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World Blood Donor Day 2019 : 141 बार रक्‍तदान कर चुका है यह शख्‍स, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है नाम

लोगों की जिंदगी बचाने के लिए किए जाने वाले रक्तदान को महादान कहा जाता है। सहारनपुर के संत कमल किशोर यह महादान 141 बार करके कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। कमल किशोर का नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड,...

World Blood Donor Day 2019 : 141 बार रक्‍तदान कर चुका है यह शख्‍स, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है नाम
हिन्दुस्तान टीम ,सहारनपुर हापुड़Fri, 14 Jun 2019 12:19 PM
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लोगों की जिंदगी बचाने के लिए किए जाने वाले रक्तदान को महादान कहा जाता है। सहारनपुर के संत कमल किशोर यह महादान 141 बार करके कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। कमल किशोर का नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड और इंडियन एचीवर बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है। वहीं हापुड़ के राजकुमार 12 साल में जरूरतमंदों को 18 बार रक्त दे चुके हैं। राजकुमार को इसकी प्रेरण तब मिली थी, जब उनकी पत्नी को हालत बिगड़ने पर 13 यूनिट खून की जरूरत पड़ी थी और 68 लोग खून देने के लिए पहुचं गए थे।   

कमल किशोर ने 18 साल की उम्र में पहली बार किया था रक्तदान 
दिल्ली रोड स्थित अहमदबाग निवासी परम तत्ववेत्ता संत कमल किशोर एकाकी जीवन जीते हैं। छोटे से मकान में रहने वाले कमल किशोर ने सबसे पहली बार रक्तदान 1977 में पटियाला के राजकीय मेडिकल कालेज में किया था। उस समय उनकी उम्र महज 18 साल की थी। वह वहां पर आयुर्वेद का कोर्स करने गए थे, तभी मेडिकल कॉलेज में रक्तदान करने का शिविर लगा था। 
संत कमल किशोर बताते हैं कि उस समय महज पूरे पटियाला से केवल छह लोगों ने ही रक्तदान किया था। रक्तदान को लेकर लोगों में तमाम भ्रांतियां थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं हैं। 

दो महीने पहले किया है 141वीं बार रक्तदान 
करीब 60 वर्षीय संत कमल किशोर का दावा है कि वह अब तक 141 बार रक्तदान कर चुके हैं। अंतिम बार दो महीने पहले मेरठ के पीएल शर्मा अस्पताल में 141वीं बार रक्तदान किया। इससे पहले वह 111वीं बार रक्तदान माउंट आबू में ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में किया था। 29 मई वर्ष 2016 में जब 126वीं बार रक्तदान पंजाब के कपूरथला में किया था तो पहली बार इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम शामिल किया गया। इसके बाद 22 अप्रैल 2017 को 135वीं बार मध्य प्रदेश के इंदौर में रक्तदान करने पर एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और 138वीं बार रक्तदान 28 मार्च 2018 को करने पर इंडियन एचीवर बुक ऑफ रिकॉर्ड ने भी उनके नाम को दर्ज किया। 

पिता से मिली रक्तदान की प्रेरणा 
सहारनपुर। संत कमल किशोर के पिता अविनाशी लाल धींगरा पोस्ट आफिस में कार्यरत थे। उन्हें बचपन से रक्तदान करते देखा था। पिता कहा करते थे कि रक्तदान के बाद नया खून बनता है जो कि शरीर को मजबूत और स्फूर्तिवान बनाता है। इस तरह पिता की प्रेरणा से वह रक्तदान करने के हर समय आगे रहते हैं।

1500 लोगों के नेटवर्क से जुड़े हैं संत किशोर
सहारनपुर। संत कमल किशोर का कहना है कि उनका ब्लड ग्रुप बी-पाजिटिव है, जो कि काफी लोगों में होता है। पहले तो जहां रक्तदान करता था, उस अस्पताल के डाक्टर नाम-पता नोट कर लेते थे। लेकिन बाद में मोबाइल और संचार क्रांति आई तो वह धीरे-धीरे 1500 लोगों के नेटवर्क से जुड़ गए हैं। इनमें से कई डाक्टर भी हैं। जब भी जिस मरीज को खून की जरूरत पड़ती है और देने वाला कोई सामने नहीं आता तो वह उन्हें फोन करते हैं। 

शून्य फाउंडेशन भी बनाई
सहारनपुर। संत ने बताया कि पहले कभी-कभार ही रक्तदान की डिमांड आती थी। लेकिन अब काफी डिमांड आती हैं। ऐसे में वह अकेले यह डिमांड पूरी नहीं कर सकते। इसलिए शून्य फाउंडेशन की स्थापना की है। जिसमें काफी लोग जुड़े हुए हैं। जब भी किसी मरीज को जरूरत पड़ती है तो उसी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति को अस्पताल भेज दिया जाता है। यह सब निशुल्क होता है।

पत्नी को बचाने के अहसास ने हापुड़ के राजकुमार को बना दिया रक्तदाता
एक नर्सिंग होम में 7 मार्च 2008 को भर्ती राजकुमार की पत्नी को सामान्य डिलीवरी होने के बाद बेटा होने की खुशी थी। लेकिन नर्सों की लापरवाही के चलते पत्नी को रक्तस्राव हुआ और वह मौत के करीब पहुंच गईं। खून की जरूरत पड़ी तो शहर के 68 लोग अस्पताल में ब्लड देने पहुंच गए। 13 यूनिट खून चढ़ाकर पत्नी को दिल्ली के अस्पताल में जीवनदान मिला। इसके बाद से राजकुमार ने कसम खा ली कि कभी किसी को ब्लड की जरूरत पड़ी तो जरूर दूंगा। राजकुमार 18 बार रक्तदान कर चुके हैं। 

मोहल्ला श्रीनगर में रहने वाले राजकुमार शर्मा इस समय अपना व्यवसाय कर रहे हैं। राजकुमार शर्मा एक समाजसेवक भी हैं। राजकुमार शर्मा हिन्दुस्तान को बताते हैं कि 2008 में 7 मार्च का दिन था, जिसमें पत्नी रमा शर्मा को डिलीवरी एक नर्सिंग होम में हुई थी। बेटे को जन्म देने के बाद नर्स की लापरवाही के चलते पत्नी को रक्तस्राव हो गया था, जिसमें पत्नी की हालत खराब हो गई थी और करीब शहर के 68 लोग रक्त देने के लिए नर्सिंग होम पहुंच गए थे। रक्त स्राव न रुकने के कारण गंभीर हालत में डॉक्टरों ने मेरठ या दिल्ली रेफर करने कि सलाह दी और उन दिनों हापुड़ मे ब्लड बैंक कि कोई भी सुविधा नहीं थी। डॉ. संजय त्यागी और डॉ. रेखा शर्मा तथा हापुड़ के करीब 13 लोगों का रक्त लेकर एम्बुलेंस के माध्यम से गाजियाबाद ले जाकर तत्काल इमरजेंसी उपचार करवाया। उस दिन के बाद से कसम खा ली कि किसी को भी रक्त की जरूरत होगी तो मैं दूंगा।

18 बार दे चुके हैं खून 
राजकुमार बताते हैं कि 7 मार्च 2008 के बाद से आज तक जब भी किसी को खून की आवश्यकता होती है तो मैं ब्लड देने के लिए अस्पताल पहुंच जाता हूं। अब तक 18 लोगों को खून दे चुका हूं। छह बार प्लेटलेट्स भी दी हैं।

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