराजितपृच्छा, समरांगण सूत्रधार, देवता मूर्तिप्रकरण (रूपावतार), मयमतम्, राजवल्लभमंडनम्, काशीखंड (स्कंदपुराण), वाराणसी वैभव, लिंग पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, त्रिस्थलीसेतु।

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