जनता के बीच जाने से पहले अपनों की बगावत ने बढ़ाई परेशानी, सियासी पार्टियों के लिए गले की फांस बना टिकट का बंटवारा
विधानसभा चुनाव के नतीजे किस के हक में आएंगे यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन मैदान में उतरने से पहले ही सियासी पार्टियों के खेमे में दरार पड़ने लगी है। एक अदद टिकट की चाह रखने वालों ने दावा खारिज होने...
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विधानसभा चुनाव के नतीजे किस के हक में आएंगे यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन मैदान में उतरने से पहले ही सियासी पार्टियों के खेमे में दरार पड़ने लगी है। एक अदद टिकट की चाह रखने वालों ने दावा खारिज होने पर बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में बगावत का यह दायरा और बढ़ सकता है। चुनाव में कामयाबी के लिए सभी पार्टियां अपना-अपना खाका बना रही हैं। हर मोर्चे को फतेह करने के लिए मोर्चेबंदी की पूरी प्लानिंग की जा रही है। लेकिन जनता के बीच जाने और प्रतिद्वंदी खेमे को चित करने से पहले ही अपनों की चुनौती ने परेशानी बढ़ा दी है।
जैसे-जैसे टिकट का ऐलान हो रहा है, वैसे ही वैसे विरोध की आवाज तेज होती जा रही है। अब तक जिले की तीनों विधानसभा सीट के लिए सिर्फ दो ही प्रमुख पार्टियों ने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। पहले भाजपा ने तीनों सीट पर उम्मीदवार घोषित किए, उसके बाद सपा ने तीनों सीट पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया। जिस सीट पर जिस दावेदार को टिकट नहीं मिला, उसमें से बड़े और अहम चेहरों ने इसे खुद के साथ गलत बताते हुए बगावत शुरू कर दी है। अपनों की ही यह बगावत पार्टियों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है।
जिस छिबरामऊ विधानसभा सीट के लिए पार्टी टिकट का ऐलान करने में देर कर रही थी, अब उसी पर विवाद शुरू हो गया है। छिबरामऊ सीट से सपा ने दो बार के विधायक रहे अरविंद यादव को मैदान में उतारा है। इस सीट पर एक और पूर्व विधायक ताहिर हुसैन सिद्दीकी अपना दावा जता रहे थे। ताहिर हुसैन सिद्दीकी का तर्क है कि पिछले चुनावों की रिपोर्ट उनके हक में है। जनता भी साथ है। भले ही पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, लेकिन वह चुनाव लड़ने के लिए कमर कसे हुए हैं।
सपा की ही तर्ज पर भाजपा में भी बगावत के सुर सामने आने लगे हैं। तिर्वा विधानसभा सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे उस क्षेत्र के उमर्दा ब्लॉक के ब्लॉक प्रमुख अजय वर्मा ने भी टिकट न मिलने पर नाराजगी जताते हुए पार्टी ही छोड़ दी है। उनकी यह बगावत पार्टी के लिए झटका माना जा रहा है। हालांकि इस बारे में पार्टी के सीनियर नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
भाजपा में सदर सीट पर भी अंदर ही अंदर गदर मची है। पार्टी ने यहां से पूर्व विधायक बनवारीलाल दोहरे की जगह आईपीएस अफसर रहे असीम अरूण को उम्मीदवार बनाया है। उनकी नाराजगी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए उन्हें पार्टी के सीनियर नेताओं से मिलवाया गया। उन मुलाकातों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैर रही हैं। एक और दावेदार रामेंद्र कटारा ने भी बागी तेवर अपनाया। हालांकि एक दिन पहले सोमवार को उन्होंने पार्टी छोड़ने का ऐलान किया और शाम होते-होते फिर से पार्टी के साथ हो लिए।
भाजपा और बसपा में टिकट बंटवारे के बाद शुरू हुई बगावत ने इन पार्टियों के खेमे में हलचल मचा रखी है। बसपा इसे अपने लिए बेहतर मौका मान रही है। सियासी गलियारों में इस बात के खूब चर्चे हैं बसपा में बागियों को ठिकाना मिल सकता है। अंदरखाने बिसात बिछने लगी है। बसपा इनही बागियों के भरोसे चुनावी दंगल तें ताल ठोक सकती है। तीनों ही सीट के बागियों ने बसपा से तालमेल शुरू कर दिया है। समझा जा रहा है कि जल्द ही बसपा इन बागियों को टिकट पकड़ा सकती है।