ग्राम पंचायतों के प्रधानों को साध कर बड़ी पंचायतों के लिए सियासत के पायदान चढ़ने वाले सियासी सूरमाओं के लिए पुनर्गठन के बाद सजने वाले नए अखाड़े चुनौती बनेंगे। आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में जिले में नव सृजित ग्राम पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। परिसीमन के बाद एक-दूसरे से जुदा हुई पंचायतों में सियासत के नए गुणा भाग और बिसात बिछाना जिले के बड़े नेताओं के लिए मशक्कत भरा काम होगा। यही वजह है कि पुनर्गठन के बाद इन राजनितिक दिग्गजों और दलों दोनों ने अपना अपना होमवर्क भी शुरू कर दिया है।
सियासी जमीन पर ग्राम पंचायतों और वहां चुने गए प्रधानों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। प्रधानों के सहारे ही राजनीतिक दल चुनावों में अपनी वैतरणी पार करने के लिए सारा जोर लगाते हैं। ऐसे में नव गठित पंचायतें आने वाले समय में जिले के सियासी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। काबिलेगौर बात ये है कि यहां के बड़े सियासती सूरमाओं को एक ही पंचायत से कट कर अलग हुई पंचायत में सियासी शतरंज की फिर से नई बिसात बिछानी होगी। राजनीतिक पंडितों की माने तो आने वाले विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में इस बार राजनीतिक गणित की नई तस्वीर दिखाई पड़ेगी। पंचायतों के परिसीमन के बाद जिले में 156 नई ग्राम पंचायतों का गठन लगभग तय हो गया है। आपत्तियां और निस्तारण महज पुनर्गठन की औपचारिकता मात्र है। अंतिम प्रकाशन के बाद फिलहाल यही तस्वीर सामने रहनी है और यही से जिले की राजनीति की नई दिशा भी तय होनी है।
बड़े चुनाव के मैनेजर बनतें है प्रधान :
विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा। दोनों चुनावों में ग्राम पंचायतों और प्रधानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चुनावी अखाड़े में कूदने वाले दलों और प्रत्याशियों के लिए प्रधान चुनावी मैनेजर की भूमिका भी निभाते हैं। जिले का चुनावी इतिहास इस बात का प्रमाण है। देश और सूबे की बड़ी पंचायत के लिए छोटी पंचायतों का किरदार बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मतदाताओं को रिझाने, उन्हें हर तरह से साधने और वोटों को सहेजने के लिए प्रधानों को साधा जाता है। खास ये कि बड़े चुनाव में प्रधान पद के विनर और रनर दोनों सियासी सूरमाओं के लिए मैनेजर की भूमिका निभाते हैं। जीतने वाला प्रधान आगे प्रधानी बरकरार रखने के लिए तो रनर अगली बार अपनी प्रधानी के लिए इन राजनीतिक दिग्गजों के खेमों में बंटा होता है।
पंचायत चुनाव में अबकी बढ़ेगी सियासी दखलंदाजी :
पंचायतों के पुनर्गठन के बाद यह बिल्कुल तय है कि आने वाले पंचायत चुनावों में अबकी सियासी दखलंदाजी पहले से अधिक बढ़ जाएगी। खासकर उन संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों में जहां से चुनाव लड़ने वाले जिले के कई बड़े नेता पंचायतों में सीधे दखल और अपनी जमीन बनाने के लिए कुख्यात माने जाते हैं। अब तक जिले की ग्राम पंचायतों में इन नेताओं की खेमेबाजी जगजाहिर है। ऐसे में नई ग्राम पंचायतों में होने वाले चुनाव में इन सियासी रणबांकुरों को फिर से अपनी शतरंजी चालों की बिसात बिछानी होगी जो किसी चुनौती से कम नहीं होगी।