आज दुर्गा पूजा और विजयदशमी का जश्न मनाया जा रहा है। दुर्गा पूजा के पंडालों में 'सिंदूर खेला' की धूम है। मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करने से ठीक पहले 'सिंदूर खेला' की परंपरा के दौरान कानपुर में कोलकाता जैसा नजारा देखने को मिला। पंश्चिम बंगाल की तरह कानपुर के पाण्डू नगर, एवी विद्यालय, अशोक नगर समझें कई पूजा पांडालों में नवरात्रि के 10वें यानी दशमी के दिन बंगाली समाज की शादी शुदा महिलांओं ने सबसे पहले दुर्गा मां को सिंदूर लगाकर पूजा अर्चना की फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाया। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। खासतौर से बंगाली समाज में इसका बहुत महत्व है।

नवरात्रि पर सिंदूर से क्यों खेलती हैं महिलाएं
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में पांच दिन रुकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। साथ ही दुर्गा मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाते हैं।
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हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व
हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी कहते हैं। कहते हैं सिन्दूर का ये लाल रंग हर सुहागिन महिला के जीवन में खुशियां भर देता हैं। सिंदूर को मां दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्रि पर सभी शादी शुदा महिलांए एक दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं।