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OMG : सर्दी का ये साईड इफेक्ट - पैरासोमनिया स्लीप डिसऑर्डर

अच्छी और सुकुन भरी नींद के लिए आपके कमरे का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस तक सबसे अच्छा होता है । इस भीषण ठंड के चलते तापमान में होने वाली अति गिरावट से निद्राचक्र दुष्प्रभावित होता...

OMG : सर्दी का ये साईड इफेक्ट - पैरासोमनिया स्लीप डिसऑर्डर
कमर अब्बास,गोंडाWed, 17 Jan 2018 11:24 AM
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अच्छी और सुकुन भरी नींद के लिए आपके कमरे का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस तक सबसे अच्छा होता है । इस भीषण ठंड के चलते तापमान में होने वाली अति गिरावट से निद्राचक्र दुष्प्रभावित होता है । जिसे मनोविश्लेषण की भाषा मे पैरासोमनिया स्लीप डिसऑर्डर कहतें हैं। माना जा रहा है कि इस बार सर्दी में अधिकतर लोग इसके शिकार बन रहे हैं लेकिन समझ नही पा रहे हैं। वैसे तो इस डिसऑर्डर का असर सभी आयु वर्गो पर दिखाई पड़ता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों, किशोरों और बुज़ुर्गों में दिखाई दे रहा है। यह एक हाल ही में किये गये शोध में सामने आया है।
जिला चिकित्सालय के किशोर मित्र क्लीनिक में इस डिसऑर्डर से ग्रसित किशोर किशोरियों की आमद में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई हैव जिसका कारण लगातार  ठंड का मौसम है।

जानिए निद्राचक्र व तापमान के सह सम्बन्ध को:

प्रतिकूल तापमान के कारण नींद के बार बार टूटने से लोग पैरासोमनिया नामक स्लीप डिसऑर्डर की चपेट में आ सकते हैं। इससे हमारी नींद की लयबद्धता बिगड़ जाती है । जिला चिकित्सालय के किशोर मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने हिपनोग्राम के हवाले से बताया कि हमारी नींद लयबद्ध तरीके से पांच चरणों से होकर एक निद्राचक्र पूरा करती है । बच्चों में यह चक्र लगभग एक घण्टे का, बड़ों में  डेढ़ घण्टे का होता है। एक सामान्य वयस्क निद्रा का औसत समय साढ़े सात घण्टे का होता है । इस प्रकार पूरे निद्रा काल में कई निद्रा चक्र क्रमबद्ध रूप से चलते रहते हैं । 

फिर होता है ये :

सोने के एक घण्टे के बाद कमरे का तापमान अत्यधिक कम हो जाने के कारण टूटने वाली नींद से स्लीप वॉकिंग का अटैक होने की संभावना होती है। क्योंकि इस समय हम अपनी निद्रा के पहले चक्र के तीसरे या चौथे चरण में होतें हैं। इस स्थिति में इंसान मूर्छा जैसी स्थिति में आ सकता है लेकिन सुबह उसे कुछ भी याद नही रहता है। सोने से ढाई से तीन घण्टे के बीच नींद टूटने से आप चौंक कर उठ सकते है। आप भयाक्रांत और हड़बड़ाया जाते हैं।धड़कन व सांस की गति असामान्य रूप से बढ़ी हुई हो सकती है।चीखना चिल्लाना या रोना शुरू कर सकता है। इसे स्लीप ट्रेमर के नाम से जाना जाता है । इसी तरह गहरे स्वप्न की स्थिति में नींद टूटने से व्यक्ति एक सम्मोहन की स्थिति में उठकर सक्रिय हो सकता है ।

ये है खतरे : इसके अलावा मांस पेशियों में टपकन, झनझनाहट, खिंचाव व दर्द, पैर का पटकना, नींद में बड़बड़ाना तथा शरीर का सुन्न हो जाना भी पैरासोमनिया का उदाहरण है।

बचाव व उपचार:

कमरे का तापमान अनुकूल रखें। सोने से पहले सिर को इस प्रकार ढ़क लें कि कमरे का तापमान कम होने के बावजूद भी मस्तिष्क का तापमान कम न हो। सोने से पहले गरम तरल पदार्थ अवश्य लें। शान्त मनोदशा से निंद्रा में प्रवेश करें। पैरासोमनिया का अटैक होने पर घबरायें नहीं बल्कि इसको प्रतिकूल  तापमान जनित स्लीप डिसऑर्डर मानते हुए मन को शीघ्र शांत करें। फिर भी यदि लगातार समस्या बनी रहे तो मबोचिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें। इसके लिए कॉग्निटिव स्लीप थेरेपी इसमे बहुत ही कारगर है।

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