कानपुर में खुले दशानन मंदिर के पट, तरोई के फूल से हुअा अभिषेक
कानपुर में विजयादशमी के पर्व पर शुक्रवार को लंकापति रावण की आराधना की गई। शिवाला स्थित कैलाश मंदिर प्रांगण में दशानन मंदिर के पट सुबह 6 बजे खोले गए। साल में एक बार पट खुलने के बाद लंकेश की...
कानपुर में विजयादशमी के पर्व पर शुक्रवार को लंकापति रावण की आराधना की गई। शिवाला स्थित कैलाश मंदिर प्रांगण में दशानन मंदिर के पट सुबह 6 बजे खोले गए। साल में एक बार पट खुलने के बाद लंकेश की मूर्ति का जलाभिषेक किया गया। फिर वैदिक मंत्रोचार के साथ तरोई के फूल से अभिषेक अौर सरसो के तेल के दीपक से अारती उतारी गई। मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी ने तरोई के फूल से अभिषेक कर लंकेश से अखंड सौभाग्यवती होने का वर मांगा था।
यहां दशानन देते हैं अराधना रूप के दर्शन
दशानन मंदिर हर साल विजयादशमी के अवसर पर ही खुलता है। मान्यता है कि कैलाश मंदिर में स्थापित दशानन मंदिर में रावण भगवान शिव शंकर की पहरेदारी करते हैं। मंदिर प्रांगण में छिन्नमस्तिका समेत अन्य देवियों की मूर्तियां भी स्थापित है। मान्यता के अनुरूप रावण देवियों की स्तुति में लीन होने कारण सालभर में एक बार ही अपने अाराधना रूप का दर्शन देते हैं। दशानन मंदिर की स्थापना कैलाश मंदिर की स्थापना के पांच वर्ष बाद हुई थी। कैलाश मंदिर की स्थापना 1868 में उन्नाव के गुरु प्रसाद शुक्ल ने की थी।
महिलाअों ने मांगा अखंड सौभाग्यवती का वर
शुक्रवार सुबह मंदिर के पट खुलते ही कैलाश मंदिर प्रांगण दशानन के जयकारों से गूंज उठा। जलाभिषेक अौर श्रृंगार के बाद मंदिर के प्रबंधक अनिरुद्ध प्रसाद वाजपेयी ने सरसो के तेल के दीपक से दशानन की आरती उतारी। आरती के बाद महिलाअों ने तरोई के फूल चढ़ाकर स्तुति की सुहाग लेकर अखंड सौभाग्यवती का वर मांगा। दोपहर बाद तक भक्तों के आने का सिलसिला चलता रहा है। सायंकाल रावण रूपी पुतला दहन के बाद पुनः दशानन की स्तुति कर मंदिर के पट सालभर के लिए बंदकर दिए गए। पूजा अर्चना के दौरान मंदिर समिति के बद्री मिश्रा, शरद वाजपेई, टोटल सिंह, केके तिवारी आदि भक्तगण मौजूद रहे।