यूपी में यहां अकबर की पत्नी की समाधी, कृष्ण भक्त बन छोड़ा सब, रचे 'वृंदावन छोड़, अब कितहू न जाऊंगी' जैसे छंद
ब्रजभाषा को सूर और रसखान के पदों ने ही नहीं अकबर की पत्नी और कृष्ण भक्त ताज बीबी के प्रेम भरे छंदों ने भी सींचा है। गोकुल से कुछ दूर उनकी समाधि आज भी उनका कृष्ण प्रेम बयां कर रही है।

ब्रजभाषा को सूर और रसखान के पदों ने ही नहीं अकबर की पत्नी ताज बीबी के प्रेम भरे छंदों ने भी सींचा है। एक यात्रा पर जाते समय वे यहां रुकीं तो यहीं की होकर रह गईं और कई छंद रचे, जो आज भी कविताओं, छंदों में गाहे बगाहे मिल जाते हैं। यहां गोकुल (रमणरेती) से करीब दो किलोमीटर दूर उनकी समाधि आज भी उनका प्रेम बयां कर रही है।
यात्रा पर जाते समय रुकीं तो रम गईं
कहा जाता है कि एक बार ताज बीबी धार्मिक यात्रा पर जा रही थीं। रास्ते में ब्रजभूमि से वे गुजरीं तो उनको यहां मंदिरों के घंटे और शंख की धुन सुनाई दी। ताज बीबी ने कारिंदों से पूछा कि ये आवाज कैसी है? उनको बताया गया कि यहां कुछ लोगों का छोटा खुदा रहता है। ताज बीबी ने कहा कि वह छोटे खुदा से मिलकर ही आगे बढ़ेंगी। ताज बीबी वहीं बैठकर कृष्ण के दीदार की आकांक्षा करने लगीं।
कहा जाता है कि ताज की भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण ने उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया। इसके बाद ताज बीबी गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका बन गईं। इन्होंने कृष्ण की भक्ति में कविताएं, छंद और धमार लिखे जो आज भी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में गाए जाते हैं। उनकी रचनाएं आज भी उनके समाधि स्थल पर अंकित हैं। इनमें उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है-नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै, हूं तो मुगलानी, हिंदुआनी बन रहूंगी मैं...। ताज बीबी के समाधि स्थल पर लगी शिला पट्टिका पर उनके द्वारा रचित यह छंद उनकी कृष्ण भक्ति को प्रकट करता है...।
रचे कई छंद
जब बगावती तेवर के साथ वे कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं। उनके छंदों में भी वो तेवर दिखाई पड़ते हैं। वे लिखती हैं...
अल्ला बिस्मिल्ला रहिमान और रहीम छोड़, पीर और शहीदों की चर्चा न चलाऊँगी।
सूथना उतार पहिन घांघरा घुमावदार, फरिया को फार शीश चूनरी चढ़ाऊँगी।
कहत शहजादी ठाकुर कवी सों पैज कर, वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाऊँगी।
बांदी बनूँगी राधा-महारानी जू की, तुर्किनी बहाय नाम गोपिका कहाऊँगी।
सुनो दिल जानी मेरे दिल की कहानी तुम, हुस्न की बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं।
देव पूजा ठानी हौं निवाज हूँ भुलानी तजे, कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं॥
श्यामला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये, तेरे नेह दाग में निदाग ह्वै दहूँगी मैं।
नन्द के कुमार कुरवान ताणी सूरत पै, हौं तो मुगलानी हिन्दुआनी ह्वै रहूँगी मैं॥
कान्हा की भक्ति के लिए उन्होंने अपने शब्द गढ़े और उन्हें छंद बनाया....
छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला, बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है॥
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान, कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है॥
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज, चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है॥
नन्द जू का प्यारा, जिन कंस को पछारा, वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है॥
रसखान समाधि परिसर में ही समाधि
गोकुल और रमणरेती के रास्ते में जहां रसखान की समाधि है, उसी परिसर में ताज बीबी की समाधि बनी हुई है। कभी ये उपेक्षा का शिकार थी, लेकिन रसखान की समाधि के पुनरुद्धार के साथ-साथ इस समाधि का भी पुनरुद्धार किया गया।
