अयोध्या रामलला के आंगन में लगे ‘कोविदार’ आठ फीट के हुए, जल्द शुरू होंगे दर्शन
रामलला के आंगन में लगे ‘कोविदार’ आठ फीट के हो गए हैं। रघुकुल के ध्वज पर कोविदार का चिह्न था। वाल्मीकि रामायण के बाद यह वृक्ष भुलाया गया। इतिहासकार ने इसकी खोज की और अयोध्या राममंदिर में 6 पौधे लगवाए।

अयोध्या में राम मंदिर में लगवाए गए कोविदार के पौधे अब छह से आठ फीट के हो चुके हैं। 21 जनवरी को मंदिर के लोकार्पण पर इसे लगाया गया था। कोविदार के पौधों की पहली तस्वीरें सोमवार को इतिहासकार ललित मिश्रा ने जारी किया। उन्होंने बताया कि ये पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं और चार महीने में ही मंदिर निर्माण पूरा होते ही इनके दर्शन भी शुरू हो जाएंगे।
बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र की सलाहकार समिति के सदस्य ललित मिश्रा ने भुला दिए गए इस ऐतिहासिक वृक्ष की दोबारा खोज की थी। उन्होंने बताया कि वाल्मीकि रामायण में अयोध्या के ध्वज पर कोविदार के वृक्ष के चिह्न लगाए जाने का उल्लेख मिलता है। हालांकि इसके बाद विभिन्न भाषाओं में लिखी गई 300 से ज्यादा रामायणों में यह तथ्य भुला दिया गया और अयोध्या के ध्वज का जिक्र भी नहीं आया।
लोककथाओं के अनुसार लोगों ने कचनार को ही रघुकुल का वृक्ष मान लिया था। शास्त्रों के अलावा आयुर्वेद के ग्रंथों के उद्धरण खोजने के साथ ही ललित मिश्रा ने बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और वनस्पति विज्ञानी डॉ. अभिषेक द्विवेदी की मदद से यह साबित किया कि कचनार नहीं बल्कि कोविदार रघुकुल का राजचिह्न है। तथ्यों के आधार पर रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने भी इसे स्वीकार किया।
सोमवार को तस्वीरें जारी करते हुए ललित मिश्रा ने बताया कि कुबेर टीले पर लगाए गए इन वृक्षों का अभी श्रद्धालु दर्शन नहीं कर पा रहे हैं। मंदिर परिसर में निर्माण कार्य जारी है ऐसे में श्रद्धालु वहां तक पहुंच नहीं पा रहे। सनातनी हिंदुओं की तरफ से इन कोविदार वृक्षों को देखने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। ऐसे में इसकी खोज करने वाल इतिहासकार ने सोमवार को इनकी तस्वीरें जारी कीं।
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एक ही परिवार के हैं कचनार और कोविदार
ललित मिश्रा ने बताया कि कचनार और कोविदार एक ही परिवार (बाओहीनिया) के मगर अलग-अलग पौधे हैं। बीएचयू के वनस्पति विज्ञानियों की मदद से यह जानकारी मिली कि कचनार का वैज्ञानिक नाम बाओहीनिया बेरिगेट जबकि कोविदार का नाम बाओहीनिया परप्यूरिया है। आयुर्वेद के ग्रंथ ‘भावप्रकाश निघंटु’ सहित अन्य कई संस्कृत ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है।
विश्व का पहला हाइब्रिड पौधा है कोविदार
कोविदार विश्व का पहला हाइब्रिड पौधा है। ललित मिश्र बताते हैं कि हरिवंशपुराण में यह बात लिखी है कि महर्षि कश्यप ने इसका निर्माण किया था। उन्होंने पारिजात के पौधे में मंदार के गुणों का मिश्रण कर इसे तैयार किया। मंदार के असर के कारण कोविदार के फूल बैंगनी रंग लिए होते हैं। एक अन्य आख्यान में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि कोविदार की पहचान इसका उज्ज्वल तना है।